मुहर्रम और इस्लामी कैलेण्डर हिजरी

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By Aabha admin July 01, 2025

'मुहर्रम' माह का चांद नज़र आते ही इस्लामी कैलेण्डर हिजरी 1447 शुरू हो जाता है। 'मुहर्रमुल हराम' इस्लामी कैलेण्डर हिजरी का पहला महीना है जिसे आम बोलचाल की भाषा में 'मुहर्रम कहते हैं।  

अन्य सभ्यताओं की तरह इस्लामिक जीवन व्यवस्था, सभ्यता और संस्कृति के वाहकों ने भी अपना एक पंचांग, कैलेण्डर, संवत या सन् निर्धारित किया है जो हिजरी सन् के नाम से जाना जाता है और दुनिया में आज भी प्रचलित है।  

हिजरी सन् को अरबी भाषा में ’अत्तक्वीम हिजरी’ और फारसी भाषा में ’तक्वीम-ए-हिजरी-ए- क़मरी’ कहते हैं। यहुदियों के हिब्रू कैलेण्डर की तरह हिजरी सन् चन्द्र दर्शन पर आधारित लुनार कैलेण्डर या चन्द्र काल दर्शक है। यह हर क्षेत्र में स्थानीय चन्द्र दर्शन पर आधारित होता है जिसमें अन्य कैलेण्डरों की तरह 12 महीने होते हैं किन्तु 354 या 355 दिन होते हैं। दुनिया के मुस्लिम देशों में प्रशासनिक स्तर पर, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक अवसरों के निर्धारण में तथा भारत सहित दुनिया के अन्य देशों में रहने वाले मुसलमानों द्वारा सामाजिक व धार्मिक अवसरों, शादी विवाह के समारोहों व त्योहारों की तिथियां निर्धारत करने के लिये इस कैलेण्डर को ईस्वी सन् ग्रेगोरियन कैलेण्डर के साथ प्रयोग किया जाता है। 

पहला हिजरी सन् इस्लामिक शासन व्यवस्था के दूसरे खलीफा हज़रत उमर रज़ि० के कार्यकाल के दौरान शुरू किया गया था। 638 ईस्वी में सर्वसम्मति से यह तय किया गया कि एक इस्लामिक सम्वत को लागू किया जाए जो पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल0 की हिजरत की महत्वपूर्ण घटना से प्रारम्भ हो। जब आप मक्का छोड़ कर मदीना गये थे और वहां पर इस्लामी आंदोलन तेजी से आगे बढ़ा। इसके परिणाम स्वरूप इस्लामी समाज, इस्लामी शासन व्यवस्था, इस्लामिक सभ्यता व संस्कृति की स्थापना हुई और समूचे विश्व में इस्लाम का प्रसार हुआ। इस कारण, उसी वर्ष से हिजरी सन् की शुरूआत किया जाना उचित समझा गया और हिजरत की इस महत्वपूर्ण घटना के नाम पर पहले सन् का नाम हिजरी सन् एक रखा गया। 

पहले हिजरी साल का पहला दिन जुमा यानि शुक्रवार, 16 जुलाई 622 का था। ईस्वी सन् का दिन मध्य रात्रि 12 बजे से शुरू होता है, किन्तु इस्लामी दिन की शुरूआत सूर्यास्त से होती है। इस प्रकार हिजरी सन् का पहला दिन 15 जुलाई की शाम को सूरज डूबने से प्रारम्भ हुआ। हिजरी सन् के 12 महीनों के नाम इस प्रकार हैंः- (1) मुहर्रमुल हराम (2) सफर उल मुज़फ्फर (3) रबी उल अव्वल (4) रबी उल आख़िर (5) जमादि उल अव्वल (6) जमादि उल आख़िर (7) रज्जबुलमुरज्जब (8)शाबानुलमुअज़्ज़म (9) रमज़ानुल मुबारक (10) शव्वालुल मुकर्रम (11) ज़ीकादा (12) ज़िलहिज्जा।

हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रमुल हराम उन महीनों में से एक है जिनमें युद्ध करने से मना किया गया है। हिजरी सन् के चार पवित्र माह मुहर्रम, रज्जब, ज़ीकादा और ज़िलहिज्जा हैं जिनमे युद्ध करना हराम है। ये शान्ति के महीने माने जाते हैं। 

दुनिया के तीन महत्वपूर्ण मज़हब यहूदियत, ईसाईयत और इस्लाम के इतिहास में हिज़री सन् की विशेष महत्वत्ता है, क्योंकि इसके पहले महीने मुहर्रम में ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण किया था। दुनिया के पहले इंसान व अल्लाह के पहले नबी हज़रत आदम अलैहिस्सलामआख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्ल० व अन्य नबियों के जीवन की विभिन्न घटनाओं से गहरा सम्बन्ध है। इस महीने की दस तारीख से सारी इन्सानियत का गहरा संबंध है। हालांकि वर्तमान में मुहर्रम की दस तारीख़ हज़रत मुहम्मद सल्ल० के नवासे हज़रत इमाम हुसैन रज़ि० की शहादत की याद में यौमे आशूरा के रूप में मनाई जाती है, लेकिन इसके पूर्व भी इस दिन, विभिन्न युगों में मानवता के इतिहास की बहुत सारी महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं थी। 

