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ट्रंप का टैरिफ प्लान और उसका असर

ट्रंप का टैरिफ प्लान और उसका असर...

1.महत्वपूर्ण शब्दावलियां लेख में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्दावलियों का वर्णन पाठको की सुविधा की दृष्टि पूर्व में ही किया जा रहा हैं।टैरिफ या प्रशुल्क टैरिफ वस्तुओं पर लगाया गया एक कर है जब वे राष्ट्रीय सीमा में प्रवेश करती है और उसे छोड़ती है। सामान्य अर्थों में "आयात और निर्यात पर लगाए जाने वाले शुल्क को टैरिफ कहा जाता है।" परंतु व्यावहारिक उद्देश्य के लिए, एक टैरिफ आयात शुल्क या सीमा शुल्क का पर्यायवाची है।टैरिफ के कई प्रकार होते हैं जैसे मूल्यानुसार टैरिफ, विशेष टैरिफ, एक कॉलम टैरिफ, दोहरे कॉलम टैरिफ, बहु कॉलम टैरिफ, पारस्परिक टैरिफ(reciporical tarrif), प्रतिशोधात्मक टैरिफ(retaliatory tarrif ) व प्रतिकार टैरिफ(countervailing duty) आदि। यहां सुविधा की दृष्टि से केवल दो प्रकार के टैरिफ को परिभाषित किया गया हैं।पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariff)एक ऐसा व्यापारिक समझौता जिसमें दो देश एक दूसरे की वस्तुओं/सेवाओं पर आयात शुल्क (Import duties) को समान या तुलनात्मक स्तर पर रखते हैं। हाल ही में अमेरिका द्वारा लगाया गया टैरिफ इसी प्रकार का टैरिफ हैं।प्रतिशोधात्मक टैरिफ (Retaliatory Tarrif)प्रतिशोधात्मक टैरिफ एक देश द्वारा दूसरे देश के आयात पर उसकी व्यापार नीति के लिए उसे दंड देने हेतु लगाया जाता है जो उसके निर्यातों को या व्यापार शेष को हानि पहुंचाते हैं। अमेरिकी टैरिफ नीति के विरोध में अन्य देशों...

Uploaded on 05-May-2025

...जब देश की संसद में वक्फ कानून पर चर्चा

...जब देश की संसद में वक्फ कानून पर चर्चा...

जब संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण की शुरुआत हुई तभी से देश में एक हलचल शुरु हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था मानो सबको पहले से मालूम है कि इस बार के संसद सत्र में वक्फ बिल कानून का रुप ले ही लेगा। इसलिए इस बार का संसद सत्र बहुत ही महत्वपूर्ण था और लगभग हर भारतीय को इस सत्र के शुरु होने का बेसब्री से इंतज़ार था। सत्ता एवं विपक्षीय दल पहले से बहस की पूरी तैयारी में जुटे हुए थे। फिर हुआ भी यही कि सत्र की शुरुआत हुई और सरकार ने 2 अप्रैल को संसद में वक्फ बिल पेश किया। सरकार द्वारा वक्फ बिल पर चर्चा हेतु 8 घंटे का समय निर्धारित किया गया था। परंतु विपक्षीय दलों की मांग के बाद अंततः 13 घंटे इस बिल पर लोकसभा में चर्चा हुई। जिसमें अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इस बिल पर सरकार का पक्ष रखते हुए वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को मुस्लिम महिला, मुस्लिम पिछड़ा वर्ग के लिए लाभप्रद बताते हुए कहा कि, मुझे उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि जो लोग इस बिल का विरोध कर रहे हैं उनके दिल भी परिवर्तित होंगे और अंत में वे भी इस बिल का...

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"शिक्षा की दिशा में परिवर्तन या भविष्य का संकट?

"शिक्षा की दिशा में परिवर्तन या भविष्य का संकट?...

