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मानव समानता और हज्जतुल विदा का प्रवचन

मानव समानता और हज्जतुल विदा का प्रवचन...

डॉ. मोहम्मद सलीम पटीवालाअमीरे हल्का, जमाअते इस्लामी हिन्द, गुजरात आज अपने भारत वर्ष पर ही नहीं अपितु संपूर्ण संसार पर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत होता है कि मानो मानवता अब अपनी अंतिम साँसे ले रही है। भ्रष्टाचार, दुराचार, विश्वासघात व आतंकवाद से अब यह दुनिया थक चुकी है तथा विश्वास एवं ईमानदारी की तलाश में भटक रही है। इस कारण आवश्यकता है कि मानवता को विनाश से बचाया जाए, उसका सच्चा और सटीक मार्गदर्शन किया जाए, आकाशीय मार्गदर्शन अर्थात इलाही (ईश्वरीय) मार्गदर्शन से अवगत कराया जाए। विडम्बना यह है कि मानव समानता और मानव गरिमा के ऊँचे ऊँचे नारे तो लगाए जाते हैं, किंतु यह सब खोखले हैं। वास्तविकता यह है कि आज का मानव जीवन के वास्तविक अर्थ से ही अनभिज्ञ हो चुका है और अंधेरों में ठोकरें खा रहा है। ईश्वर का एक होना, मानव का एक होना और जीवन का एक होना हमारी नज़रों से ओझल हो चूका है।  अतः नितांत आवश्यक है कि पुनः पैगम्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के उस स्पष्ट उपदेश के प्रत्येक शब्द को आत्मसात किया जाए और उसे वैश्विक संविधान के तौर पर देखा जाए, जो 9 जिल-हिज्जा, 10 हिजरी की दोपहर को 124,000 से  अधिक सहाबा (पवित्र साथियों) के बीच अराफात...

Uploaded on 05-Jun-2025

एकता का संदेश

एकता का संदेश...

कवितानौशीन फातिमा खानलेखिका एवं शिक्षाविद्मिल जुल कर रहें सब एक हैं हमतू काला मैं गोरा तू हिंदू मैं मुस्लिम नहीं नहीं!एक ही आदम के रूप अनेक हैं हम!मिट्टी के रंग अलग अलगपर हम सबका है एक फलकएक ही धरती एक ही आसमांहम सब एक हैं कोई फ़रक नहींभेदभाव की दीवार को तोड़एकता की डोर से दें सबको जोड़सद्भावना की भावना से जगमगाए दुनिया सारीसाथ साथ चलें तो जीत हो हर बार हमारीएक ही आदम के बेटे बेटियांएक ही परिवार के सदस्य हैंहमारे बीच कोई भेद नहीं हैहम सब दिल से एक हैंआओ हम सब मिल कर इस दुनिया को सुंदर बनाएंएक दूसरे के प्रति प्रेम करुणा और सम्मान बढ़ाएं!...

Uploaded on 05-Jun-2025

माफ़ी ना मिली

माफ़ी ना मिली...

कहानी.यासमीन तरन्नुमजबलपुर, मध्य प्रदेशनेहा की ससुराल के सामने एक घर था जो कि देखने में सामान्य सा लगता था। जब नेहा शादी कर के ससुराल आयी तो उसे अपने घर के सामने बने उस घर में रहने वाले पड़ोसियों के बारे में जानने की इच्छा जागृत हुई। पूछने पर पता चला उस घर बड़े से घर में दो परिवार रहते हैं। आगे के हिस्से में आरज़ू नाम की सुशील और संस्कारी महिला रहती है जिसके चार बच्चे हैं। दो बेटे और दो प्यारी सी बेटियां। घर के पिछले हिस्से में आरज़ू का भाई अपने परिवार के साथ रहता है। आरज़ू के पिता ने अपने बेटे और बेटियों को कानून के मुताबिक प्रापर्टी में उनका हिस्सा दे दिया था।देखते ही देखते नेहा की उस परिवार से अच्छी दोस्ती हो गई। आरज़ू की दोनों बेटियां नेहा के घर आया करती थीं। एक का नाम सिमरन था और एक का नाम सुमन। नेहा उन दोनों के साथ काफी ज़्यादा घुल मिल गई थी और वे दोनों भी दिन भर नेहा के घर के चक्कर लगाया करती थीं। इस प्रकार नेहा का भी मन ससुराल में लगने लगा था। सुमन और सिमरन के मामा को अपनी बहन आरज़ू का इस तरह मायके में रहना पसंद...

