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दिशाहीन होते समाज को बचाना हमारी ज़िम्मेदारी

दिशाहीन होते समाज को बचाना हमारी ज़िम्मेदारी...

रुपा ने जैसे ही जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा घर में उसके विवाह की सुगबुगहाट शुरु हो गई। चलते फिरते, उठते बैठते उसे शादी बाद ससुराल में रहने के तौर तरीके सिखाए जाने लगे। कभी वह अपनी मां को पिता से बात करते हुए सुनती कि “सुनिए जी! अपनी रुपा के लिए ऐसा लड़का ढूंढें जो अच्छा कमाता हो” तो कभी वह दादी मां को यह कहते हुए सुनती कि “लड़के के पास घर जायदाद ज़रुर होनी चाहिए।” इस प्रकार जीवन में रुपा ने जैसे ही विवाह जैसी संस्था के बारे में जाना समझा, ठीक उसी के साथ यह भी समझ लिया कि विवाह जैसे पवित्र बंधन के लिए पैसा ज़्यादा ज़रुरी है। तभी ज़िंदगी ऐश व आराम से गुज़रेगी। यह हमारे समाज का केवल एक उदाहरण है। अगर हम अपने आसपास देखें तो हमें अवश्य यह देखने को मिलेगा कि परिवार को बनाने, उसे संवारने के लिए जिन रिश्तों की ज़रुरत होती है उसे लोग पैसे की बुनियाद पर ही टिकाने की कोशिश करते हैं। और यही कारण है कि परिवार और रिश्तों से अपनत्व, प्रेम व सहयोग समाप्त होता जा रहा है।  कहा जाता है कि परिवार ही समाज की नींव होता है। यदि परिवार नफरत, साजिशों से...

Uploaded on 05-Jul-2025

शहादत इमाम हुसैन (रज़ि०)

शहादत इमाम हुसैन (रज़ि०)...

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी (रह०) की पुस्तक, शहादत इमाम हुसैन (रज़ि०), एम०एम०आई० पब्लिशर्स, नई दिल्ली से संकलित हर साल करोड़ों मुसलमान मुहर्रम के महीने में हज़रत इमाम हुसैन(रज़ि०) की शहादत पर अपने दुख और ग़म का इज़हार करते हैं लेकिन अफ़सोस है कि इनमें से बहुत ही कम लोग उस मक़सद पर ध्यान देते हैं जिसके लिए इमाम हुसैन ने न केवल यह कि अपनी प्यारी जान क़ुर्बान कर दी बल्कि अपने ख़ानदान के बच्चों तक को क़ुर्बान कर दिया। अगर यह शहादत किसी बड़े मक़सद के लिए नहीं होती तो सिर्फ़ निजी प्रेम और संबंध के कारण सदियों तक उसका दुख़ जारी रहने का कोई मतलब नहीं। और स्वयं इमाम हुसैन की अपनी नज़र में व्यक्तिगत और चरित्र प्रेम की क्या क़ीमत हो सकती थी। उन्हें अगर स्वयं का चरित्र उस उद्देश्य से ज़्यादा प्रिय होता तो वह उसे क़ुर्बान ही क्यों करते। उनकी यह क़ुर्बानी तो ख़ुद इस बात का सुबूत है कि वह उस उद्देश्य को अपनी जान से बढ़कर चाहते थे। अब हमें यह देखना चाहिए कि वह क्या मक़सद था जिसके लिए इमाम हुसैन (रज़ि०) ने अपनी जान की बाज़ी लगाई? दरअसल यज़ीद को उत्तराधिकारी के रुप में देखकर हज़रत इमाम हुसैन समझ गए थे...

Uploaded on 05-Jul-2025

दुआ: एक हथियार जो दिल से चलता है

दुआ: एक हथियार जो दिल से चलता है...