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार आकाश, पृथ्वी, सूरज, चांद, सितारे, गृह और स्वर्ग का निर्माण इसी तारीख़ को किया गया। दुनिया के पहले मनुष्य, सारी मानवता के पिता आदम और मां हव्वा को जिस दिन आसमान से ज़मीन पर उतारा गया वह मुहर्रम की 10 तारीख़ थी। आदम और हव्वा ने शैतान के बहकावे में आकर जो गलती की थी, ईश्वर द्वारा उस ग़लती को मुहर्रम की 10 तारीख़ को क्षमा किया गया। धरती पर पहली बरसात का दिन मुहर्रम की 10 तारीख़ थी। यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्मों के अनुयायियों के पूर्वज और ईश्वर के पैग़म्बर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम मुहर्रम की 10 तारीख़ को पैदा हुये थे और जिस दिन उनके विरोधियों ने उन्हें आग में जलाकर मारना चाहा और ईश्वर ने आग से उन्हें बचाया उस दिन भी मुहर्रम की 10 तारीख़ थी। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के और पहले अवतरित होने वाले पैग़म्बर नूह अलैहिस्सलाम की किश्ती को जल प्रलय से, जूदी पहाड़ पर ले जाकर, इसी दिन बचाया गया था।

10 मुहर्रम के दिन ही यहूदियों, इसाईयों और मुसलमानों द्वारा सर्वमान्य ईश्वर के पैग़म्बर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और उनके अनुयायियों को नील नदी से बाहर निकाल कर उनके दुश्मन फिरऔन की सेना से बचाया गया था। पैग़म्बर ईसा मसीह अलैहिस्सलाम जिन्हें ईसाई और मुस्लिम धर्मावलम्बी दोनों ईश्वर का पैग़म्बर मानते हैं, आज से दो हज़ार साल पूर्व इसी दिन पैदा हुये थे और इसी दिन उनके साथ सलीब की घटना घटी तथा उन्हें मुक्ति मिली थी। पैग़म्बर हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम का कुएं से बाहर निकलना, हज़रत युनिस अलैहिस्सलाम का चालीस दिन मछली के पेट के अन्दर रहने के बाद बाहर निकलना और हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम की आंखों की रौशनी कई वर्षों के बाद चमत्कारिक रूप वापस आने की घटनाएं भी सिर्फ इस्लामी इतिहास में महत्व नहीं रखती बल्कि यहूदी और ईसाई धर्म के इतिहास में यहां तक कि मानवता के इतिहास में बड़ा महत्व रखती हैं। यह घटनाएं भी विभिन्न युगों में मुहर्रम माह की 10 तारीख़ को घटी थी।

चूंकि हिजरी सन् लुनार कैलेण्डर होने के कारण चन्द्रदर्शन पर आधारित है इसलिये इसकी तारीख़ों 

का निर्धारण चांद निकलने के आधार पर होता है। इस सन् का हर महीना, पिछले माह चांद छिपने के बाद, पुनः पहली बार दिखाई देने पर शुरू होता है। चांद पर आधारित किसी भी लुनार कैलेण्डर के महीनों में 29 या 30 के होते है। अर्थात ईसवी सन् की तुलना में हर साल कि हिजरी में 10 या 11 दिन का अन्तर आ जाता है। हिजरी सन् का हर महीना ग्रेगोरियन कैलेण्डर के महीने में घूमता है। 

वस्तुतः हिजरी सन् एक ऐसा संवत है जो पूर्णतः प्रकृति पर आधारित है इसलिये इसकी तिथियों का अनुमान और गणना के आधार पर पूर्व निर्धारण नहीं हो सकता। हर माह चन्द्र दर्शन के आधार पर तिथि निर्धारित किये जाने के कारण पूर्व से कोई तिथि निश्चित नहीं की जा सकती और न ही आगामी माह के दिनों को निर्धारित किया जा सकता। इसी प्रकार विभिन्न कारणों से जैसे आकाश में बादल छाये होने की स्थिति में, विभिन्न स्थानों पर स्थानीय चन्द्र दर्शन के कारण, कहीं कहीं तिथियों में भिन्नता हो सकती है। किन्तु इससे स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के अवसरों की तिथियां तय करने में कोई ख़ास व्यावहारिक कठिनाई नहीं होती। 

दुनिया में प्रचलित अन्य पंचांगों और इसमें बुनियादी अन्तर होने के बावजूद संसार के समस्त मुस्लिम मुल्कों में तथा दुनिया भर में निवास करने वाले मुसलमानों द्वारा लगभग चौदह सौ साल से प्रयोग किया जा रहा है। वर्तमान में खगोल विज्ञान और कम्प्यूटर तकनीक की उन्नति से इसका प्रयोग और अधिक सरल व व्यावहारिक हो गया है तथा अपवाद स्वरूप ही तिथियों में भिन्नता होती है। 


ज़हीर ललितपुरी

कवि एवं साहित्यकार