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‘ईर्ष्या’ एक ऐसी सामाजिक बुराई जो महिलाओं की सफलता

‘ईर्ष्या’ एक ऐसी सामाजिक बुराई जो महिलाओं की सफलता...

रज़िया मसूद भोपाल, मध्य प्रदेशइस्लाम जीवन के सभी पहलुओं में महिलाओं की ज़िम्मेदारी और महत्व पर ज़ोर देता है, जिसमें परिवार, समाज और धर्म में उनकी गरिमापूर्ण भूमिकाएं शामिल हैं। कुरआन और हदीस की कुछ आयतें इसे स्पष्ट करती हैं।1. सामाजिक और नैतिक कर्तव्य: “ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं एक-दूसरे की सहयोगी हैं। वे सही काम करने का आदेश देते हैं और गलत काम करने से रोकते हैं” (9:71)। महिलाएं परिवारों और समाज में न्याय और नैतिकता को बनाए रखकर समाज में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार हैं।2. शिक्षा और ज्ञान  "अल्लाह तुममें से ईमान वालों और जिन्हें ज्ञान दिया गया है, उन्हें क्रमशः ऊंचा उठाएगा” (58:11)। यह आयत महिलाओं को समाज और परिवार में शिक्षा के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार बनाती है।3. आर्थिक और कानूनी अधिकार: “जो कुछ मर्दों ने कमाया है उसके अनुसार उनका हिस्सा है और जो कुछ औरतों ने कमाया है उसके अनुसार उनका हिस्सा है" (4:32)।  यह आयत पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान अधिकारों का संकेत देती है। 4. आध्यात्मिक समानता और ज़िम्मेदारी: "वास्तव में, मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिलाएं, ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं, आज्ञाकारी पुरुष और आज्ञाकारी महिलाएं, सच्चे पुरुष और सच्ची महिलाएं, धैर्यवान पुरुष...

Uploaded on 05-Jun-2025

युद्ध नहीं, शांति चाहिए

युद्ध नहीं, शांति चाहिए...

युद्ध किसी का भला नहीं करता: क्या वास्तव में युद्ध में कोई जीतता है?डॉ. मुहम्मद इक़बाल सिद्दीक़ीमरकज़ी सेक्रेट्री, जमाअत-ए-इस्लामी हिंदजब भारत-पाकिस्तान सीमा पर तोपें गरजती हैं और युद्धोन्माद के बोझ तले धरती कांपने लगती है, जब दो देशों का राष्ट्रीय गौरव आक्रामक मुद्रा में खड़ा सशस्त्र संघर्ष की आवाज़ लगाता है तब वातावरण दुःख, भय और अनिश्चितता से भर जाता है। गोलीबारी केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि खेतों और गाँवों में भी ज़िंदगियां लील लेती हैं। जहाँ माताएँ अपने बच्चों को गोद में लिए बैठी होती हैं, किसान अपनी ज़मीन में हल चला रहे होते हैं, और स्कूली बच्चे एक उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे होते हैं। ऐसे समय में, प्रोपेगंडे के धुंधलके को चीरती हुई सच्चाई सामने आने लगती है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सादतुल्लाह हुसैनी ने सही कहा, “युद्ध और संघर्ष किसी के हित में नहीं हैं।” उनके ये शब्द एक बयान मात्र नहीं, बल्कि 21वीं सदी में सशस्त्र संघर्ष के पागलपन को नकारने की नैतिक पुकार हैं।भारतीय संदर्भ में, यह अपील अत्यंत आवश्यक हो जाती है। शांति का संरक्षण, भारत की बहुलतावादी भावना की रक्षा, और संवैधानिक मूल्यों की पवित्रता को सभी युद्धोन्मादी मुद्राओं से ऊपर रखा जाना चाहिए। ऐसे समय में जब विविधता...

Uploaded on 05-Jun-2025

बच्चों के सिलेबस में परिवर्तन

बच्चों के सिलेबस में परिवर्तन...