किसी भी देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य बातों को समाहित करती सामूहिक जीवन व्यवस्था, जो कानूनी संविधान के माध्यम से संचालित होती है, उसकी सफलता का आधार वहां के समुदायों के सामाजिक समन्वय और सहयोग पर निर्भर होता है। यह सफलता तभी संभव है जब न्याय और समानता आधारित मानवीय मूल्यों को आम जनमानस की मानसिकता के केंद्र में स्थापित किया जाए। इस उद्देश्य को परिपूर्ण करने के लिए वैसी ही शिक्षा नीति और उसी के अनुरूप पूरी शिक्षा व्यवस्था को आकार देना अनिवार्य हो जाता है।केंद्र सरकार द्वारा NEP-2020 के नाम से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश के सामने प्रस्तुत की जा चुकी है। किसी भी देश की शिक्षा नीति का दस्तावेज़ तीन वास्तविकताओं को समाविष्ट करता है— अब तक की शैक्षणिक यात्रा, उसमें मिली सफलताएं और कमियाँ का परोक्ष स्वीकार; वर्तमान परिस्थितियों का प्रतिबिंब; और भविष्य के समाज, देश तथा विश्व के लिए यह एक मील का पत्थर या दिशासूचक के रूप में कार्य करता है।लोकतंत्र की सही परिभाषा और प्रणाली में देश के भविष्य के निर्माण में आम व्यक्ति के सुझावों और मतों को स्थान दिया जाता है ताकि हर किसी को अपने सपनों की दुनिया रचने की प्रेरणा और उत्साह मिल सके। शायद...

Uploaded on 05-May-2025

संतुलित जीवन : एक ऐसा सफ़र जो अंदर की

संतुलित जीवन : एक ऐसा सफ़र जो अंदर की...

संतुलित जीवन: एक तलाश जो थकावट में खो गई है आज की युवा पीढ़ी के पास विकल्प बहुत हैं, लेकिन मानसिक शांति बहुत कम। पढ़ाई हो या करियर, हर मोर्चे पर दौड़ लगी है। इस दौड़ में हर कोई तेज़ भागना चाहता है, लेकिन कोई नहीं पूछता – “तू थका तो नहीं?”इस लेख में हम बात करेंगे उस 'संतुलन' की, जिसे पाना तो सभी चाहते हैं, लेकिन जो सबसे पहले खो जाता है – पढ़ाई के प्रेशर में, नौकरी की चिंता में, और 'सेटल' होने की होड़ में।पढ़ाई का दबाव: नंबरों के पीछे भागता मनस्कूल के दिनों में एक बात बार-बार कही जाती थी — “अच्छे नंबर लाओ, तभी अच्छा भविष्य बनेगा।” यह वाक्य धीरे-धीरे एक डर बन गया। अब हर परीक्षा सिर्फ ज्ञान का नहीं, पहचान का भी पैमाना बन गई है।आज की शिक्षा प्रणाली में कौन क्या सीख रहा है, उससे ज़्यादा अहम हो गया है कौन कितना स्कोर कर रहा है। माता-पिता की उम्मीदें, समाज की तुलना, और सोशल मीडिया पर छाए 'टॉपर कल्चर' ने पढ़ाई को ज्ञान की यात्रा से निकालकर एक रेस बना दिया है — जिसमें हारना तो छोड़िए, थमना भी गुनाह मान लिया जाता है।एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर 5 में...

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घर में रहने वाली औरतें घर की नहीं होतीं?”

घर में रहने वाली औरतें घर की नहीं होतीं?”...