ज़िंदगी में जब शब्द कम पड़ जाएँ, जब हालात हाथ से निकलने लगें, तब जो चीज़ हमारे साथ रह जाती है वो है दुआ। अर्थात दिल की पुकार, एक ऐसी सच्ची आवाज़ जो इंसान से ऊपरवाले तक जाती है चुपचाप, मगर असरदार। यह हथियार हर किसी के पास होता है पुरुष, महिला, युवा, वृद्ध, हर दिल के पास। केवल अंतर सिर्फ़ इतना है कि कोई इसे पहचानता है, कोई नहीं।हम ज़िंदगी में दो तरह की दुआएँ माँगते हैं:छोटी दुआएँ — जैसे “आज मेरा दिन अच्छा जाए”, “मुझे वो पसंदीदा खाना मिल जाए”, “फोन ठीक से चल जाए”, “इंटरनेट चालू रहे” इत्यादि।ये दुआएँ अक्सर तुरंत पूरी हो जाती हैं। हम सोचते भी नहीं कि इन्हें भी किसी ने कबूल किया।बड़ी दुआएँ — जैसे “मैं डॉक्टर बन जाऊँ”, “मुझे एक सच्चा जीवनसाथी मिले”, “मेरे माँ-बाप का सपना पूरा हो”...ये दुआएँ वक्त माँगती हैं। ये दुआएँ हमारी मेहनत के रास्तों से होकर पूरी होती हैं।मान लीजिए आपने दुआ माँगी कि आप डॉक्टर बनें। क्या ये एक दिन में मुमकिन है? नहीं। मगर ईश्वर आपकी बात सुनता है, और फिर वह आपको उस रास्ते पर चलाना शुरू करता है जहाँ से आपकी मंज़िल तक पहुँचना संभव हो।वह आपको अच्छे शिक्षक देता है, संघर्ष देता...

Uploaded on 05-Jul-2025

मुहर्रम और इस्लामी कैलेण्डर हिजरी

मुहर्रम और इस्लामी कैलेण्डर हिजरी...

'मुहर्रम' माह का चांद नज़र आते ही इस्लामी कैलेण्डर हिजरी 1447 शुरू हो जाता है। 'मुहर्रमुल हराम' इस्लामी कैलेण्डर हिजरी का पहला महीना है जिसे आम बोलचाल की भाषा में 'मुहर्रम कहते हैं।  अन्य सभ्यताओं की तरह इस्लामिक जीवन व्यवस्था, सभ्यता और संस्कृति के वाहकों ने भी अपना एक पंचांग, कैलेण्डर, संवत या सन् निर्धारित किया है जो हिजरी सन् के नाम से जाना जाता है और दुनिया में आज भी प्रचलित है।  हिजरी सन् को अरबी भाषा में ’अत्तक्वीम हिजरी’ और फारसी भाषा में ’तक्वीम-ए-हिजरी-ए- क़मरी’ कहते हैं। यहुदियों के हिब्रू कैलेण्डर की तरह हिजरी सन् चन्द्र दर्शन पर आधारित लुनार कैलेण्डर या चन्द्र काल दर्शक है। यह हर क्षेत्र में स्थानीय चन्द्र दर्शन पर आधारित होता है जिसमें अन्य कैलेण्डरों की तरह 12 महीने होते हैं किन्तु 354 या 355 दिन होते हैं। दुनिया के मुस्लिम देशों में प्रशासनिक स्तर पर, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक अवसरों के निर्धारण में तथा भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में रहने वाले मुसलमानों द्वारा सामाजिक व धार्मिक अवसरों, शादी विवाह के समारोहों व त्योहारों की तिथियां निर्धारत करने के लिये इस कैलेण्डर को ईस्वी सन् ग्रेगोरियन कैलेण्डर के साथ प्रयोग किया जाता है। पहला हिजरी सन् इस्लामिक शासन व्यवस्था के दूसरे खलीफा हज़रत उमर...

Uploaded on 05-Jul-2025

कारगिल दिवस

कारगिल दिवस...

कारगिल युद्ध में अपने जान की बाज़ी लगाकर अपने सच्चे देश प्रेम का प्रमाण प्रस्तुत करने और अपने देश की आन-बान व शान का परचम लहराने वाले शूरवीरों की याद में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल दिवस मनाया जाता है। यह दिवस भारतीय सेना के सैनिकों की बहादुरी और बलिदान की याद दिलाता है।कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच सन् 1999 में मई से जुलाई तक लद्दाख के कारगिल जिले में लड़ा गया था जो भारत प्रशासित राज्य जम्मू और कश्मीर का हिस्सा है, और नियंत्रण रेखा (एल ओ सी) पर स्थित है। भारतीय थल ने ऑपरेशन विजय चलकर और इसके साथ ही भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर चलाकर नियंत्रण रेखा पर स्थित भारतीय ठिकानों से पाकिस्तानी सेना व अर्धसैनिक बलों को खदेड़ दिया था, इस संघर्ष में भारतीय सेना के 572 सैनिकों को वीरगति प्राप्त हुई किंतु अंत में विजय भारत को ही हासिल हुई।3 मई 1999 को पाकिस्तान सेना ने कश्मीर के उग्रवादियों की वेशभूषा धारण करके नालो और घाटियों के रास्ते से घुसपैठ करके लद्दाख के कारगिल जिले में स्थित टाइगर हिल्स, जो द्रास सेक्टर में स्थित है और इसे पॉइंट 5062 या सर्जिग सी भी कहा जाता है, पर कब्जा कर लिया था।...