मुगल इतिहास को हटाया जानारेहाना परवीन सद्भावना मंच प्रभारी, जमात-ए-इस्लामी हिंद,छत्तीसगढ़एनसीईआरटी ने 12वीं कक्षा के सिलेबस में कुछ बड़े बदलाव करते हुए मुगल इतिहास को सिलेबस से हटा दिया है। अब मुगल साम्राज्य से जुड़े कुछ चैप्टर किताबों में नहीं है तथा मुगल दरबार को हटा दिया गया है। इसके तहत बच्चों को अकबरनामा और बादशाहनामा मुगल शासक और उनका साम्राज्य रंगीन चित्र, आदर्श राज्य राजधानियां और दरबार पदवियां, उपहार और भेंट शाही परिवार, शाही नौकरशाही जैसे विषय पढ़ाये जाते थे।इसी तरह एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं में इतिहास की पाठ्य पुस्तक से मुगलो और दिल्ली सल्तनत से संबंधित सभी संदर्भ हटा दिए गए हैं और उनके स्थान पर भारतीय राजवंश, महाकुंभ, मेक इन इंडिया, अटल सुरंग और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसे नए संदर्भ जोड़ दिए गए हैं। कहा जा रहा है कि नई पाठ पुस्तकों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के अनुसार तैयार किया गया है।मुगल इतिहास के अतिरिक्त एनसीईआरटी ने कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा आरएसएस पर लगाए गए संक्षिप्त प्रतिबंध से संबंधित कुछ पैराग्राफ भी हटा दिए हैं। साथ ही गांधी जी द्वारा हिंदू मुस्लिम...

Uploaded on 05-Jun-2025

शाकाहार वर्चस्व की राजनीति का प्रतिरोध

शाकाहार वर्चस्व की राजनीति का प्रतिरोध...

सलमान अहमदमीडिया सेक्रेट्री, जमाअत-ए-इस्लामी हिंदएक निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण समाज में हर किसी को अपना आहार चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, परंतु शर्त यह है कि इससे स्वयं को या समाज को कोई क्षति ना पहुंचे। यदि एक समूह की धारणा है कि विशेष खाद्य पदार्थ पर प्रतिबंध लगे, जबकि दूसरा समूह उसके उपभोग को स्वीकार करता है, तो उस समूह द्वारा बलपूर्वक अपनी आहार संबंधी प्राथमिकताओं को दूसरों पर नहीं थोपा जाना चाहिए।दुर्भाग्यवश, हमारे देश में भोजन की आदतें और आहार संबंधी विकल्प अकसर भेदभाव, उत्पीड़न और यहां तक कि हिंसा का साधन बन जाते हैं। कई लोग, विशेषकर वे जो शाकाहारी या शुद्ध शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं, इस मिथक के साथ कि भारत मुख्य रुप से शाकाहारी, सुझाव देते हैं कि जो लोग मांसाहारी हैं वे किसी न किसी रुप में भारतीय संस्कृति और धार्मिक मूल्यों का उल्लंघन कर रहे हैं। इस मानसिकता के कारण मांस खाने वालों को अकसर हीन, क्रूर या असभ्य समझा जाता है।इस प्रकार की पूर्वाग्रही सोच ने कई बार मांसाहारी समुदायों के खिलाफ भेदभाव और शत्रुता को बढ़ावा दिया है, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और पूर्वोत्तर तथा तटीय क्षेत्रों के लोग शामिल हैं। ये पूर्वाग्रह न केवल...

Uploaded on 05-Jun-2025

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसः नफ़रती पूर्वाग्रह से ग्रसित तकनीक

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसः नफ़रती पूर्वाग्रह से ग्रसित तकनीक...

मोहम्मद इक़बालकल्पना कीजिए...आप एक नौकरी के लिए आवेदन करते हैं। आपकी डिग्रियां, अनुभव और स्किल्स सब कुछ बेहतरीन हैं। लेकिन इंटरव्यू से पहले ही आपका नाम देखकर एक AI सिस्टम आपको “अयोग्य” बता देता है। सिर्फ इसलिए कि आपका नाम “अब्दुल”, “फातिमा”, या “आरिफ़” है।आप एयरपोर्ट पर हैं—थोड़े थके हुए, हाथ में बोर्डिंग पास, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान। लेकिन तभी अचानक सिक्योरिटी आपको रोक लेती है। कुछ नहीं कहा जाता, बस आपके नाम को देखकर एक AI-चालित सिस्टम ने “फ्लैग” कर दिया।आपका जुर्म?“अब्दुल रहमान” नाम होना।निष्पक्षता का भ्रम -अब सोचिए—अगर एक इंसान ऐसा करता, तो आप कह सकते थे कि वो पक्षपाती है। लेकिन जब एक मशीन ये फ़ैसला लेती है, तो हम उसे कैसे चुनौती देंगे?यही तो असल संकट है आज जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), जो कि “निष्पक्ष” और “तथ्यों पर आधारित” होने का दावा करता है, वह भी हमारे समाज की पुरानी नफ़रतों और पूर्वाग्रहों को दोहराने लगे।AI आज केवल टेक्नोलॉजी नहीं, यह हमारी सोच को आकार देने वाली ताक़त बन चुकी है और जब यह ताक़त किसी धर्म, रंग, नस्ल या जाति को खतरे के रूप में पेश करती है, तो नुकसान सिर्फ एक इंसान का नहीं होता बल्कि पूरे समाज का होता है।आज के ज़माने...