Uploaded on 05-Jun-2025

‘असंभव को संभव करने वाली देश की दो लड़कियां’

‘असंभव को संभव करने वाली देश की दो लड़कियां’...

सहीफ़ा ख़ानउपसंपादक“कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होताएक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों”कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि यदि हम ठान लें कुछ करने की तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है। असंभव को संभव बनाने वाली कुछ इसी तरह की दो कहानियां हम आपके सामने पेश कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि यह दोनों कहानियां एक ऐसे समाज की लड़कियों की है जिस पर पिछड़ेपन, लिंग भेदभाव और रुढ़िवाद का आरोप हमेशा से लगता रहा है।अदीबा अनमपहली कहानी महाराष्ट्र की अदीबा अनम की है। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले से संबंध रखने वाली अदीबा को बचपन से ही कुछ कर गुज़रने का जुनून था। इसी जुनून ने उन्हें देश की सेवा करने के लिए प्रेरित किया और फिर उन्होंने ठान लिया कि वह एक दिन ज़रुर इतिहास रचेंगी।पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली अदीबा के पिता रिक्शा चालक थे। बेहद मुश्किलों के साथ घर का गुज़ारा हुआ करता था, संसाधन सीमित थे लेकिन अदीबा ने हार नहीं मानी और वह विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पढ़ाई में जुटी रहीं। अदीबा ने प्रारंभिक शिक्षा जिला परिषद उर्दू स्कूल से पूरी की। इंटरमीडिएट में उन्होंने 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।...

Uploaded on 05-Jun-2025

कच्चे आम की मीठी चटनी

कच्चे आम की मीठी चटनी...

महमूदा बानो (जबलपुर)गर्मियों का मौसम आते ही फलों के राजा ‘आम’ भी नमूदार हो जाते हैं और फिर हम सब जुट जाते हैं तरह तरह की आम की रेसिपी बनाने में। तो मौसम के मिजाज़ को देखते हुए रसोई टिप्स में आपके लिए पेश है आम की एक लाजबाब रेसिपी। सामग्रीः- कच्चे आम 1 किलो,  500 ग्राम शक्कर, 2 चाय का चम्मच जीरा भुना हुआ, 2 चाय का चम्मच राई भुनी, लाल मिर्च पाउडर 1 चम्मच, मीठा तेल एक बड़ा चम्मच, तीन-चार इलायची दाने,गार्निश के लिए नारियल कद्दूकश किया हुआ, कुछ काजू के टुकड़े , रेसिपी:-आम के छिलके उतार कर कद्दूकस कर लें।एक पैन में 1 चम्मच तेल डालकर इलायची के दाने डालें दो कप पानी डालकर शक्कर डालें और एक तार की चाशनी तैयार कर लीजिए। फिर उसमें कद्दूकस किया हुआ आम डाल दें। 10 मिनट बाद ज़ीरा और राई को भून कर पीस लें और मिश्रण में शामिल कर दें। लाल मिर्च पाउडर भी डाल दें, कुछ देर चलाएं पानी सूखने लगे तो गैस पर से उतार लेंपिसे हुए नारियल और काजू के टुकड़े से गार्निश कर स्वादिष्ट चटनी का मज़ा लें और घर वालों को भी परोसें। इसे आप कुछ दिन के लिए स्टोर भी कर सकती हैं ।...

Uploaded on 05-Jun-2025

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य...

श्रीमती नायला खालिदएमएससी बॉटनी (एमयू अलीगढ़)आज फूलों की एक नर्सरी से गुज़र हुआ जहां पर रंग बिरंगें खूबसूरत फूल नर्सरी की सुंदरता बढ़ा रहे थे। सारे फूल इतने रचनात्मक और व्यवस्थित तरीके से सजे हुए थे कि उन्हें देखकर नर्सरी के माली की कलात्मकता का लोहा माने बगैर कोई रह ही नहीं सकता था। माली की इस कला को देख मैं यूंही सोचने लगी कि एक नारी भी तो माली के ही समान होती है। परिवार की देखभाल करने वाली, परिवार की ज़रुरतों का ख़्याल रखने वाली, उन्हें सहेज कर रखने वाली और सबसे बढ़कर एक परिवार में ऐसा वातावरण बनाकर रखने वाली कि घर के हर सदस्य को सहज वातावरण मिल सके। वह खुश रहे और मानसिक रुप से स्वस्थ रहे। इन बहुत सारे दायित्वों को निभाते हुए अकसर स्वयं उसका मानसिक स्वास्थ्य उपेक्षित रह जाता है।एक महिला परिवार और समाज की रीढ़ होती है क्योंकि जिस परिवार की वह संरक्षक है वह समाज की ईकाई है। इस कारण एक महिला का मानसिक स्वास्थ्य ना केवल उसकी स्वयं की भलाई के लिए अपितू समाज के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि मानसिक रुप से मज़बूत महिला न केवल अवसाद और बीमारियों से दूर रहती है बल्कि आत्मविश्वास, उत्साह, सकरात्मकता...