Uploaded on 05-Jul-2025

शीर्षक: "मैं अभी जि़ंदा हूं"

शीर्षक: "मैं अभी जि़ंदा हूं"...

अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस का संदेश यही है नारी सिर्फ संबंधों की परिभाषा नहीं,वह स्वयं एक संपूर्ण सृष्टि है।"कि हर स्त्री, हर हाल में पूर्ण है।वह छाया नहीं, स्वयं धूप है।पति गया तो दुनिया ने कहा अब तो बस छाया रह गई,सपनों की वह रंगी दुनियाजैसे बिन परछाईं रह गई।सफेद साड़ी, मौन लबों पर,एक स्त्री को जंज़ीर मिली,शोक से बढ़कर शोक यही था,जीवन भर की तौहीन मिली।माथे का सिंदूर मिटाया,हंसी को पाप बताया गया,कभी बहू, कभी माँ कहकर,हर रूप को ठुकराया गया।पर मैं टूटी नहीं, रुकी भी नहीं,अंदर ज्वाला फिर से जलती है,मैं अब सिर्फ विधवा नहीं,एक औरत भी हूं — जो चलती है।मैंने कांधे पर बोझ उठाया,बच्चों को फिर से पढ़ाया है,बिना किसी सहारे के भी,जीवन को मैंने अपनाया है।न मैं शोक की परिभाषा हूं,न टूटी कोई आशा हूं,मैं जीवन की धड़कन हूं,सपनों संग अभिलाषा हूं।पति के साथ एक राह थी,पर अब राहें और भी होंगी,सिर्फ रिश्तों और घर से नहीं,अब पहचानें और भी होंगी।मेरे माथे का उजियारा,सिर्फ सिंदूर नहीं होता,मेरी बातों का उजास भी,एक सूरज की तरह होता।आज सूरज मेरे लिए भी उगता है,चाँदनी मुझ पर भी छाई है,मेरे आँचल में भी सपने हैं,मेरी आंखों में भी रौशनी आई है।विधवा कहो या नारी कहो,अब सीमाएं नहीं स्वीकार,मैं खुद को फिर से...

Uploaded on 05-Jul-2025

मुस्लिम वैज्ञानिकों के महान कारनामों का परिचय कराती यह

मुस्लिम वैज्ञानिकों के महान कारनामों का परिचय कराती यह...

मुध्य युग के मुसलमानों की महान उपलब्धियांप्रस्तुत पुस्तक डॉक्टर गुलाम कादिर लोन की उर्दू पुस्तक “कुरुने-वुस्ता के मुसलमानों के साइंसी कारनामे” का हिंदी अनुवाद है। उर्दू में प्रकाशित होते ही इस पुस्तक के हिंदी अनुवाद की मांग ज़ोर शोर से होने लगी थी। पाठकों की मांग को देखते हुए एमएमआई पब्लिशर्स ने इसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया। आइए विस्तार से जानते हैं इस पुस्तक के बारे में।यूं तो मुस्लिम वैज्ञानिकों के योगदान की चर्चा हमेशा से होती रही है लेकिन डॉक्टर गुलाम कादिर लोन का कारनामा अद्भुत है। उन्होंने ज्ञान विज्ञान की सभी शाखाओं पर विस्तार से चर्चा की है और आंकड़ों एवं संदर्भों के द्वारा प्रमाणिक तथ्य प्रस्तुत किए हैं।उनकी उर्दू में प्रकाशित पुस्तक का परिचय कराते हुए दिवंगत डॉक्टर रफअत साहब (प्रोफेसर जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली) लिखते हैं, “कुछ समय पहले यह धारणा आम तौर से प्रचलित थी कि वैज्ञानिक विकास सूत्र केवल यूरोपीय देशों की ही देन है। धीरे-धीरे वैज्ञानिक क्षेत्रों में यह सत्य स्वीकार किया गया कि गैर-यूरोपीय देशों ने भी विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मिस्त्र, दक्षिण अमेरिका, चीन और भारत की प्राचीन संस्कृतियों के वैज्ञानिक पहलू को अब स्वीकार किया जाने लगा है। यद्यपि इस्लाम की छत्र-छाया में अरब क़ौमों...

