शाकाहार वर्चस्व की राजनीति का प्रतिरोध...
सलमान अहमदमीडिया सेक्रेट्री, जमाअत-ए-इस्लामी हिंदएक निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण समाज में हर किसी को अपना आहार चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, परंतु शर्त यह है कि इससे स्वयं को या समाज को कोई क्षति ना पहुंचे। यदि एक समूह की धारणा है कि विशेष खाद्य पदार्थ पर प्रतिबंध लगे, जबकि दूसरा समूह उसके उपभोग को स्वीकार करता है, तो उस समूह द्वारा बलपूर्वक अपनी आहार संबंधी प्राथमिकताओं को दूसरों पर नहीं थोपा जाना चाहिए।दुर्भाग्यवश, हमारे देश में भोजन की आदतें और आहार संबंधी विकल्प अकसर भेदभाव, उत्पीड़न और यहां तक कि हिंसा का साधन बन जाते हैं। कई लोग, विशेषकर वे जो शाकाहारी या शुद्ध शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं, इस मिथक के साथ कि भारत मुख्य रुप से शाकाहारी, सुझाव देते हैं कि जो लोग मांसाहारी हैं वे किसी न किसी रुप में भारतीय संस्कृति और धार्मिक मूल्यों का उल्लंघन कर रहे हैं। इस मानसिकता के कारण मांस खाने वालों को अकसर हीन, क्रूर या असभ्य समझा जाता है।इस प्रकार की पूर्वाग्रही सोच ने कई बार मांसाहारी समुदायों के खिलाफ भेदभाव और शत्रुता को बढ़ावा दिया है, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और पूर्वोत्तर तथा तटीय क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। ये पूर्वाग्रह न केवल...
Uploaded on 05-Jun-2025