Uploaded on 05-Jun-2025

‘ईर्ष्या’ एक ऐसी सामाजिक बुराई जो महिलाओं की सफलता

‘ईर्ष्या’ एक ऐसी सामाजिक बुराई जो महिलाओं की सफलता...

रज़िया मसूद भोपाल, मध्य प्रदेशइस्लाम जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं की ज़िम्मेदारी और महत्व पर ज़ोर देता है, जिसमें परिवार, समाज और धर्म में उनकी गरिमापूर्ण भूमिकाएं शामिल हैं। कुरआन और हदीस की कुछ आयतें इसे स्पष्ट करती हैं।1. सामाजिक और नैतिक कर्तव्य: “ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं एक-दूसरे की सहयोगी हैं। वे सही काम करने का आदेश देते हैं और गलत काम करने से रोकते हैं” (9:71)। महिलाएं परिवारों और समाज में न्याय और नैतिकता को बनाए रखकर समाज में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार हैं।2. शिक्षा और ज्ञान  "अल्लाह तुममें से ईमान वालों और जिन्हें ज्ञान दिया गया है, उन्हें क्रमशः ऊंचा उठाएगा” (58:11)। यह आयत महिलाओं को समाज और परिवार में शिक्षा के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार बनाती है।3. आर्थिक और कानूनी अधिकार: “जो कुछ मर्दों ने कमाया है उसके अनुसार उनका हिस्सा है और जो कुछ औरतों ने कमाया है उसके अनुसार उनका हिस्सा है" (4:32)।  यह आयत पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान अधिकारों का संकेत देती है। 4. आध्यात्मिक समानता और ज़िम्मेदारी: "वास्तव में, मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिलाएं, ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं, आज्ञाकारी पुरुष और आज्ञाकारी महिलाएं, सच्चे पुरुष और सच्ची महिलाएं, धैर्यवान पुरुष...

Uploaded on 05-Jun-2025

युद्ध नहीं, शांति चाहिए

युद्ध नहीं, शांति चाहिए...

युद्ध किसी का भला नहीं करता: क्या वास्तव में युद्ध में कोई जीतता है?डॉ. मुहम्मद इक़बाल सिद्दीक़ीमरकज़ी सेक्रेट्री, जमाअत-ए-इस्लामी हिंदजब भारत-पाकिस्तान सीमा पर तोपें गरजती हैं और युद्धोन्माद के बोझ तले धरती कांपने लगती है, जब दो देशों का राष्ट्रीय गौरव आक्रामक मुद्रा में खड़ा सशस्त्र संघर्ष की आवाज़ लगाता है तब वातावरण दुःख, भय और अनिश्चितता से भर जाता है। गोलीबारी केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि खेतों और गाँवों में भी ज़िंदगियां लील लेती हैं। जहाँ माताएँ अपने बच्चों को गोद में लिए बैठी होती हैं, किसान अपनी ज़मीन में हल चला रहे होते हैं, और स्कूली बच्चे एक उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे होते हैं। ऐसे समय में, प्रोपेगंडे के धुंधलके को चीरती हुई सच्चाई सामने आने लगती है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सादतुल्लाह हुसैनी ने सही कहा, “युद्ध और संघर्ष किसी के हित में नहीं हैं।” उनके ये शब्द एक बयान मात्र नहीं, बल्कि 21वीं सदी में सशस्त्र संघर्ष के पागलपन को नकारने की नैतिक पुकार हैं।भारतीय संदर्भ में, यह अपील अत्यंत आवश्यक हो जाती है। शांति का संरक्षण, भारत की बहुलतावादी भावना की रक्षा, और संवैधानिक मूल्यों की पवित्रता को सभी युद्धोन्मादी मुद्राओं से ऊपर रखा जाना चाहिए। ऐसे समय में जब विविधता...