Uploaded on 05-Jul-2025

दिखावा : एक सामाजिक बुराई

दिखावा : एक सामाजिक बुराई...

दिखावा इस एक शब्द में बहुत कुछ समाया हुआ है क्योंकि इस एक "दिखावे" के अंदर हर तरह का दिखावा सम्मिलित है। किसी के पास बहुत दौलत है तो वह उसका दिखावा करता है कोई बहुत सुंदर है, सुशील है तो उसका दिखावा करता है, किसी के पास विशाल मकान है या फिर एक अच्छा परिवार है तो वह दूसरों के सामने इतराते हैं और अपने परिवार वालों का दिखावा करते हैं।यह एक बहुत बड़ी बुराई की तरह समाज में फैल रहा है इसके कारण मनुष्य का असली रूप हमारे सामने नहीं आ पाता। जो छवि उसकी हमारे सामने आती है वह नकली होती है। आजकल हमारे रहने सहने के तरीके में ही नहीं बल्कि अच्छे-अच्छे रिश्तों को निभाने के मामले में भी दिखावा देखने को मिलता है और सच्ची भावना तो कहीं दिखाई नहीं देती। न्यू जनरेशन तो घनिष्ठ संबंधों के प्रति भी पहले जैसी ईमानदार नहीं रही है। लोग मन ही मन एक दूसरे के लिए बुरा सोचते हैं, एक दूसरे के बारे में बुरा बोलते हैं मगर जब वही व्यक्ति सामने आ जाए तो उससे मुस्कुराकर बात करते हैं। सच्चा प्रेम और मधुरता तो रिश्तों से कहीं खो सी गई है। मेरे परिचित लोगों में एक शर्मा जी...

Uploaded on 05-Jul-2025

गज़ा में जारी नरसंहार सभ्य समाज पर कलंक

गज़ा में जारी नरसंहार सभ्य समाज पर कलंक...

मनुष्य पशु प्राणियों से विभिन्न होते हैं, वे समाज के साथ रहते हैं। स्पष्ट है कि जब सामूहिक अस्तित्व का प्रश्न आता है, तो कुछ नीतिगत नियम और कानून बनाए जाने होते हैं, क्योंकि हर कोई अपनी मनमानी नहीं कर सकता। यदि किसी व्यक्ति या वर्ग को यह स्वतंत्रता दे दी जाए कि वह जवाबदेही की भावना से मुक्त हो, तो यह स्थिति समाज को अराजकता और विनाश की ओर ले जाएगी। समाज की संरचना को सुंदर और मजबूत बनाने के लिए कानून के प्रति जवाबदेह होना आवश्यक है। यह मानवता और नैतिकता का एक महत्वपूर्ण कदम है।संसार में जो कुछ है वो उसकी विशेषता से पहचाना जाता है। जैसे, सूर्य की पहचान उसकी चमक और गर्मी से की जाती है, और फूल को उसके रंग और सुगंध से पहचाना जाता है। यदि वे अपनी विशेषता को नष्ट कर देते हैं, तो उनका अस्तित्व बेकार हो जाता है। इसी प्रकार, मनुष्य की वास्तविक पहचान मानवीय मूल्यों द्वारा की जाती है। यह किसी भी समाज का एक सामान्य न्यूनतम मापदंड है। यदि ये मूल्य जीवित नहीं हैं तो प्राणी और मनुष्य के बीच कोई अंतर बाकी नहीं रहता। यह वस्तु प्रत्येक संस्कृति, सभ्यता, धर्म, पंथ, आस्तिक और नास्तिक सभी लोगों के...

Uploaded on 05-Jul-2025

डॉक्टर : सामाजिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक

डॉक्टर : सामाजिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक...

एक जुलाई को हमारे देश में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। इसलिए आज हम बात करने जा रहे हैं समाज के उस वर्ग की जिसे सभी धार्मिक ग्रंथो और रिवायतों में भगवान, परमेश्वर का दर्जा दिया जाता है, अर्थात हम आज अपने इस लेख के माध्यम से चर्चा करेंगे चिकित्सक वर्ग के समाज के नज़रिये के बारे मे जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू शामिल है।प्रिय पाठकों डॉक्टर ईश्वर की तरफ से इस धरती पर बीमार और परेशानहाल लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण वर्ग समझा जाता है और इस वर्ग को समाज में सर्वोच्च स्थान पर रखा जाता है क्योंकि डॉक्टर एक स्वस्थ समाज के लिए समाज का एक मजबूत स्तम्भ हे।हर परिवार अपने सदस्य के लिए बीमारी और परेशानी मे एक अच्छे डॉक्टर और सफल इलाज की अपेक्षा रखता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार वालों को उसकी परेशानी से निकालने, बचाने के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने तत्पर रहता है और यह सारी प्रक्रिया सिर्फ चिकित्सक और इस पेशे से जुड़े लोगों पर एक अटूट विश्वास की बुनियाद पर संपन्न होती है।प्राचीन काल से ही डॉक्टर को समाज मे बड़ा महत्व दिया जाता रहा है और आधुनिक युग के इस प्रौद्योगिकी दौर मे भी डॉक्टर को समाज मे...

