श्रीमती नायला खालिद
एमएससी बॉटनी (एमयू अलीगढ़)
आज फूलों की एक नर्सरी से गुज़र हुआ जहां पर रंग बिरंगें खूबसूरत फूल नर्सरी की सुंदरता बढ़ा रहे थे। सारे फूल इतने रचनात्मक और व्यवस्थित तरीके से सजे हुए थे कि उन्हें देखकर नर्सरी के माली की कलात्मकता का लोहा माने बगैर कोई रह ही नहीं सकता था।
माली की इस कला को देख मैं यूंही सोचने लगी कि एक नारी भी तो माली के ही समान होती है। परिवार की देखभाल करने वाली, परिवार की ज़रुरतों का ख़्याल रखने वाली, उन्हें सहेज कर रखने वाली और सबसे बढ़कर एक परिवार में ऐसा वातावरण बनाकर रखने वाली कि घर के हर सदस्य को सहज वातावरण मिल सके। वह खुश रहे और मानसिक रुप से स्वस्थ रहे। इन बहुत सारे दायित्वों को निभाते हुए अकसर स्वयं उसका मानसिक स्वास्थ्य उपेक्षित रह जाता है।
एक महिला परिवार और समाज की रीढ़ होती है क्योंकि जिस परिवार की वह संरक्षक है वह समाज की ईकाई है। इस कारण एक महिला का मानसिक स्वास्थ्य ना केवल उसकी स्वयं की भलाई के लिए अपितू समाज के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि मानसिक रुप से मज़बूत महिला न केवल अवसाद और बीमारियों से दूर रहती है बल्कि आत्मविश्वास, उत्साह, सकरात्मकता से परिपूर्ण अपने लक्ष्यों व कर्तव्यों का निर्वहन करने में सक्षम होती है।
एक महिला का मानसिक स्वास्थ्य किन कारणों से प्रभावित होता है इस पर चर्चा आवश्यक हैः-
मेरी दृष्टि में एक महिला के मानसिक स्वास्थ्य को जो चीज़ सबसे ज़्यादा आघात पहुंचाती है वह है उसे न मिलने वाला सम्मान और उसके आत्मसम्मान की रक्षा ना किया जाना चाहे वह पति, परिवार या कार्यस्थल पर हो या फिर समाज के द्वारा। इस क्षेत्र में मिली असुरक्षा एक महिला को उपेक्षित बना देती है। और वह अपना आत्मसम्मान एवं आत्मविश्वास खो देती है।
एक और भावना जो महिलाओं को अवसाद का शिकार बनाती है वह यह है कि उसे उसके कर्तव्यों से तो अवगत करा दिया जाता है परंतु अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त भी अनेक कारण हैं जैसे परिवार में लिंग भेदभाव, घरेलू हिंसा, मानसिक उत्पीड़न, काम और ज़िम्मेदारियों का अत्यधिक बोझ इत्यादि।
अधिकांश रुप से मानसिक दबाव का शिकार वह महिलाएं होती हैं जो स्वयं अपनी भावनाओं को समझने में अमसर्थ रहती हैं, अपने विचारों को अभिव्यक्त नहीं कर पातीं और स्वयं के गुणों व कमज़ोरियों से अनजान होती हैं।
आइए कुछ ऐसे बिंदुओं पर नज़र डालें जो हमें मानसिक रुप से मज़बूत और बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैः-
भावनात्मक बुद्धि का विकास (Emotional Intelligence)
इस कला के द्वारा हम एक दूसरे की भावनाओं को समझने, व्यक्त करने, प्रंबधित करने और उपयोग करने की क्षमता को विकसित कर सकते हैं – इस कला के निम्नलिखित पहलू हैः-
आत्मसम्मान एवं जागरुकता (Self Respect/Self Awareness) :- अपनी भावनाओं, विचारों, अपने गुणों और कमज़ोरियों, अपने मूल्यों व प्रेरणा से अवगत होना या उसके प्रति सजग होना और यह जानना की इससे आपका व्यवहार कैसे प्रभावित होता है और दूसरों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
आत्म नियमन (Self Regulation or Control):- भावनात्मक रुप से अपने ऊपर नियंत्रण रखने की कला आपको निरंतर बेहतर बनाती है। बुरे से बुरे माहौल में शांत रहना, प्रतिक्रिया देने में सजगता, नकारात्मक विचारों पर रोक लगाना बल्कि नकारात्मक विचारों को सकारात्मकता मे परिवर्तित करना और प्रबंधित करना।