Uploaded on 05-Jun-2025

‘माहवारी कोई श्राप या अप्राकृतिक चीज़ नहीं है जिस

‘माहवारी कोई श्राप या अप्राकृतिक चीज़ नहीं है जिस...

2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत में महिलाओं की आबादी लगभग 49 प्रतिशत के आसपसास है। अर्थात इस देश की आधी आबादी महिलाओं की है। इसके बावजूद हमारे देश में माहवारी पर बोलना, चर्चा करना आज भी शर्म की बात माना जाता है। जबकि अनेकों जागरुकता कार्यक्रम, अभियान इत्यादि सरकार व निजी सामाजिक संस्थाओं की ओर से चल चुके हैं। माहवारी की मूल समस्या और गरीब वर्ग में जागरुकता की कमी आदि मुद्दों पर आभा संपादकीय बोर्ड सदस्य तूबा हयात खान ने बात की दिल्ली की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हमराह सिद्दीकी से। डॉक्टर हमराह इलाहाबाद विश्विद्यालय से पढ़ी हैं और 35 वर्ष से प्रैक्टिस कर रही हैं। उन्होंने मलिन बस्तियों में माहवारी के प्रति जागरुकता फैलाने का भी काम किया है। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंशः-सवाल: भारतीय समाज में मासिक धर्म से संबंधित सबसे प्राथमिक और मूल समस्या क्या है?जवाब: समस्याएं तो बहुत सी हैं, विशेषकर ग़रीब परिवारों में। लेकिन मूल समस्या इस विषय पर बात ना होना है। आज भी लोग मासिक धर्म को लेकर लज्जा और शर्म के कारण घर वालों को बताते नहीं हैं कि यह क्या होता है। अधिकांश यह देखा गया है कि किसी लड़की के पहली बार पीरियड्स आते हैं तो...

Uploaded on 05-Jun-2025

युद्ध, हिंसा और तनाव में दोनों पक्ष ही हारते

युद्ध, हिंसा और तनाव में दोनों पक्ष ही हारते...

प्रोफेसर सलीम इंजीनियर चेयरपर्सन अवेयर ट्रस्ट22 अप्रैल 2025 को काश्मीर के पहलगाम की बाइसरान  घाटी में आतंकवादियों ने 26 निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या कर दी, जिस से पूरा देश दहल गया और दुनिया भर में इस दुख को महसूस किया गया और कड़ी निंदा की गई। जिन परिवारों ने इस हमले में अपनों को खोया उनके दुख और विपदा की तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस निर्मम हत्या कांड की आड़ में  कुछ देश और समाज विरोधी तत्वों और मीडिया के एक वर्ग ने देश में धर्म की बुनियाद पर नफरत फैलाने की कोशिश भी की जिसे भारत की जनता ने एक जुट होकर नाकाम कर दिया। इस आतंकी हमले के समय मौजूद स्थानीय कश्मीरी ग़रीब मुसलमानों ने अपनी जान पर खेल कर और कुछ ने अपनी जान कुर्बान करके सैलानियों की मदद की और उनको सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाया और  नफ़रत और घृणा के दानव को प्रेम और इंसानियत की ताकत से परास्त कर दिया। आतंकवाद अर्थात निर्दोष लोगों की हत्याएं करके भय और आतंक फैलाना किसी भी स्तिथि में संपूर्ण मानव जाति के खिलाफ एक घिनौना अपराध है। आतंकवाद चाहे वह किसी भी रुप में हो और वह चाहे किसी की भी तरफ से हो उसे...

Uploaded on 05-Jun-2025

हजः मानव समानता एवं वैश्विक भाईचारा

हजः मानव समानता एवं वैश्विक भाईचारा...

