‘असंभव को संभव करने वाली देश की दो लड़कियां’

FeatureImage

By Saheefah Khan June 01, 2025

सहीफ़ा ख़ान

उपसंपादक

कौन कहता है आसमां में छेद नहीं होता

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों

कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति हमें इस बात के लिए प्रेरित करती है कि यदि हम ठान लें कुछ करने की तो जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है। असंभव को संभव बनाने वाली कुछ इसी तरह की दो कहानियां हम आपके सामने पेश कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि यह दोनों कहानियां एक ऐसे समाज की लड़कियों की है जिस पर पिछड़ेपन, लिंग भेदभाव और रुढ़िवाद का आरोप हमेशा से लगता रहा है।

अदीबा अनम

पहली कहानी महाराष्ट्र की अदीबा अनम की है। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले से संबंध रखने वाली अदीबा को बचपन से ही कुछ कर गुज़रने का जुनून था। इसी जुनून ने उन्हें देश की सेवा करने के लिए प्रेरित किया और फिर उन्होंने ठान लिया कि वह एक दिन ज़रुर इतिहास रचेंगी।

पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने वाली अदीबा के पिता रिक्शा चालक थे। बेहद मुश्किलों के साथ घर का गुज़ारा हुआ करता था, संसाधन सीमित थे लेकिन अदीबा ने हार नहीं मानी और वह विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पढ़ाई में जुटी रहीं। अदीबा ने प्रारंभिक शिक्षा जिला परिषद उर्दू स्कूल से पूरी की। इंटरमीडिएट में उन्होंने 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। पढ़ाई में रुचि रखने वाली अदीबा ने 2021 में पहली बार उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन वह सफलता हासिल नहीं कर सकीं। दूसरी बार परीक्षा में वह इंटरव्यू तक पहुंची लेकिन इस बार भी भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और कामयाबी नहीं मिल सकी। लेकिन अदीबा ने हार नहीं मानी और 2024 में उन्होंने चौथे प्रयास पर यूपीएससी परीक्षा में ऑल इंडिया लेवल पर 142वीं रैंक हासिल कर इतिहास रच डाला। इसी के साथ अदीबा को महाराष्ट्र की पहली मुस्लिम महिला आईएएस अधिकारी बनने का गौरव हासिल हुआ।

मीडिया से बातचीत मे अदीबा ने बताया कि वह डॉक्टर बनना चाहती थीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ने यह संभव नहीं होने दिया जिस कारण वह उदास और निराश रहने लगीं। लेकिन फिर उनकी मुलाकात यवतमाल सेवा एनजीओ के सचिव निज़ामुद्दीन शेख से हुई और उन्होंने उन्हें यूपीएससी की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इस संबंध में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई और आगे कदम बढ़ाने हौसला और भी दी।

अदीबा आगे बताती हैं कि, मैंने इसके बाद यूपीएससी की तैयारी शुरु कर दी, पहले प्रयास में मैं असफल हो गई लेकिन मैंने खुद पर निराशा हावी नहीं होने दी, हार नहीं मानी। उनके निरंतर प्रयास के कारण चौथी बार में वह यूपीएससी परीक्षा में सफल हो गईं। अदीबा की यह कहानी उन लोगों के लिए एक आशा की नई किरण हैं जो सुविधाओं के अभाव में जल्द ही निराश होकर हार मान जाते हैं और अपने लक्ष्य को बीच में ही हमेशा के लिए अधूरा छोड़ देते हैं।

इरम चौधरी

दूसरी प्रेरणादायक कहानी इरम चौधरी की है। इरम ने यूपीएससी में ऑल इंडिया रैंक 40 हासिल की है। जम्मू कश्मीर के राजौरी जिले की इरम ने बिना किसी कोचिंग के सेल्फ स्टडी के दम पर यह सफलता हासिल की है। इरम ने भी चौथे प्रयास में यह सफलता प्राप्त की है। इरम मेडिकल की छात्रा थीं, उन्होंने 2018 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। उनका कहना है कि एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में उन्हें यह महसूस हुआ कि देश सेवा करनी चाहिए। जिसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरु कर दी। तीन बार असफल हो जाने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी बल्कि लगातार प्रयास करती रहीं और चौथे प्रयास में यूपीएससी में ऑल इंडिया 40 रैंक लाकर इतिहास रच डाला। मीडिया से बातचीत में इरम ने बताया कि इंडियन फॉरेन सर्विस में जाना चाहती हैं। ताकि पूरी दुनिया में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर भारत की साख विश्वभर में मज़बूत कर सकें।