Uploaded on 05-Jul-2025

समाज में अविवाहित लड़कियों की बढ़ती संख्या एक बड़ी

समाज में अविवाहित लड़कियों की बढ़ती संख्या एक बड़ी...

आज के आधुनिक और शिक्षित समाज में एक बहुत गंभीर समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और वह है अविवाहित बेटियों की बढ़ती संख्या। यह न सिर्फ एक पारिवारिक चिंता है बल्कि सामाजिक असंतुलन का कारण भी बनता जा रहा है। ज़िम्मेदारी केवल माँ-बाप की नहीं, बल्कि पूरे समाज की बनती है कि वह इन बेटियों के लिए निकाह के संभावनाओं को आसान बनाए।1. निकाह की धार्मिक अहमियतइस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, निकाह को एक सुन्नत और अल्लाह की रहमत बताया गया है।क़ुरआन में कहा गया: “और तुम में जो कुंवारे हों उनका निकाह कराओ” (अल नूर:32)"निकाह मेरी सुन्नत है और जो मेरी सुन्नत से मुंह मोड़े, वह मुझसे नहीं।" (हदीस)निकाह केवल शारीरिक ज़रूरत की पूर्ति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सामाजिक और नैतिक ज़िम्मेदारी है। इससे परिवार बनता है, नस्लें बढ़ती हैं और समाज में संतुलन आता है।2. आंकड़ों की सच्चाई: क्यों बढ़ रही हैं अविवाहित लड़कियों की संख्या?राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5, भारत 2019-21) के अनुसार, शहरी भारत में 25 वर्ष से ऊपर की 30% महिलाएं अभी तक अविवाहित हैं और ग्रामीण भारत में भी यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है।भारत की जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में 30 से 49 वर्ष तक की 2.5 करोड़ महिलाएं ऐसी थीं...

Uploaded on 05-Jul-2025

शादी, अफेयर, मर्डर का सामाजिक प्रभाव

शादी, अफेयर, मर्डर का सामाजिक प्रभाव...

बीते महीने सोनम राजवंशी द्वारा अपने पति की हत्या पूरे समाज में चर्चा का विषय बनी रही। कोई इसे लेकर पूरे महिला वर्ग को कठघरे में खड़ा करने लगा तो कोई इसका ज़िम्मेदार सोनम के माता पिता को ठहराने लगा। सोनम ही नहीं इससे पूर्व भी जल्द ही जल्द हमारे सामने कई ऐसे केस आए जिसमें पत्नी ने अपने पति की हत्या कर दी। जिसमें मुस्कान, रानी, प्रगति, प्रतिमा, रवीना जैसे नाम शामिल हैं। यह सारे ही केस बेहद चौंकाने वाले और चिंताजनक थे।इस प्रकार की हत्याओं ने हाल के वर्षों में मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म पर उनकी अविश्वसनीय प्रकृति के कारण लोगों का काफी ध्यान आकर्षित किया। जबकि व्यापक, अप-टू-डेट आँकड़े सीमित हैं क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) पत्नी द्वारा पति की हत्या के लिए कोई विशेष श्रेणी नहीं रखता है, लेकिन उपलब्ध डेटा और मीडिया रिपोर्टों ने पूरे समाज को चिंतित कर दिया।पत्रकार दीपिका नारायण भारद्वाज की 2023 में एक रिपोर्ट आयी थी जिसके आंकड़ों पर नज़र डालें तो यह पता चलता है कि 2022 में, लगभग 220 व्यक्तियों की उनकी पत्नी द्वारा हत्या की गई, जबकि इसके विपरीत 270 से अधिक महिलाओं की उनके पति द्वारा हत्या की गई, यह आंकड़ें बताते हैं कि वैवाहिक हत्या...