डॉक्टर फरहत हुसैन रिटायर्ड प्रोफेसर, रामनगर,उत्तराखंडसंयुक्त राज्य अमेरिका में रंग एवं नस्ल की समस्या से जूझते हुए अफ़रीक़ी मूल के एक बड़े लीडर मैल्कम एक्स (Malcolm X) ने जब इस्लामी शिक्षाओं में मानव समानता के सिद्धांत का अध्ययन किया और अपने संपर्क में आए मुसलमानों के व्यवहार को परख़ा तो उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया। सन 1964 में जब वह हज की तीर्थ यात्रा पर गए तो पुकार उठे कि यह है वास्तविक मानव समानता तथा विश्व बंधुत्व। हज यात्रा के उनके संस्मरणों में उन्होंने स्वीकार किया है कि रंग और नस्ल के भेदभाव तथा सामाजिक असमानता का एक मात्र समाधान इस्लाम में है जिसका प्रत्यक्ष एवं व्यवहारिक रुप हज यात्रा में मिलता है। मैल्कम एक्स (जो बाद में मलिक अल शाबाज़ के नाम से जाने गए) अपने एक पत्र में लिखते हैः-“मैंने कहीं और, सभी रंगों और जातियों के लोगों द्वारा की गई ऐसी ईमानदार मेहमान नवाज़ी और सच्चे भाईचारे की ज़बरदस्त भावना को नहीं देखा जो मुझे हज़रत इब्राहिम अलै० और पैगंबर मुहम्मद स०अ०व० की इस पवित्र भूमि (अर्थात मक्का, मदीना आदि) में देखने को मिली।”“(हज में) हम सभी वास्तव में एक जैसै थे क्योंकि एक ईश्वर में उनकी आस्था ने उनके दिमाग...

Uploaded on 05-Jun-2025

हाजरा अलै० का जीवन : आशा, धैर्य, साहस का

हाजरा अलै० का जीवन : आशा, धैर्य, साहस का...

रजीना बेग़मSecretary TWEET Foundationइतिहास अतीत का ठहरा हुआ पानी नहीं बल्कि हमारे वर्तमान अस्तित्व के संघर्ष की प्रेरक धारा है। मुस्लिम समाज जो आज समूचे विश्व में अपने ठोस अस्तित्व के लिए संघर्ष करता हुआ प्रतीत हो रहा है वह अतीत में भी भयानक परिस्थितियों से गुज़र चुका है। समय के चक्र ने उसे कई बार ऐसी ऐसी भयानक परिस्थितियों से चमत्कारिक रुप से उबरते हुए देखा है जहां से वापस लौटना असंभव था। जब हम किसी मुश्किल का सामना कर रहे होते हैं तो हमारे मन में कई प्रकार के सवाल उठते हैं। जैसे कि हमें ही क्यों ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है? हमारे ही ऊपर क्यों यह दुखों का पहाड़ टूटा? जबकि हम ज़्यादा इबादत करते हैं, अल्लाह के हुक्म को ज़्यादा मानते हैं। और जो लोग दिन रात अल्लाह की नाफरमानी कर रहे हैं वह हमसे ज़्यादा अच्छी ज़िंदगी जी रहे हैं। उन्हें सबकुछ मिलता है जो वह चाहते हैं लेकिन हमें क्यों नहीं?लेकिन हमारे सामने पूरे इस्लामिक इतिहास का उदाहरण मौजूद है कि अल्लाह हमें यूं ही अकेला नहीं छोड़ता। उसने हमारे लिए संदेश भेजे, संदेशवाहक के रुप में ऐसे लोगों को हमारे बीच भेजा जो हमारे जैसी परिस्थितियों से (या यूं कहें कि...

Uploaded on 05-Jun-2025

हज़रत इब्राहीम अलै० और उनके परिवार से सबक लेने

हज़रत इब्राहीम अलै० और उनके परिवार से सबक लेने...

आरिफ़ा परवीनप्रधान संपादककिसी भी देश या समाज के लिए कोई भी त्यौहार सामूहिक आनंद का दिन होता और यह मनुष्य और मानव समाज की स्वाभाविक आवश्यकता भी है। यही कारण है कि हर युग और हर समाज में त्यौहारों का प्रचलन किसी न किसी रूप में देखने को मिलता है। त्यौहारों के द्वारा ही हम किसी समाज या संस्कृति को अच्छे से समझ सकते हैं। ईश्वर ने मानवीय मानसिकता पर विशेष ध्यान दिया है। मनोरंजन की इस स्वाभाविक मांग के कारण, जो प्रत्येक मनुष्य की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता है उसे कुछ सीमाओं और प्रतिबंधों के साथ खुशी के अवसर प्रदान किए गए हैं। प्रत्येक मुसलमान के लिए इन सीमाओं और निषेधों का पालन करना अनिवार्य और आवश्यक है। इस्लाम में इन खुशी के अवसरों को "ईद" कहा जाता है। यदि इन्हें उचित शिष्टाचार और शर्तों के साथ मनाया जाए तो इससे मनोवैज्ञानिक आवश्यकता भी पूरी होती है।मनोरंजन के लिए लोग आमतौर पर जिन प्रकार के त्यौहारों और अवसरों पर उत्सव मनाते हैं, उनमें से किसी को भी अल्लाह ने मनोरंजन या त्यौहार के रूप में नहीं चुना है। इस्लाम में केवल दो ईद होती हैं। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पवित्र कथन है: "प्रत्येक राष्ट्र की एक ईद (खुशी...

