मानव समानता और हज्जतुल विदा का प्रवचन

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By Aabha admin June 01, 2025

डॉ. मोहम्मद सलीम पटीवाला

अमीरे हल्का, जमाअते इस्लामी हिन्द, गुजरात



आज अपने भारत वर्ष पर ही नहीं अपितु संपूर्ण संसार पर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत होता है कि मानो मानवता अब अपनी अंतिम साँसे ले रही है। भ्रष्टाचार, दुराचार, विश्वासघात व आतंकवाद से अब यह दुनिया थक चुकी है तथा विश्वास एवं ईमानदारी की तलाश में भटक रही है। इस कारण आवश्यकता है कि मानवता को विनाश से बचाया जाए, उसका सच्चा और सटीक मार्गदर्शन किया जाए, आकाशीय मार्गदर्शन अर्थात इलाही (ईश्वरीय) मार्गदर्शन से अवगत कराया जाए। 


विडम्बना यह है कि मानव समानता और मानव गरिमा के ऊँचे ऊँचे नारे तो लगाए जाते हैं, किंतु यह सब खोखले हैं। वास्तविकता यह है कि आज का मानव जीवन के वास्तविक अर्थ से ही अनभिज्ञ हो चुका है और अंधेरों में ठोकरें खा रहा है। ईश्वर का एक होना, मानव का एक होना और जीवन का एक होना हमारी नज़रों से ओझल हो चूका है।  


अतः नितांत आवश्यक है कि पुनः पैगम्बर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के उस स्पष्ट उपदेश के प्रत्येक शब्द को आत्मसात किया जाए और उसे वैश्विक संविधान के तौर पर देखा जाए, जो 9 जिल-हिज्जा, 10 हिजरी की दोपहर को 124,000 से  अधिक सहाबा (पवित्र साथियों) के बीच अराफात पर्वत पर दिया गया था। 


निःसंदह यह उपदेश मानव अधिकारों का सर्वोत्तम चार्टर, मानव समानता का रक्षक, शांति स्थापना का सूत्र, आर्थिक विषमताओं से मुक्ति का मार्गदर्शक तथा सामाजिक, राजनीतिक, शिक्षा, आध्यात्मिक अर्थात जीवन के हर क्षेत्र में सही दिशा निर्धारित करने वाला दिव्य सन्देश  है। यह सन्देश मात्र सैधांतिक ही नहीं था अपितु पूर्णतः व्यवहारिक था और उस समय समाज में चलता फिरता नज़र आ रहा था।  


जब पैगम्बर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) यह उपदेश द रहे थे, तो स्वतंत्र और कुलीन व्यक्तियों के बजाय उनके सबसे निकट दो ऐसे गुलाम (दास) मौजूद थे, जिन्हें पैगम्बरे इस्लाम की बदौलत गुलामी से मुक्त किया गया था। उनमें से एक, हजरत बिलाल रज़ि० जो एक काले हब्शी व्यक्ति थे, जो हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के ऊंट की लगाम पकड़े हुए थे और दूसरे हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ि० जो उन पर एक चादर का साया किए हुए थे। 

यही वह प्रवचन है जिसे खुत्बा-ए-हज्जतुल विदा के नाम से जाना जाता है। जिसके महत्वपूर्ण अंश हदीस की किताबो में विद्यमान हैं। 


इस प्रवचन में अल्लाह की प्रशंसा और उससे गाढ़े संबंध और उसके सम्पूर्ण आज्ञापालन की नसीहत के बाद आप(सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने मानव समानता और मानव गरिमा के जो मोती बिख़ेरे हैं, उन में से कुछ आपकी सेवा में प्रस्तुत हैः-


आप(सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: "ऐ लोगो! अल्लाह की कसम, मुझे नहीं पता, शायद मैं आज के बाद इस जगह पर आप लोगो से मिल पाउँगा या नहीं। अल्लाह उस पर रहम करे जो आज मेरी बात सुन ले और फिर उसकी हिफ़ाज़त करे और दूसरो तक पहुंचाए। " (सुनन दारमी)


आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने बार-बार कहा, "मेरे शब्दों को पूरे ध्यान से सुनो, समझो, याद रखो कि मैं तुम्हें सलाह और मार्ग दर्शन दे रहा हूँ।"