1. समाज का सबसे बड़ा झूठ: ‘घरेलू महिलाएं कुछ नहीं करतीं’अगर किसी महिला से आप पूछें —“आप क्या करती हैं?”और वो कह दे — “मैं घर पर रहती हूं”,तो अगला सवाल होता है — “घर पर ही? कुछ करती क्यों नहीं?”यही सवाल देश के करोड़ों घरेलू महिलाओं को रोज़ सुनना पड़ता है।उनसे कोई ये नहीं पूछता कि वह घर पर क्या-क्या करती हैं?सिर्फ़ ये मान लिया जाता है कि जो घर पर है, वो निकम्मी है, बेकार है, कामचोर है।क्या आपने कभी सोचा — कि जिन महिलाओं ने घर को सम्भाला, वह क्यों खुद को हर दिन साबित करती हैं?2. घर चलाना ‘करियर’ क्यों नहीं माना जाता?आप ऑफिस जाते हैं — 9 से 5आपके पास लंच टाइम है, सैलरी है, छुट्टियां हैं।घर की महिला?24 घंटे ड्यूटी पर है बिना सैलरी, बिना छुट्टी, बिना ‘thank you’ के। • सुबह सबसे पहले उठना • सबके लिए चाय और नाश्ता बनाना • बच्चों का टिफिन, पति के कपड़े, सास-ससुर की दवा • कपड़े धोना, बर्तन, सफाई, राशन लाना • फिर दोपहर का खाना, फिर मेहमान, फिर बच्चों की पढ़ाई • फिर रात का खाना, सबको सुलाना — और फिर अगली सुबह की तैयारी…ये काम नहीं है तो फिर क्या है?घर चलाना क्या किसी...

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“अपना अधिकार वापस पाने के लिए संघर्ष करना होगा”

“अपना अधिकार वापस पाने के लिए संघर्ष करना होगा”...

प्रत्येक वर्ष 1 मई को हम सब मज़दूर दिवस मनाते हैं, इस दिन मज़दूरों के अधिकारों को लेकर काफी लंबी बातचीत होती है, लेकिन वास्तव में मज़दूरों की स्थिति में कोई फर्क़ नहीं महसूस किया जाता है। बल्कि साल दर साल मज़दूरों की स्थिति और भी दयनीय होती जा रही है और देश में गरीबी बढ़ती जा रही है। इस समय मज़दूरों की स्थिति क्या है विशेषरुप से महिला मज़दूरों की। इस बात को जानने और समझने के लिए आभा संपादकीय मंडल सदस्य सुमैय्या मरयम ने श्रीमती सुचारिता से बात की। सुचारिता समाज सेविका है और पुरुगामी महिला संगठन दिल्ली की संचालिका हैं। वह 1980 से महिला अधिकारों के लिए सक्रिय रुप से समाज में काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त वह शोषण, हिंसा और अन्याय के खिलाफ भी समाज को जागरुक करने का निरंतर प्रयास कर रही हैं। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंशःसवालः मज़दूरों का महत्व क्या है?जवाबः हमारा भारतीय समाज जो है और जैसे लगभग दुनिया के सारे एडवांस देश हैं वे सभी कैपिटलिस्ट सोसायटी हैं जहां उत्पादन के जो बड़े बड़े साधन हैं इनके मालिक कैपिटलिस्ट हैं, और समय के साथ जैसे जैसे कैपिटलिस्ट बड़े होते हैं वे बहुत सारे सेक्टर के उत्पादन के साधनों को...

Uploaded on 05-May-2025

वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025

वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025...

मुसलमानों की स्वायत्ता और पहचान पर हमलादेश भर में मुस्लिम नेताओं, मुस्लिम सांसदों और सामाजिक संगठनों के कड़े विरोध के बावजूद, 3 अप्रैल 2025 को लोकसभा ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित कर दिया। कहने को तो यह बिल "सुधार" और "पारदर्शिता" के नाम पर लाया गया है, लेकिन वास्तव में यह मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक संस्थानों को कमज़ोर करने की बड़ी साज़िश है। इसमें वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन, पंजीकरण और क़ानूनी सुरक्षा में कई बड़े बदलाव किए गए हैं, जो धार्मिक आज़ादी और संवैधानिक सुरक्षा दोनों पर सीधा हमला है।यह सिर्फ़ एक क़ानूनी दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि एक विचारधारा पर आधारित योजना का हिस्सा है—जिसका मक़सद मुस्लिम समुदाय की पहचान, आज़ादी और विरासत पर सरकार का और ज़्यादा नियंत्रण स्थापित करना है।वक़्फ़ संस्थान: एक पवित्र अमानत और संवैधानिक अधिकारवक़्फ़ (धार्मिक या समाज सेवा के लिए दी गई संपत्ति) इस्लामी क़ानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों को धार्मिक और सांस्कृतिक आज़ादी दी है जिसका उल्लेख अनुच्छेद 25 और 26 में है। खासतौर पर अनुच्छेद 26(b) हर धार्मिक समूह को अपने धार्मिक मामलों को खुद चलाने का अधिकार देता है। इस नज़रिये से, वक़्फ़ केवल एक धार्मिक संस्थान नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है।नए कानून से उपजी...