Uploaded on 05-Jun-2025

पहलगाम में हुआ आतंकी हमला निंदनीय, जल्द न्याय मिले

पहलगाम में हुआ आतंकी हमला निंदनीय, जल्द न्याय मिले...

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद सआदतुल्लाह हुसैनी ने मंगलवार को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले की कड़ी निंदा की। इस हमले में पर्यटकों समेत कई निर्दोष स्थानीय लोगों की मौत हो गई। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष ने राज्य और केंद्रीय प्रशासन से पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने, सुरक्षा उपाय मज़बूत करने और कमज़ोर सुमदायों की सुरक्षा के लिए निर्णायक एवं पारदर्शी कदम उठाने का आग्रह किया है।सैय्यद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा, “हम 23 अप्रैल को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आंतकी हमले की कड़ी निंदा करते हैं। विदेशी पर्यटकों सहित निर्दोष लोगों की मौत बेहद दुखद है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं पीड़ितों और उनके शोकाकुल परिवारों के साथ है। इस तरह के बर्बर कृत्य को किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह पूरी तरह अमानवीय है और इसकी पूरी तरह से निंदा की जानी चाहिए। ज़िम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए और उन्हें कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।”Heading :पहलगाम हमले में लोगों की जान बचाते हुए शहीद हुआ कश्मीरी युवा आदिल हुसैन शाहBody Text:“यह बेकसूर हैं, इन्हें जाने दो..इस्लाम किसी बेकसूर पर ज़ुल्म करने की इजाज़त नहीं देता” यह शब्द हैं आदिल हुसैन शाह के जिसने पहलगाम आंतकी...

Uploaded on 05-May-2025

बहादुरी की दो मिसालः इब्तिहाल और वानिया

बहादुरी की दो मिसालः इब्तिहाल और वानिया...

माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के पचास वर्ष पूरे होने पर सफलता का जश्न मनाया जा रहा था। वाशिंगटन के एक बड़े से कांफ्रेंस हॉल में विशाल आयोजन हुआ था जहां कंपनी के सारे वर्कर्स मौजूद थे। एक सेशन में कंपनी के मालिक बिल गेट्स भी मौजूद थे। जिसमें माइक्रोसॉफ्ट के AI सेक्शन के सीईओ मुस्तफा सुलेमान स्टेज पर बिल गेट्स के सामने AI के फायदे गिना रहे थे। वह बड़े गर्व से बता रहे थे कि किस तरह AI यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानवता के लिए लाभकारी साबित हुई है। इतने में हिम्मत, हौसले व बहादुरी का सबूत देते हुए एक लड़की खड़ी हुई और स्टेज के पास पहुंच कर सीईओ मुस्तफा सुलेमान को लानत करते हुए कहने लगी, “मुस्तफा तुम्हें शर्म आनी चाहिए, तुम और तुम्हारी यह कंपनी फिलीस्तीन में पचास हज़ार से ज़्यादा मासूमों की हत्या की ज़िम्मेदार है।” अभी लोग कुछ समझ पाते तब तक उसने फिलीस्तीनी कैफिया सबके सामने लहराते हुए उछाल दिया। सिक्योरिटी गॉर्ड उसे पकड़कर बाहर ले जाने लगे लेकिन वह चिल्लाती रही और मुस्तफा सुलेमान को शर्म दिलाने की कोशिश करती रही। वह चीख चीख कर कहती रही, “मुस्तफा सीरिया में मौजूद तुम्हारा परिवार तुम्हारी असलियत जान लेगा।”फिलीस्तीन के समर्थन में इस तरह की बहादुरी दिखाने...

Uploaded on 05-May-2025

क्या आप सोते रहना चाहते है जब तक अस्पताल

क्या आप सोते रहना चाहते है जब तक अस्पताल...