जीवन और संपत्ति की सुरक्षा: "वास्तव में, आप (प्रत्येक मानव) का खून, आपकी संपत्ति और आपका सम्मान परस्पर पवित्र और सम्माननीय हैं, जैसे कि हज का यह दिन, हज का यह महीना और पवित्र शहर मक्का पवित्र और सम्माननीय हैं।" (सहीह बुखारी)


इन्सान की जान और माल की इज्जत और सम्मान मक्का, अल्लाह के काबा, हज के दिन, जिलहिज्ज के दस दिन और हज के महीने से कम नहीं है। इब्ने हिशाम की सीरत में, इस उपदेश के अंत में, इस सुंदर कानून को इस प्रकार समझाया गया है: "किसी मुसलमान के लिए अपने भाई से कोई संपत्ति लेना जायज़ नहीं है, सिवाय उस संपत्ति के जो उसने स्वेच्छा से दी हो। अतः अपने आप पर अत्याचार न करो।” 


जीवन, संपत्ति और सम्मान की पवित्रता के संबंध में उपरोक्त घोषणा के साथ-साथ हज़रत इमाम बुखारी ने कई रिवायतों में इन शब्दों को भी उद्धृत किया है जो इस कानून के महत्व को और उजागर करते हैं:-


"और तुम जल्द ही अपने रब से मिलोगे, फिर वह तुमसे तुम्हारे कर्मों के विषय में पूछेगा। सावधान रहो! मेरे बाद गुमराही की ओर न लौटो, ताकि तुममें से कुछ लोग दूसरों की गर्दन काटते रहें। सावधान रहो! जो लोग यहाँ उपस्थित नहीं हैं उन तक यह बात वो लोग पंहुंचा दें, जो यहाँ मौजूद हैं।" (सहीह बुखारी)

अर्थात यदि कोई व्यक्ति किसी की जान, माल या सम्मान व प्रतिष्ठा के साथ खेलता है तो उसे याद रखना चाहिए कि वह शीघ्र ही सृष्टि के रचयिता के दरबार में लाया जाएगा, जहां उसे जवाब देना होगा और वहां पर सिफ़ारिश का कोई फ़ायदा नहीं होगा। न तो रिश्वत और न ही फिरौती किसी काम की होगी, न ही किसी का बल और शक्ति उसे बचा पाएगी। इसलिए, बहुत सावधान रहें कि किसी के जीवन के साथ खेल न खेलें या उसकी संपत्ति को बर्बाद न करें।


अमानत (धरोहर) की सुरक्षा : "जिसके पास किसी की कोई अमानत या धरोहर है, उसे उस को हिफ़ाज़त के साथ सौंप देना चाहिए जिस की वो अमानत है।।" (मुसनद-इमाम अहमद)


किसी भरोसे को पूरा करना और उसे निभाना विश्वास का प्रतीक है, और किसी भरोसे को तोड़ना और धोखा देना पाखंड का प्रतीक है। चाहे वह अमानत हो, धन हो, पद हो, सत्ता हो, शक्ति हो, ज्ञान हो, बुद्धि हो या गुप्त दस्तावेज हों, इन सभी को सुरक्षित रखना आवश्यक है। विश्वास का सम्मान किए बिना समाज कभी भी शांति और संतोष प्राप्त नहीं कर सकता। विश्वासघात और बेईमानी शोषण और अधिकारों के हनन का स्रोत हैं, जो वर्गों के बीच दुश्मनी, शत्रुता और द्वेष को जन्म देता है, जिसके परिणामस्वरूप हत्या और विनाश का तांडव होता है।


अज्ञानतापूर्ण रीति-रिवाजों और शत्रुताओं को समाप्त करना : "सुनो! इस्लामी काल से पूर्व से संबंधित हर बुराई को मैंने अपने पैरों तले रौंद दिया है और पूर्व-इस्लामी काल के सभी रक्तपात को मिटा दिया गया है (एक उदाहरण के रूप में)। सबसे पहले मैं अपनी तरफ से रबीआह बिन अल-हारिस के बेटे का खून माफ़ करता हूँ है, जो बनू साद कबीले का एक दूध पीता बच्चा था और जिसे हुज़ैल जनजाति द्वारा मारा गया था।" (सहीह मुस्लिम)


आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने बहुत ही सुन्दरता और विवेक से पुराने तौर-तरीकों, रीति-रिवाजों और परंपराओं के अंत की घोषणा की। उन्होंने न केवल अज्ञानता के युग की राष्ट्रीय, भाषाई, क्षेत्रीय दुश्मनी और शत्रुता, अत्याचार, दुर्व्यवहार, अज्ञानतापूर्ण हठ, अंधविश्वास, अनैतिकता और बेशर्म सभ्यता, अर्थात सभी अज्ञानतापूर्ण आदतों, रिवाजो और दृष्टिकोणों को समाप्त कर दिया, बल्कि व्यावहारिक रूप से प्रेम और भाईचारे पर आधारित समाज का निर्माण किया और दुश्मनों को भी दोस्त बना दिया। 


पुरानी प्रतिद्वंद्विताएं समाप्त होने के बावजूद कभी-कभी वे पुनः जीवित हो जाती हैं और समाज के विनाश का कारण बनती हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अज्ञानता के युग की इन हत्याओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। 

महिलाओं के अधिकार: "हाँ, महिलाओं के संबंध में अल्लाह से डरो, क्योंकि तुमने उन्हें अल्लाह सर्वशक्तिमान से एक अमानत के रूप में प्राप्त किया है और तुमने उन्हें अल्लाह सर्वशक्तिमान के आदेश से वैध बनाया है। और यह तुम्हारा कर्तव्य है कि उनके भोजन और कपड़ों का प्रबंध करो।" (सहीह मुस्लिम)


“और स्त्रियों के विषय में मेरी सच्ची सलाह स्वीकार करो, क्योंकि स्त्रियाँ तुम्हारी सहायक हैं।” (सुनन तिर्मिज़ी, सुनन इब्ने माजा)


यदि पैगम्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के इन निर्देशों को अरब समाज के संदर्भ में देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि इस्लाम ने महिलाओं को जीवन का अधिकार दिया, उन्हें गुलामी से मुक्ति दिलाई, मानवाधिकारों से वंचित इस कमजोर वर्ग को सम्माननीय और आदरणीय बनाया, लोगों में अल्लाह का भय पैदा किया और महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अत्याचारों को रोका तथा उन्हें इस बात का विश्वास दिलाया कि तुमने उन्हें अल्लाह की ओर से अमानत के रूप में प्राप्त किया है और वे अल्लाह के आदेश से तुम्हारे लिए हलाल हो गई हैं। 


यह तुम्हारी संपत्ति नहीं है कि तुम इनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करो या इन्हें अपनी संपत्ति समझो और बेच दो, बल्कि ये अल्लाह तआला की ओर से तुम्हें सौंपी गई अमानत हैं। पुरुष  उनके आश्रय, भरण-पोषण, भोजन और कपड़ों के लिए जिम्मेदार हैं। इस्लाम ने महिलाओं को अर्थव्यवस्था के लिए जिम्मेदार या धन कमाने का दायित्व नहीं सौंपा है, धन कमाना इस पवित्र  और नाज़ुक जाति का काम नहीं है, बल्कि उनकी सभी आवश्यकताओं को पुरुषों पर डाल दिया गया है।


पैगम्बर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने महिलाओं के साथ अच्छे व्यवहार को अपनी और ईश्वरीय  इच्छा घोषित किया और उन्हें इसे स्वीकार करने का आदेश दिया, और साथ ही, उन्होंने उनकी स्थिति और सम्मान को स्पष्ट करते हुए कहा कि वे तुम्हारी सहायक हैं। वे आपके घरों की व्यवस्था करने जा रही हैं। उनके बिना आपका परिवार और घर-गृहस्थी अधूरी है। आपके बिना वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ कैसे पूरी कर सकती हैं? अंत में, अंतिम पैगंबर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने बाकी इच्छाओं के विपरीत, इस इच्छा पर और अधिक जोर देने के लिए कहा:  "हे लोगों! मुझे समझो, मैं इस संदेश के साथ अपना कर्तव्य पूरा कर रहा हूं।“


ऊपर के इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यह प्रवचन मानवाधिकार, मानव समानता और मानव गरिमा का वह चार्टर है जिस के बारे में आज की तथाकथित सभ्य दुनिया सोच भी नहीं सकती। यह भी विडम्बना है कि मुस्लिम समाज और मुस्लिम शासको ने भी इसे लगभग भुला दिया है। मगर आज भी फिर इन सिद्धांतो को जीवित किया जाए और समाज में कार्यान्वित किया जाए तो मानवता को उसकी मृत्यु से बचाया जा सकता है।