Uploaded on 05-Jul-2025

मुस्लिम महिलाओं को लेकर भारतीय मीडिया का रवैया पक्षपाती

मुस्लिम महिलाओं को लेकर भारतीय मीडिया का रवैया पक्षपाती...

स्वतंत्रता के 75 सालों बाद भी भारतीय समाज संविधान, स्वतंत्रता और समानता के विचार से ख़ुद को कितना जोड़ सका है यह भारतीय मीडिया के रुख को देखकर समझा जा सकता है। मीडिया का सामंतवादी और स्त्री विरोधी चेहरा (विशेषरुप से मुस्लिम महिलाओं को लेकर) समय-समय पर उसकी रिपोर्ट में साफ़ और स्पष्ट दिखाई देता है। हालांकि, कभी राष्ट्रवाद की आड़ में तो कभी धर्म आधारित सत्ता की आड़ लिए किसी विशेष नैरेटिव को आगे बढ़ाते हुए भारतीय मीडिया देश और समाज का सबसे बड़ा हितैषी होने का दावा करता है।वर्तमान में भारतीय मुख्यधारा मीडिया का बर्ताव उस व्यापक सामाजिक अन्याय की ओर भी संकेत करता है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं की पहचान को संकुचित और दुर्भावनापूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। हालांकि, भारत जैसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में मीडिया की ज़िम्मेदारी इस से अधिक होनी चाहिए।भारतीय मीडिया में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व लंबे समय से रूढ़िगत छवियों में कैद रहा है। उन्हें अक्सर पर्दा या बुर्का पहनने वाली, शिक्षा से वंचित, धार्मिक बंदिशों में जकड़ी और पुरुष-प्रधान समाज की शिकार के रूप में दिखाया जाता है। यह छवि न केवल अधूरी है, बल्कि उस व्यापक विविधता और संघर्षशीलता को भी नकारती है जो मुस्लिम महिलाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा...

Uploaded on 05-Jul-2025

न्याय और समानता का खाका पेश करता है इस्लाम

न्याय और समानता का खाका पेश करता है इस्लाम...

किसी भी सभ्य समाज की नींव न्याय और समानता पर टिकी होती है, यदि समाज से न्याय को समाप्त कर दिया जाए तो उस समाज का पतन शुरु हो जाता है। वह समाज दिशाहीन एवं अनैतिक हो जाता है। यही कारण है कि इस्लाम में न्याय पर बहुत ज़ोर डाला गया है।कुरान मजीद में न्याय के बारे में कई आयते हमको मिलती हैं, एक स्थान पर अल्लाह फरमाता हैःیٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا کُوۡنُوۡا قَوّٰمِیۡنَ بِالۡقِسۡطِ شُہَدَآءَ لِلّٰہِ وَ لَوۡ عَلٰۤی اَنۡفُسِکُمۡ اَوِ الۡوَالِدَیۡنِ وَ الۡاَقۡرَبِیۡنَ ۚ اِنۡ یَّکُنۡ غَنِیًّا اَوۡ فَقِیۡرًا فَاللّٰہُ اَوۡلٰی بِہِمَا ۟ فَلَا تَتَّبِعُوا الۡہَوٰۤی اَنۡ تَعۡدِلُوۡا ۚ وَ اِنۡ تَلۡوٗۤا اَوۡ تُعۡرِضُوۡا فَاِنَّ اللّٰہَ کَانَ بِمَا تَعۡمَلُوۡنَ خَبِیۡرًا ﴿۱۳۵﴾“मुसलमानो! अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतें अमानत वालों के हवाले करो और जब लोगों के बीच फैसला करो तो न्याय के साथ करो, अल्लाह तुमको बहुत ही उम्दा नसीहत करता है यकीनन अल्लाह सब कुछ सुनता और देखता है।“ निसा:५८अल्लाह के रसूल हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आगमन के समय दुनिया के हालात के संदर्भ में उल्लेख किया गया है कि अन्याय और अत्याचार ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम द्वारा पेश किए गए नैतिकता के अध्याय में...

Uploaded on 05-Jul-2025

मानव समानता और हज्जतुल विदा का प्रवचन

मानव समानता और हज्जतुल विदा का प्रवचन...