इसके लिए अपने आपको शारीरिक व मानसिक रुप से मज़बूत बनाये। व्यायाम के द्वारा, मानसिक क्षमता को बढ़ाये तथा अत्यधिक सोचने (Over thinking) से बचें। प्रेरणा स्तर को बढ़ाये। जैसे – ‘Yes I can’ जैसे वाक्यों की मदद लें।
सामाजिक जागरुकता (Social Awareness):- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए हमारे अंदर न केवल अपनी बल्कि दूसरों की भावनाओं को महसूस करने व समझने की क्षमता होनी चाहिए। दूसरों की भावनाओं का सम्मान, सहानुभूति व समझ रखकर हम परस्पर परिवार व समाज में बेहतर संबधों की नींव रख सकते हैं तथा अपनी सकारात्मक संबंध बनाने की क्षमता का विकास कर सकते हैं।
अगर आप अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सजग हैं तो नीचे कुछ प्रश्नों की सूची दी जा रही है उसकी मदद से अपना आत्म निरीक्षण करें। इन प्रश्नों के आधार पर खुद को 1 से लेकर 10 तक का नंबर दें और उसके आधार पर अपने मानसिक स्वास्थ्य के स्तर को जांचे।
(1 – सबसे कम 10 – सबसे अच्छा)
प्रश्न 1- हमारी आत्मा कैसी है? A) अच्छे कार्यों को करने पर प्रसन्नता B) बुरे कार्यों में लिप्तता
प्रश्न 2- परिवार के साथ हमारे रिश्ते कैसे हैं?
प्रश्न 3- हमारा शारीरिक स्वास्थ्य कैसा है?
प्रश्न 4- हमारे मन की दशा कैसी है? – (नकारात्मक विचार, उलझन या स्पष्टता, समस्याओं को हल करने की क्षमता, ओवरथिकिंग)
प्रश्न 5- हमारा व्यवहार कैसा है? (गुस्सा, जलन, डर या शांति, संतोष, ग्लानि, सकारात्मकता, सहानुभूति)
प्रश्न 6- बदलाव (परिवार, समाज या व्यवहार के संदर्भ में) को स्वीकार करने की हमारी क्षमता कितनी है?
प्रश्न 7- हम कितने बेहतर तरीके से अपनी बात, विचार, सोच दूसरों के समक्ष रख पाते हैं?
प्रश्न 8- क्या हम अच्छे श्रोता हैं? A) हां B) नहीं (दूसरों के विचारों, भावनाओं, समस्यओं आदि को हम कितने संतोष और सजगता से सुनते हैं)
प्रश्न 9- हम अपनी गलतियों से कितना सीखते हैं? A) मानते ही नहीं B) सीखते हैं
प्रश्न 10- संघर्ष, कठिन परिस्थिति व तनाव को किस रुप में लेते हैं? A) सकारात्मक B) नकारात्मक
उपरोक्त बिंदुओं की सहायता से हम स्वयं अपनी मानसिक दशा का अवलोकन करें, निष्कर्ष जो भी आये घबरायें नहीं, निराश न हों – उत्तम बनने का पहला कदम अपनी समस्याओं से अवगत होना ही है।
दूसरा यह कि समस्या से परिचित होने के बाद अब हमें इसे अनदेखा नहीं करना है, बल्कि इसके समाधान के उपाय ढूंढने हैं। जैसे – सकारात्मक व्यक्तियों की संगत, अपनें अंदर नई रुचियों को जागृत करना, समस्याओं के संदर्भ में संघर्ष की चेष्टा और कभी-कभी अच्छे मनोचिकित्सक या काउंसलर की सलाह लेना। इसके अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण है कि स्वयं के अलंकरण (Self Grooming) के लिए समय निकालना।
याद रखें मानसिक पीड़ा क्षण भर के रोने से हल होने वाली समस्या नहीं है। यह पीड़ा ऐसी है जो कि हमारे दिमाग से होते हुए हमारे मन, शरीर, आत्मा तक को आहत करती है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत होना अति महत्वपूर्ण है। शोध बताते हैं कि मां का मानसिक स्वास्थ्य गर्भावस्था में बच्चे के मानसिक, भावनात्मक और व्यवहारिक विकास पर गहरा असर डालता है।
अंत में अपने प्रिय पाठकों से इतना ही कहना चाहूंगी कि अपनी योग्यताओं, गुणों को पहचाने, उन्हें निखारें और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर संतुष्ट व प्रसन्न रहें। क्योंकि आपके परिवार और समाज जैसे बागीचों की सुंदरता आपसे हैं और इनकी सुंदरता को बढ़ाना व रक्षा करना आपके ही हाथ में है।