Uploaded on 05-Jun-2025

बच्चों के सिलेबस में परिवर्तन

बच्चों के सिलेबस में परिवर्तन...

मुगल इतिहास को हटाया जानारेहाना परवीन सद्भावना मंच प्रभारी, जमात-ए-इस्लामी हिंद,छत्तीसगढ़एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा के सिलेबस में कुछ बड़े बदलाव करते हुए मुगल इतिहास को सिलेबस से हटा दिया है। अब मुगल साम्राज्य से जुड़े कुछ चैप्टर किताबों में नहीं है तथा मुगल दरबार को हटा दिया गया है। इसके तहत बच्चों को अकबरनामा और बादशाहनामा मुगल शासक और उनका साम्राज्य रंगीन चित्र, आदर्श राज्य राजधानियां और दरबार पदवियां, उपहार और भेंट शाही परिवार, शाही नौकरशाही जैसे विषय पढ़ाये जाते थे।इसी तरह एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं में इतिहास की पाठ्य पुस्तक से मुगलो और दिल्ली सल्तनत से संबंधित सभी संदर्भ हटा दिए गए हैं और उनके स्थान पर भारतीय राजवंश, महाकुंभ, मेक इन इंडिया, अटल सुरंग और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे नए संदर्भ जोड़ दिए गए हैं। कहा जा रहा है कि नई पाठ पुस्तकों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के अनुसार तैयार किया गया है।मुगल इतिहास के अतिरिक्त एनसीईआरटी ने कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा आरएसएस पर लगाए गए संक्षिप्त प्रतिबंध से संबंधित कुछ पैराग्राफ भी हटा दिए हैं। साथ ही गांधी जी द्वारा हिंदू मुस्लिम...

Uploaded on 05-Jun-2025

शाकाहार वर्चस्व की राजनीति का प्रतिरोध

शाकाहार वर्चस्व की राजनीति का प्रतिरोध...

सलमान अहमदमीडिया सेक्रेट्री, जमाअत-ए-इस्लामी हिंदएक निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण समाज में हर किसी को अपना आहार चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, परंतु शर्त यह है कि इससे स्वयं को या समाज को कोई क्षति ना पहुंचे। यदि एक समूह की धारणा है कि विशेष खाद्य पदार्थ पर प्रतिबंध लगे, जबकि दूसरा समूह उसके उपभोग को स्वीकार करता है, तो उस समूह द्वारा बलपूर्वक अपनी आहार संबंधी प्राथमिकताओं को दूसरों पर नहीं थोपा जाना चाहिए।दुर्भाग्यवश, हमारे देश में भोजन की आदतें और आहार संबंधी विकल्प अकसर भेदभाव, उत्पीड़न और यहां तक कि हिंसा का साधन बन जाते हैं। कई लोग, विशेषकर वे जो शाकाहारी या शुद्ध शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं, इस मिथक के साथ कि भारत मुख्य रुप से शाकाहारी, सुझाव देते हैं कि जो लोग मांसाहारी हैं वे किसी न किसी रुप में भारतीय संस्कृति और धार्मिक मूल्यों का उल्लंघन कर रहे हैं। इस मानसिकता के कारण मांस खाने वालों को अकसर हीन, क्रूर या असभ्य समझा जाता है।इस प्रकार की पूर्वाग्रही सोच ने कई बार मांसाहारी समुदायों के खिलाफ भेदभाव और शत्रुता को बढ़ावा दिया है, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और पूर्वोत्तर तथा तटीय क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। ये पूर्वाग्रह न केवल...

Uploaded on 05-Jun-2025

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसः नफ़रती पूर्वाग्रह से ग्रसित तकनीक

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसः नफ़रती पूर्वाग्रह से ग्रसित तकनीक...