कल्पना कीजिए कि आप अपने कमरे में शांति से सो रहे हैं और अचानक आपके घर में आग लग जाती है। लेकिन बजाय जागने और खुद को बचाने या आग बुझाने के, आप सोते रहते हैं। यह बात अजीब लगती है न? या सोचिए कि आप जानबूझकर कोई ज़हरीली चीज़ खा रहे हैं, जबकि आप उसके दुष्प्रभावों को जानते हैं—और फिर भी आप उसे खा लेते हैं। ये उदाहरण भले ही अतिशयोक्तिपूर्ण लगें, लेकिन रूपक के तौर पर देखें तो आजकल हम में से बहुत से लोग अपनी सेहत के साथ यही कर रहे हैं।आधुनिक दुनिया में स्वास्थ्य की स्थितिआज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में स्वास्थ्य को एक तरफ सराहा जाता है, तो दूसरी ओर पूरी तरह नज़रअंदाज़ भी किया जाता है। एक ओर लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं, लेकिन अक्सर गलत कारणों से। बहुत से लोग स्वस्थ इसलिए नहीं बनना चाहते कि वे फिट और ऊर्जावान रहें, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें सोशल मीडिया पर अच्छा दिखना है या “परफेक्ट” बॉडी चाहिए।दूसरी ओर, बड़ी आबादी चुपचाप बीमारी की ओर बढ़ रही है—बुरी आदतों, बैठकर बिताई जाने वाली जीवनशैली और उन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति के कारण, जो समय रहते सुधार की ओर इशारा करती हैं।स्वास्थ्य...

Uploaded on 05-May-2025

परिवार: एक स्वस्थ समाज की नींव

परिवार: एक स्वस्थ समाज की नींव...

दुनिया अकल्पनीय गति से आगे बढ़ रही है। हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि व्यक्तिवाद एकजुटता पर हावी हो रहा है। इसलिए, परिवार के महत्व के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिए परिवार के सार पर फिर से विचार करना बहुत ज़रूरी हो गया है। एक परिवार सिर्फ़ रक्त या विवाह से जुड़े लोगों का समूह नहीं है, यह एक पवित्र संस्था है, मूल्यों, नैतिकता और भावनात्मक सुरक्षा के लिए पोषण करने वाली ज़मीन है। साथ ही यह वह वास्तविक स्थान है जहाँ प्रतिभाएँ निखरती या दबती हैं। यह वह आधार है जिस पर एक मज़बूत और स्थिर समाज का निर्माण होता है। अगर इसे महत्व नहीं दिया जाता है तो यह पूरे सामाजिक ढांचे को बाधित करता है।परिवार हर समाज की नींव है। यह वह पहला स्थान है जहाँ मूल्यों का पोषण होता है, जहाँ व्यक्तित्व का निर्माण होता है और जहाँ व्यक्ति दूसरों के साथ मिलकर रहना सीखते हैं। आज की तेज़-रफ़्तार दुनिया में, परिवार का महत्व और भी बढ़ गया है। व्यस्त शेड्यूल और अंतहीन विकर्षणों के बीच, परिवार भावनात्मक शक्ति और नैतिक मार्गदर्शन का स्रोत बने हुए हैं।एक परिवार का प्रत्येक सदस्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, माता-पिता सिर्फ़...

Uploaded on 05-May-2025

ट्रंप का टैरिफ प्लान और उसका असर

ट्रंप का टैरिफ प्लान और उसका असर...

1.महत्वपूर्ण शब्दावलियां लेख में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्दावलियों का वर्णन पाठको की सुविधा की दृष्टि पूर्व में ही किया जा रहा हैं।टैरिफ या प्रशुल्क टैरिफ वस्तुओं पर लगाया गया एक कर है जब वे राष्ट्रीय सीमा में प्रवेश करती है और उसे छोड़ती है। सामान्य अर्थों में "आयात और निर्यात पर लगाए जाने वाले शुल्क को टैरिफ कहा जाता है।" परंतु व्यावहारिक उद्देश्य के लिए, एक टैरिफ आयात शुल्क या सीमा शुल्क का पर्यायवाची है।टैरिफ के कई प्रकार होते हैं जैसे मूल्यानुसार टैरिफ, विशेष टैरिफ, एक कॉलम टैरिफ, दोहरे कॉलम टैरिफ, बहु कॉलम टैरिफ, पारस्परिक टैरिफ(reciporical tarrif), प्रतिशोधात्मक टैरिफ(retaliatory tarrif ) व प्रतिकार टैरिफ(countervailing duty) आदि। यहां सुविधा की दृष्टि से केवल दो प्रकार के टैरिफ को परिभाषित किया गया हैं।पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariff)एक ऐसा व्यापारिक समझौता जिसमें दो देश एक दूसरे की वस्तुओं/सेवाओं पर आयात शुल्क (Import duties) को समान या तुलनात्मक स्तर पर रखते हैं। हाल ही में अमेरिका द्वारा लगाया गया टैरिफ इसी प्रकार का टैरिफ हैं।प्रतिशोधात्मक टैरिफ (Retaliatory Tarrif)प्रतिशोधात्मक टैरिफ एक देश द्वारा दूसरे देश के आयात पर उसकी व्यापार नीति के लिए उसे दंड देने हेतु लगाया जाता है जो उसके निर्यातों को या व्यापार शेष को हानि पहुंचाते हैं। अमेरिकी टैरिफ नीति के विरोध में अन्य देशों...

