शीर्षक: "मैं अभी जि़ंदा हूं"...
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस का संदेश यही है नारी सिर्फ संबंधों की परिभाषा नहीं,वह स्वयं एक संपूर्ण सृष्टि है।"कि हर स्त्री, हर हाल में पूर्ण है।वह छाया नहीं, स्वयं धूप है।पति गया तो दुनिया ने कहा अब तो बस छाया रह गई,सपनों की वह रंगी दुनियाजैसे बिन परछाईं रह गई।सफेद साड़ी, मौन लबों पर,एक स्त्री को जंज़ीर मिली,शोक से बढ़कर शोक यही था,जीवन भर की तौहीन मिली।माथे का सिंदूर मिटाया,हंसी को पाप बताया गया,कभी बहू, कभी माँ कहकर,हर रूप को ठुकराया गया।पर मैं टूटी नहीं, रुकी भी नहीं,अंदर ज्वाला फिर से जलती है,मैं अब सिर्फ विधवा नहीं,एक औरत भी हूं — जो चलती है।मैंने कांधे पर बोझ उठाया,बच्चों को फिर से पढ़ाया है,बिना किसी सहारे के भी,जीवन को मैंने अपनाया है।न मैं शोक की परिभाषा हूं,न टूटी कोई आशा हूं,मैं जीवन की धड़कन हूं,सपनों संग अभिलाषा हूं।पति के साथ एक राह थी,पर अब राहें और भी होंगी,सिर्फ रिश्तों और घर से नहीं,अब पहचानें और भी होंगी।मेरे माथे का उजियारा,सिर्फ सिंदूर नहीं होता,मेरी बातों का उजास भी,एक सूरज की तरह होता।आज सूरज मेरे लिए भी उगता है,चाँदनी मुझ पर भी छाई है,मेरे आँचल में भी सपने हैं,मेरी आंखों में भी रौशनी आई है।विधवा कहो या नारी कहो,अब सीमाएं नहीं स्वीकार,मैं खुद को फिर से...
Uploaded on 05-Jul-2025