मोहम्मद इक़बालकल्पना कीजिए...आप एक नौकरी के लिए आवेदन करते हैं। आपकी डिग्रियां, अनुभव और स्किल्स सब कुछ बेहतरीन हैं। लेकिन इंटरव्यू से पहले ही आपका नाम देखकर एक AI सिस्टम आपको “अयोग्य” बता देता है। सिर्फ इसलिए कि आपका नाम “अब्दुल”, “फातिमा”, या “आरिफ़” है।आप एयरपोर्ट पर हैं—थोड़े थके हुए, हाथ में बोर्डिंग पास, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान। लेकिन तभी अचानक सिक्योरिटी आपको रोक लेती है। कुछ नहीं कहा जाता, बस आपके नाम को देखकर एक AI-चालित सिस्टम ने “फ्लैग” कर दिया।आपका जुर्म?“अब्दुल रहमान” नाम होना।निष्पक्षता का भ्रम -अब सोचिए—अगर एक इंसान ऐसा करता, तो आप कह सकते थे कि वो पक्षपाती है। लेकिन जब एक मशीन ये फ़ैसला लेती है, तो हम उसे कैसे चुनौती देंगे?यही तो असल संकट है आज जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जो कि “निष्पक्ष” और “तथ्यों पर आधारित” होने का दावा करता है, वह भी हमारे समाज की पुरानी नफ़रतों और पूर्वाग्रहों को दोहराने लगे।AI आज केवल टेक्नोलॉजी नहीं, यह हमारी सोच को आकार देने वाली ताक़त बन चुकी है और जब यह ताक़त किसी धर्म, रंग, नस्ल या जाति को खतरे के रूप में पेश करती है, तो नुकसान सिर्फ एक इंसान का नहीं होता बल्कि पूरे समाज का होता है।आज के ज़माने...

Uploaded on 05-Jun-2025

‘माहवारी कोई श्राप या अप्राकृतिक चीज़ नहीं है जिस

‘माहवारी कोई श्राप या अप्राकृतिक चीज़ नहीं है जिस...

2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत में महिलाओं की आबादी लगभग 49 प्रतिशत के आसपसास है। अर्थात इस देश की आधी आबादी महिलाओं की है। इसके बावजूद हमारे देश में माहवारी पर बोलना, चर्चा करना आज भी शर्म की बात माना जाता है। जबकि अनेकों जागरुकता कार्यक्रम, अभियान इत्यादि सरकार व निजी सामाजिक संस्थाओं की ओर से चल चुके हैं। माहवारी की मूल समस्या और गरीब वर्ग में जागरुकता की कमी आदि मुद्दों पर आभा संपादकीय बोर्ड सदस्य तूबा हयात खान ने बात की दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हमराह सिद्दीकी से। डॉक्टर हमराह इलाहाबाद विश्विद्यालय से पढ़ी हैं और 35 वर्ष से प्रैक्टिस कर रही हैं। उन्होंने मलिन बस्तियों में माहवारी के प्रति जागरुकता फैलाने का भी काम किया है। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंशः-सवाल: भारतीय समाज में मासिक धर्म से संबंधित सबसे प्राथमिक और मूल समस्या क्या है?जवाब: समस्याएं तो बहुत सी हैं, विशेषकर ग़रीब परिवारों में। लेकिन मूल समस्या इस विषय पर बात ना होना है। आज भी लोग मासिक धर्म को लेकर लज्जा और शर्म के कारण घर वालों को बताते नहीं हैं कि यह क्या होता है। अधिकांश यह देखा गया है कि किसी लड़की के पहली बार पीरियड्स आते हैं तो...

Uploaded on 05-Jun-2025

युद्ध, हिंसा और तनाव में दौनों पक्ष ही हारते

युद्ध, हिंसा और तनाव में दौनों पक्ष ही हारते...

प्रोफेसर सलीम इंजीनियर चेयरपर्सन अवेयर ट्रस्ट22 अप्रैल 2025 को काश्मीर के पहलगाम की बाइसरान  घाटी में आतंकवादियों ने 26 निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर दी, जिस से पूरा देश दहल गया और दुनिया भर में इस दुख को महसूस किया गया और कड़ी निंदा की गई। जिन परिवारों ने इस हमले में अपनों को खोया उनके दुख और विपदा की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस निर्मम हत्या कांड की आड़ में  कुछ देश और समाज विरोधी तत्वों और मीडिया के एक वर्ग ने देश में धर्म की बुनियाद पर नफरत फैलाने की कोशिश भी की जिसे भारत की जनता ने एक जुट होकर नाकाम कर दिया। इस आतंकी हमले के समय मौजूद स्थानीय कश्मीरी ग़रीब मुसलमानों ने अपनी जान पर खेल कर और कुछ ने अपनी जान कुर्बान करके सैलानियों की मदद की और उनको सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया और  नफ़रत और घृणा के दानव को प्रेम और इंसानियत की ताकत से परास्त कर दिया। आतंकवाद अर्थात निर्दोष लोगों की हत्याएं करके भय और आतंक फैलाना किसी भी स्तिथि में संपूर्ण मानव जाति के खिलाफ एक घिनौना अपराध है। आतंकवाद चाहे वह किसी भी रुप में हो और वह चाहे किसी की भी तरफ से हो उसे...