Uploaded on 05-May-2025

...जब देश की संसद में वक्फ कानून पर चर्चा

...जब देश की संसद में वक्फ कानून पर चर्चा...

जब संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत हुई तभी से देश में एक हलचल शुरु हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था मानो सबको पहले से मालूम है कि इस बार के संसद सत्र में वक्फ बिल कानून का रुप ले ही लेगा। इसलिए इस बार का संसद सत्र बहुत ही महत्वपूर्ण था और लगभग हर भारतीय को इस सत्र के शुरु होने का बेसब्री से इंतज़ार था। सत्ता एवं विपक्षीय दल पहले से बहस की पूरी तैयारी में जुटे हुए थे। फिर हुआ भी यही कि सत्र की शुरुआत हुई और सरकार ने 2 अप्रैल को संसद में वक्फ बिल पेश किया। सरकार द्वारा वक्फ बिल पर चर्चा हेतु 8 घंटे का समय निर्धारित किया गया था। परंतु विपक्षीय दलों की मांग के बाद अंततः 13 घंटे इस बिल पर लोकसभा में चर्चा हुई। जिसमें अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इस बिल पर सरकार का पक्ष रखते हुए वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को मुस्लिम महिला, मुस्लिम पिछड़ा वर्ग के लिए लाभप्रद बताते हुए कहा कि, मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि जो लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं उनके दिल भी परिवर्तित होंगे और अंत में वे भी इस बिल का...

Uploaded on 05-May-2025

"शिक्षा की दिशा में परिवर्तन या भविष्य का संकट?

"शिक्षा की दिशा में परिवर्तन या भविष्य का संकट?...

किसी भी देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य बातों को समाहित करती सामूहिक जीवन व्यवस्था, जो कानूनी संविधान के माध्यम से संचालित होती है, उसकी सफलता का आधार वहां के समुदायों के सामाजिक समन्वय और सहयोग पर निर्भर होता है। यह सफलता तभी संभव है जब न्याय और समानता आधारित मानवीय मूल्यों को आम जनमानस की मानसिकता के केंद्र में स्थापित किया जाए। इस उद्देश्य को परिपूर्ण करने के लिए वैसी ही शिक्षा नीति और उसी के अनुरूप पूरी शिक्षा व्यवस्था को आकार देना अनिवार्य हो जाता है।केंद्र सरकार द्वारा NEP-2020 के नाम से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश के सामने प्रस्तुत की जा चुकी है। किसी भी देश की शिक्षा नीति का दस्तावेज़ तीन वास्तविकताओं को समाविष्ट करता है— अब तक की शैक्षणिक यात्रा, उसमें मिली सफलताएं और कमियाँ का परोक्ष स्वीकार; वर्तमान परिस्थितियों का प्रतिबिंब; और भविष्य के समाज, देश तथा विश्व के लिए यह एक मील का पत्थर या दिशासूचक के रूप में कार्य करता है।लोकतंत्र की सही परिभाषा और प्रणाली में देश के भविष्य के निर्माण में आम व्यक्ति के सुझावों और मतों को स्थान दिया जाता है ताकि हर किसी को अपने सपनों की दुनिया रचने की प्रेरणा और उत्साह मिल सके। शायद...

Uploaded on 05-May-2025

संतुलित जीवन : एक ऐसा सफ़र जो अंदर की

संतुलित जीवन : एक ऐसा सफ़र जो अंदर की...