डॉ. मोहम्मद सलीम पटीवालाअमीरे हल्का, जमाअते इस्लामी हिन्द, गुजरात आज अपने भारत वर्ष पर ही नहीं अपितु संपूर्ण संसार पर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत होता है कि मानो मानवता अब अपनी अंतिम साँसे ले रही है। भ्रष्टाचार, दुराचार, विश्वासघात व आतंकवाद से अब यह दुनिया थक चुकी है तथा विश्वास एवं ईमानदारी की तलाश में भटक रही है। इस कारण आवश्यकता है कि मानवता को विनाश से बचाया जाए, उसका सच्चा और सटीक मार्गदर्शन किया जाए, आकाशीय मार्गदर्शन अर्थात इलाही (ईश्वरीय) मार्गदर्शन से अवगत कराया जाए। विडम्बना यह है कि मानव समानता और मानव गरिमा के ऊँचे ऊँचे नारे तो लगाए जाते हैं, किंतु यह सब खोखले हैं। वास्तविकता यह है कि आज का मानव जीवन के वास्तविक अर्थ से ही अनभिज्ञ हो चुका है और अंधेरों में ठोकरें खा रहा है। ईश्वर का एक होना, मानव का एक होना और जीवन का एक होना हमारी नज़रों से ओझल हो चूका है।  अतः नितांत आवश्यक है कि पुनः पैगम्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के उस स्पष्ट उपदेश के प्रत्येक शब्द को आत्मसात किया जाए और उसे वैश्विक संविधान के तौर पर देखा जाए, जो 9 जिल-हिज्जा, 10 हिजरी की दोपहर को 124,000 से  अधिक सहाबा (पवित्र साथियों) के बीच अराफात...

Uploaded on 05-Jun-2025

एकता का संदेश

एकता का संदेश...

कवितानौशीन फातिमा खानलेखिका एवं शिक्षाविद्मिल जुल कर रहें सब एक हैं हमतू काला मैं गोरा तू हिंदू मैं मुस्लिम नहीं नहीं!एक ही आदम के रूप अनेक हैं हम!मिट्टी के रंग अलग अलगपर हम सबका है एक फलकएक ही धरती एक ही आसमांहम सब एक हैं कोई फ़रक नहींभेदभाव की दीवार को तोड़एकता की डोर से दें सबको जोड़सद्भावना की भावना से जगमगाए दुनिया सारीसाथ साथ चलें तो जीत हो हर बार हमारीएक ही आदम के बेटे बेटियांएक ही परिवार के सदस्य हैंहमारे बीच कोई भेद नहीं हैहम सब दिल से एक हैंआओ हम सब मिल कर इस दुनिया को सुंदर बनाएंएक दूसरे के प्रति प्रेम करुणा और सम्मान बढ़ाएं!...

Uploaded on 05-Jun-2025

माफ़ी ना मिली

माफ़ी ना मिली...

कहानी.यासमीन तरन्नुमजबलपुर, मध्य प्रदेशनेहा की ससुराल के सामने एक घर था जो कि देखने में सामान्य सा लगता था। जब नेहा शादी कर के ससुराल आयी तो उसे अपने घर के सामने बने उस घर में रहने वाले पड़ोसियों के बारे में जानने की इच्छा जागृत हुई। पूछने पर पता चला उस घर बड़े से घर में दो परिवार रहते हैं। आगे के हिस्से में आरज़ू नाम की सुशील और संस्कारी महिला रहती है जिसके चार बच्चे हैं। दो बेटे और दो प्यारी सी बेटियां। घर के पिछले हिस्से में आरज़ू का भाई अपने परिवार के साथ रहता है। आरज़ू के पिता ने अपने बेटे और बेटियों को कानून के मुताबिक प्रापर्टी में उनका हिस्सा दे दिया था।देखते ही देखते नेहा की उस परिवार से अच्छी दोस्ती हो गई। आरज़ू की दोनों बेटियां नेहा के घर आया करती थीं। एक का नाम सिमरन था और एक का नाम सुमन। नेहा उन दोनों के साथ काफी ज़्यादा घुल मिल गई थी और वे दोनों भी दिन भर नेहा के घर के चक्कर लगाया करती थीं। इस प्रकार नेहा का भी मन ससुराल में लगने लगा था। सुमन और सिमरन के मामा को अपनी बहन आरज़ू का इस तरह मायके में रहना पसंद...

Uploaded on 05-Jun-2025

‘असंभव को संभव करने वाली देश की दो लड़कियां’

‘असंभव को संभव करने वाली देश की दो लड़कियां’...