Uploaded on 05-Jun-2025

हजः मानव समानता एवं वैश्विक भाईचारा

हजः मानव समानता एवं वैश्विक भाईचारा...

डॉक्टर फरहत हुसैन रिटायर्ड प्रोफेसर, रामनगर,उत्तराखंडसंयुक्त राज्य अमेरिका में रंग एवं नस्ल की समस्या से जूझते हुए अफ़रीक़ी मूल के एक बड़े लीडर मैल्कम एक्स (Malcolm X) ने जब इस्लामी शिक्षाओं में मानव समानता के सिद्धांत का अध्ययन किया और अपने संपर्क में आए मुसलमानों के व्यवहार को परख़ा तो उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। सन 1964 में जब वह हज की तीर्थ यात्रा पर गए तो पुकार उठे कि यह है वास्तविक मानव समानता तथा विश्व बंधुत्व। हज यात्रा के उनके संस्मरणों में उन्होंने स्वीकार किया है कि रंग और नस्ल के भेदभाव तथा सामाजिक असमानता का एक मात्र समाधान इस्लाम में है जिसका प्रत्यक्ष एवं व्यवहारिक रुप हज यात्रा में मिलता है। मैल्कम एक्स (जो बाद में मलिक अल शाबाज़ के नाम से जाने गए) अपने एक पत्र में लिखते हैः-“मैंने कहीं और, सभी रंगों और जातियों के लोगों द्वारा की गई ऐसी ईमानदार मेहमान नवाज़ी और सच्चे भाईचारे की ज़बरदस्त भावना को नहीं देखा जो मुझे हज़रत इब्राहिम अलै० और पैगंबर मुहम्मद स०अ०व० की इस पवित्र भूमि (अर्थात मक्का, मदीना आदि) में देखने को मिली।”“(हज में) हम सभी वास्तव में एक जैसै थे क्योंकि एक ईश्वर में उनकी आस्था ने उनके दिमाग...

Uploaded on 05-Jun-2025

हाजरा अलै० का जीवन : आशा, धैर्य, साहस का

हाजरा अलै० का जीवन : आशा, धैर्य, साहस का...

रजीना बेग़मSecretary TWEET Foundationइतिहास अतीत का ठहरा हुआ पानी नहीं बल्कि हमारे वर्तमान अस्तित्व के संघर्ष की प्रेरक धारा है। मुस्लिम समाज जो आज समूचे विश्व में अपने ठोस अस्तित्व के लिए संघर्ष करता हुआ प्रतीत हो रहा है वह अतीत में भी भयानक परिस्थितियों से गुज़र चुका है। समय के चक्र ने उसे कई बार ऐसी ऐसी भयानक परिस्थितियों से चमत्कारिक रुप से उबरते हुए देखा है जहां से वापस लौटना असंभव था। जब हम किसी मुश्किल का सामना कर रहे होते हैं तो हमारे मन में कई प्रकार के सवाल उठते हैं। जैसे कि हमें ही क्यों ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है? हमारे ही ऊपर क्यों यह दुखों का पहाड़ टूटा? जबकि हम ज़्यादा इबादत करते हैं, अल्लाह के हुक्म को ज़्यादा मानते हैं। और जो लोग दिन रात अल्लाह की नाफरमानी कर रहे हैं वह हमसे ज़्यादा अच्छी ज़िंदगी जी रहे हैं। उन्हें सबकुछ मिलता है जो वह चाहते हैं लेकिन हमें क्यों नहीं?लेकिन हमारे सामने पूरे इस्लामिक इतिहास का उदाहरण मौजूद है कि अल्लाह हमें यूं ही अकेला नहीं छोड़ता। उसने हमारे लिए संदेश भेजे, संदेशवाहक के रुप में ऐसे लोगों को हमारे बीच भेजा जो हमारे जैसी परिस्थितियों से (या यूं कहें कि...

Uploaded on 05-Jun-2025

हज़रत इब्राहीम अलै० और उनके परिवार से सबक लेने

हज़रत इब्राहीम अलै० और उनके परिवार से सबक लेने...