संतुलित जीवन: एक तलाश जो थकावट में खो गई है आज की युवा पीढ़ी के पास विकल्प बहुत हैं, लेकिन मानसिक शांति बहुत कम। पढ़ाई हो या करियर, हर मोर्चे पर दौड़ लगी है। इस दौड़ में हर कोई तेज़ भागना चाहता है, लेकिन कोई नहीं पूछता – “तू थका तो नहीं?”इस लेख में हम बात करेंगे उस 'संतुलन' की, जिसे पाना तो सभी चाहते हैं, लेकिन जो सबसे पहले खो जाता है – पढ़ाई के प्रेशर में, नौकरी की चिंता में, और 'सेटल' होने की होड़ में।पढ़ाई का दबाव: नंबरों के पीछे भागता मनस्कूल के दिनों में एक बात बार-बार कही जाती थी — “अच्छे नंबर लाओ, तभी अच्छा भविष्य बनेगा।” यह वाक्य धीरे-धीरे एक डर बन गया। अब हर परीक्षा सिर्फ ज्ञान का नहीं, पहचान का भी पैमाना बन गई है।आज की शिक्षा प्रणाली में कौन क्या सीख रहा है, उससे ज़्यादा अहम हो गया है कौन कितना स्कोर कर रहा है। माता-पिता की उम्मीदें, समाज की तुलना, और सोशल मीडिया पर छाए 'टॉपर कल्चर' ने पढ़ाई को ज्ञान की यात्रा से निकालकर एक रेस बना दिया है — जिसमें हारना तो छोड़िए, थमना भी गुनाह मान लिया जाता है।एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर 5 में...

Uploaded on 05-May-2025

घर में रहने वाली औरतें घर की नहीं होतीं?”

घर में रहने वाली औरतें घर की नहीं होतीं?”...

1. समाज का सबसे बड़ा झूठ: ‘घरेलू महिलाएं कुछ नहीं करतीं’अगर किसी महिला से आप पूछें —“आप क्या करती हैं?”और वो कह दे — “मैं घर पर रहती हूं”,तो अगला सवाल होता है — “घर पर ही? कुछ करती क्यों नहीं?”यही सवाल देश के करोड़ों घरेलू महिलाओं को रोज़ सुनना पड़ता है।उनसे कोई ये नहीं पूछता कि वह घर पर क्या-क्या करती हैं?सिर्फ़ ये मान लिया जाता है कि जो घर पर है, वो निकम्मी है, बेकार है, कामचोर है।क्या आपने कभी सोचा — कि जिन महिलाओं ने घर को सम्भाला, वह क्यों खुद को हर दिन साबित करती हैं?2. घर चलाना ‘करियर’ क्यों नहीं माना जाता?आप ऑफिस जाते हैं — 9 से 5आपके पास लंच टाइम है, सैलरी है, छुट्टियां हैं।घर की महिला?24 घंटे ड्यूटी पर है बिना सैलरी, बिना छुट्टी, बिना ‘thank you’ के। • सुबह सबसे पहले उठना • सबके लिए चाय और नाश्ता बनाना • बच्चों का टिफिन, पति के कपड़े, सास-ससुर की दवा • कपड़े धोना, बर्तन, सफाई, राशन लाना • फिर दोपहर का खाना, फिर मेहमान, फिर बच्चों की पढ़ाई • फिर रात का खाना, सबको सुलाना — और फिर अगली सुबह की तैयारी…ये काम नहीं है तो फिर क्या है?घर चलाना क्या किसी...

Uploaded on 05-May-2025

“अपना अधिकार वापस पाने के लिए संघर्ष करना होगा”

“अपना अधिकार वापस पाने के लिए संघर्ष करना होगा”...

प्रत्येक वर्ष 1 मई को हम सब मज़दूर दिवस मनाते हैं, इस दिन मज़दूरों के अधिकारों को लेकर काफी लंबी बातचीत होती है, लेकिन वास्तव में मज़दूरों की स्थिति में कोई फर्क़ नहीं महसूस किया जाता है। बल्कि साल दर साल मज़दूरों की स्थिति और भी दयनीय होती जा रही है और देश में गरीबी बढ़ती जा रही है। इस समय मज़दूरों की स्थिति क्या है विशेषरुप से महिला मज़दूरों की। इस बात को जानने और समझने के लिए आभा संपादकीय मंडल सदस्य सुमैय्या मरयम ने श्रीमती सुचारिता से बात की। सुचारिता समाज सेविका है और पुरुगामी महिला संगठन दिल्ली की संचालिका हैं। वह 1980 से महिला अधिकारों के लिए सक्रिय रुप से समाज में काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त वह शोषण, हिंसा और अन्याय के खिलाफ भी समाज को जागरुक करने का निरंतर प्रयास कर रही हैं। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंशःसवालः मज़दूरों का महत्व क्या है?जवाबः हमारा भारतीय समाज जो है और जैसे लगभग दुनिया के सारे एडवांस देश हैं वे सभी कैपिटलिस्ट सोसायटी हैं जहां उत्पादन के जो बड़े बड़े साधन हैं इनके मालिक कैपिटलिस्ट हैं, और समय के साथ जैसे जैसे कैपिटलिस्ट बड़े होते हैं वे बहुत सारे सेक्टर के उत्पादन के साधनों को...

Uploaded on 05-May-2025