सहीफ़ा ख़ानउपसंपादक“कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होताएक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों”कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि यदि हम ठान लें कुछ करने की तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है। असंभव को संभव बनाने वाली कुछ इसी तरह की दो कहानियां हम आपके सामने पेश कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि यह दोनों कहानियां एक ऐसे समाज की लड़कियों की है जिस पर पिछड़ेपन, लिंग भेदभाव और रुढ़िवाद का आरोप हमेशा से लगता रहा है।अदीबा अनमपहली कहानी महाराष्ट्र की अदीबा अनम की है। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले से संबंध रखने वाली अदीबा को बचपन से ही कुछ कर गुज़रने का जुनून था। इसी जुनून ने उन्हें देश की सेवा करने के लिए प्रेरित किया और फिर उन्होंने ठान लिया कि वह एक दिन ज़रुर इतिहास रचेंगी।पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली अदीबा के पिता रिक्शा चालक थे। बेहद मुश्किलों के साथ घर का गुज़ारा हुआ करता था, संसाधन सीमित थे लेकिन अदीबा ने हार नहीं मानी और वह विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पढ़ाई में जुटी रहीं। अदीबा ने प्रारंभिक शिक्षा जिला परिषद उर्दू स्कूल से पूरी की। इंटरमीडिएट में उन्होंने 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।...

Uploaded on 05-Jun-2025

कच्चे आम की मीठी चटनी

कच्चे आम की मीठी चटनी...

महमूदा बानो (जबलपुर)गर्मियों का मौसम आते ही फलों के राजा ‘आम’ भी नमूदार हो जाते हैं और फिर हम सब जुट जाते हैं तरह तरह की आम की रेसिपी बनाने में। तो मौसम के मिजाज़ को देखते हुए रसोई टिप्स में आपके लिए पेश है आम की एक लाजबाब रेसिपी। सामग्रीः- कच्चे आम 1 किलो,  500 ग्राम शक्कर, 2 चाय का चम्मच जीरा भुना हुआ, 2 चाय का चम्मच राई भुनी, लाल मिर्च पाउडर 1 चम्मच, मीठा तेल एक बड़ा चम्मच, तीन-चार इलायची दाने,गार्निश के लिए नारियल कद्दूकश किया हुआ, कुछ काजू के टुकड़े , रेसिपी:-आम के छिलके उतार कर कद्दूकस कर लें।एक पैन में 1 चम्मच तेल डालकर इलायची के दाने डालें दो कप पानी डालकर शक्कर डालें और एक तार की चाशनी तैयार कर लीजिए। फिर उसमें कद्दूकस किया हुआ आम डाल दें। 10 मिनट बाद ज़ीरा और राई को भून कर पीस लें और मिश्रण में शामिल कर दें। लाल मिर्च पाउडर भी डाल दें, कुछ देर चलाएं पानी सूखने लगे तो गैस पर से उतार लेंपिसे हुए नारियल और काजू के टुकड़े से गार्निश कर स्वादिष्ट चटनी का मज़ा लें और घर वालों को भी परोसें। इसे आप कुछ दिन के लिए स्टोर भी कर सकती हैं ।...

Uploaded on 05-Jun-2025

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य

महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य...

श्रीमती नायला खालिदएमएससी बॉटनी (एमयू अलीगढ़)आज फूलों की एक नर्सरी से गुज़र हुआ जहां पर रंग बिरंगें खूबसूरत फूल नर्सरी की सुंदरता बढ़ा रहे थे। सारे फूल इतने रचनात्मक और व्यवस्थित तरीके से सजे हुए थे कि उन्हें देखकर नर्सरी के माली की कलात्मकता का लोहा माने बगैर कोई रह ही नहीं सकता था। माली की इस कला को देख मैं यूंही सोचने लगी कि एक नारी भी तो माली के ही समान होती है। परिवार की देखभाल करने वाली, परिवार की ज़रुरतों का ख़्याल रखने वाली, उन्हें सहेज कर रखने वाली और सबसे बढ़कर एक परिवार में ऐसा वातावरण बनाकर रखने वाली कि घर के हर सदस्य को सहज वातावरण मिल सके। वह खुश रहे और मानसिक रुप से स्वस्थ रहे। इन बहुत सारे दायित्वों को निभाते हुए अकसर स्वयं उसका मानसिक स्वास्थ्य उपेक्षित रह जाता है।एक महिला परिवार और समाज की रीढ़ होती है क्योंकि जिस परिवार की वह संरक्षक है वह समाज की ईकाई है। इस कारण एक महिला का मानसिक स्वास्थ्य ना केवल उसकी स्वयं की भलाई के लिए अपितू समाज के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि मानसिक रुप से मज़बूत महिला न केवल अवसाद और बीमारियों से दूर रहती है बल्कि आत्मविश्वास, उत्साह, सकरात्मकता...

Uploaded on 05-Jun-2025