आरिफ़ा परवीनप्रधान संपादककिसी भी देश या समाज के लिए कोई भी त्यौहार सामूहिक आनंद का दिन होता और यह मनुष्य और मानव समाज की स्वाभाविक आवश्यकता भी है। यही कारण है कि हर युग और हर समाज में त्यौहारों का प्रचलन किसी न किसी रूप में देखने को मिलता है। त्यौहारों के द्वारा ही हम किसी समाज या संस्कृति को अच्छे से समझ सकते हैं। ईश्वर ने मानवीय मानसिकता पर विशेष ध्यान दिया है। मनोरंजन की इस स्वाभाविक मांग के कारण, जो प्रत्येक मनुष्य की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है उसे कुछ सीमाओं और प्रतिबंधों के साथ खुशी के अवसर प्रदान किए गए हैं। प्रत्येक मुसलमान के लिए इन सीमाओं और निषेधों का पालन करना अनिवार्य और आवश्यक है। इस्लाम में इन खुशी के अवसरों को "ईद" कहा जाता है। यदि इन्हें उचित शिष्टाचार और शर्तों के साथ मनाया जाए तो इससे मनोवैज्ञानिक आवश्यकता भी पूरी होती है।मनोरंजन के लिए लोग आमतौर पर जिन प्रकार के त्यौहारों और अवसरों पर उत्सव मनाते हैं, उनमें से किसी को भी अल्लाह ने मनोरंजन या त्यौहार के रूप में नहीं चुना है। इस्लाम में केवल दो ईद होती हैं। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पवित्र कथन है: "प्रत्येक राष्ट्र की एक ईद (खुशी...

Uploaded on 05-Jun-2025

पहलगाम में हुआ आतंकी हमला निंदनीय, जल्द न्याय मिले

पहलगाम में हुआ आतंकी हमला निंदनीय, जल्द न्याय मिले...

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद सआदतुल्लाह हुसैनी ने मंगलवार को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले की कड़ी निंदा की। इस हमले में पर्यटकों समेत कई निर्दोष स्थानीय लोगों की मौत हो गई। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष ने राज्य और केंद्रीय प्रशासन से पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने, सुरक्षा उपाय मज़बूत करने और कमज़ोर सुमदायों की सुरक्षा के लिए निर्णायक एवं पारदर्शी कदम उठाने का आग्रह किया है।सैय्यद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा, “हम 23 अप्रैल को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आंतकी हमले की कड़ी निंदा करते हैं। विदेशी पर्यटकों सहित निर्दोष लोगों की मौत बेहद दुखद है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं पीड़ितों और उनके शोकाकुल परिवारों के साथ है। इस तरह के बर्बर कृत्य को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह पूरी तरह अमानवीय है और इसकी पूरी तरह से निंदा की जानी चाहिए। ज़िम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए और उन्हें कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।”Heading :पहलगाम हमले में लोगों की जान बचाते हुए शहीद हुआ कश्मीरी युवा आदिल हुसैन शाहBody Text:“यह बेकसूर हैं, इन्हें जाने दो..इस्लाम किसी बेकसूर पर ज़ुल्म करने की इजाज़त नहीं देता” यह शब्द हैं आदिल हुसैन शाह के जिसने पहलगाम आंतकी...

Uploaded on 05-May-2025

बहादुरी की दो मिसालः इब्तिहाल और वानिया

बहादुरी की दो मिसालः इब्तिहाल और वानिया...

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के पचास वर्ष पूरे होने पर सफलता का जश्न मनाया जा रहा था। वाशिंगटन के एक बड़े से कांफ्रेंस हॉल में विशाल आयोजन हुआ था जहां कंपनी के सारे वर्कर्स मौजूद थे। एक सेशन में कंपनी के मालिक बिल गेट्स भी मौजूद थे। जिसमें माइक्रोसॉफ्ट के AI सेक्शन के सीईओ मुस्तफा सुलेमान स्टेज पर बिल गेट्स के सामने AI के फायदे गिना रहे थे। वह बड़े गर्व से बता रहे थे कि किस तरह AI यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता के लिए लाभकारी साबित हुई है। इतने में हिम्मत, हौसले व बहादुरी का सबूत देते हुए एक लड़की खड़ी हुई और स्टेज के पास पहुंच कर सीईओ मुस्तफा सुलेमान को लानत करते हुए कहने लगी, “मुस्तफा तुम्हें शर्म आनी चाहिए, तुम और तुम्हारी यह कंपनी फिलीस्तीन में पचास हज़ार से ज़्यादा मासूमों की हत्या की ज़िम्मेदार है।” अभी लोग कुछ समझ पाते तब तक उसने फिलीस्तीनी कैफिया सबके सामने लहराते हुए उछाल दिया। सिक्योरिटी गॉर्ड उसे पकड़कर बाहर ले जाने लगे लेकिन वह चिल्लाती रही और मुस्तफा सुलेमान को शर्म दिलाने की कोशिश करती रही। वह चीख चीख कर कहती रही, “मुस्तफा सीरिया में मौजूद तुम्हारा परिवार तुम्हारी असलियत जान लेगा।”फिलीस्तीन के समर्थन में इस तरह की बहादुरी दिखाने...

Uploaded on 05-May-2025

क्या आप सोते रहना चाहते है जब तक अस्पताल

क्या आप सोते रहना चाहते है जब तक अस्पताल...

कल्पना कीजिए कि आप अपने कमरे में शांति से सो रहे हैं और अचानक आपके घर में आग लग जाती है। लेकिन बजाय जागने और खुद को बचाने या आग बुझाने के, आप सोते रहते हैं। यह बात अजीब लगती है न? या सोचिए कि आप जानबूझकर कोई ज़हरीली चीज़ खा रहे हैं, जबकि आप उसके दुष्प्रभावों को जानते हैं—और फिर भी आप उसे खा लेते हैं। ये उदाहरण भले ही अतिशयोक्तिपूर्ण लगें, लेकिन रूपक के तौर पर देखें तो आजकल हम में से बहुत से लोग अपनी सेहत के साथ यही कर रहे हैं।आधुनिक दुनिया में स्वास्थ्य की स्थितिआज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में स्वास्थ्य को एक तरफ सराहा जाता है, तो दूसरी ओर पूरी तरह नज़रअंदाज़ भी किया जाता है। एक ओर लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं, लेकिन अक्सर गलत कारणों से। बहुत से लोग स्वस्थ इसलिए नहीं बनना चाहते कि वे फिट और ऊर्जावान रहें, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें सोशल मीडिया पर अच्छा दिखना है या “परफेक्ट” बॉडी चाहिए।दूसरी ओर, बड़ी आबादी चुपचाप बीमारी की ओर बढ़ रही है—बुरी आदतों, बैठकर बिताई जाने वाली जीवनशैली और उन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति के कारण, जो समय रहते सुधार की ओर इशारा करती हैं।स्वास्थ्य...

Uploaded on 05-May-2025

परिवार: एक स्वस्थ समाज की नींव

परिवार: एक स्वस्थ समाज की नींव...

दुनिया अकल्पनीय गति से आगे बढ़ रही है। हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि व्यक्तिवाद एकजुटता पर हावी हो रहा है। इसलिए, परिवार के महत्व के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिए परिवार के सार पर फिर से विचार करना बहुत ज़रूरी हो गया है। एक परिवार सिर्फ़ रक्त या विवाह से जुड़े लोगों का समूह नहीं है, यह एक पवित्र संस्था है, मूल्यों, नैतिकता और भावनात्मक सुरक्षा के लिए पोषण करने वाली ज़मीन है। साथ ही यह वह वास्तविक स्थान है जहाँ प्रतिभाएँ निखरती या दबती हैं। यह वह आधार है जिस पर एक मज़बूत और स्थिर समाज का निर्माण होता है। अगर इसे महत्व नहीं दिया जाता है तो यह पूरे सामाजिक ढांचे को बाधित करता है।परिवार हर समाज की नींव है। यह वह पहला स्थान है जहाँ मूल्यों का पोषण होता है, जहाँ व्यक्तित्व का निर्माण होता है और जहाँ व्यक्ति दूसरों के साथ मिलकर रहना सीखते हैं। आज की तेज़-रफ़्तार दुनिया में, परिवार का महत्व और भी बढ़ गया है। व्यस्त शेड्यूल और अंतहीन विकर्षणों के बीच, परिवार भावनात्मक शक्ति और नैतिक मार्गदर्शन का स्रोत बने हुए हैं।एक परिवार का प्रत्येक सदस्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, माता-पिता सिर्फ़...

Uploaded on 05-May-2025