Uploaded on 05-May-2025

मज़दूर दिवस और महिलाओं की स्थिति

मज़दूर दिवस और महिलाओं की स्थिति...

सिंतबर 2024 में वर्किंग वूमन एना सेबेस्टियन की काम के दबाव के कारण होने वाली मौत और कोलकाता के आरजी कर अस्पताल की डॉक्टर के साथ काम के दौरान गैंगरेप और उसके बाद बेरहम हत्या ने ना केवल पूरे देश को हिला दिया बल्कि वर्क प्लेस की सेफ्टी एंड सिक्योरिटी पर प्रश्न खड़े कर दिए। इसके साथ ही यह सवाल भी पैदा होता है कि संगठित क्षेत्र में उच्च शिक्षा और वर्किंग वीमन के साथ इस प्रकार की स्थिति पेश आ रही है तो हमारे देश में जो असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की क्या स्थिति होगी? एक ऐसे दौर में जो कि बहुत रचनात्मक दौर माना जाता है और इंसान तरक्की की ओर बढ़ता जा रहा है इस प्रकार की घटनाएं पेश आना हमारी व्यवस्था पर कई प्रश्नचिन्ह लगाता है। यह इस बात का भी संकेत देता है कि समाज का माइंडसेट अभी भी अपने स्टीरियोटाइप सोच से नहीं उभरा है। पैसा, मेहनत अर्थव्यवस्था के दो पहिए हैं। पैसे के बल पर हमारे पूंजीपतियों में यह सोच विकसित हो गई है कि पैसे के दम पर मेहनत करने वालों को खरीदा जा सकता है तो फिर कोई नियम और कानून की पाबंदी करना ज़रुरी नहीं। हर साल...

Uploaded on 05-May-2025

मज़दूरों के अधिकार

मज़दूरों के अधिकार...

सूरा हदीद, आयत 25 के परिप्रेक्ष्य में इस्लामी शिक्षाएँ"َقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا بِالْبَيِّنَاتِ وَأَنْزَلْنَا مَعَهُمُ الْكِتَابَ وَالْمِيزَانَ لِيَقُومَ النَّاسُ بِالْقِسْطِ ۖ وَأَنْزَلْنَا الْحَدِيدَ فِيهِ بَأْسٌ شَدِيدٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ…"(सूरा अल-हदीद, आयत 25)अनुवाद :“हमने अपने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनके साथ किताब और न्याय का तराज़ू (मिज़ान) उतारा ताकि लोग न्याय पर स्थिर रहें। और हमने लोहे को उतारा जिसमें भारी ताक़त और लोगों के लिए फ़ायदे हैं…”परिचय : इस्लाम एक पूर्ण जीवन व्यवस्था है जो मानव जीवन के हर पहलू को न्याय के ढांचे में ढालता है। विशेषकर मज़दूरों और मेहनतकश वर्ग को इस्लाम ने एक महान स्थान प्रदान किया है, जो मानव इतिहास में अद्वितीय है। सूरा हदीद की आयत 25 में "मिज़ान" (न्याय और संतुलन) और "हदीद" (लोहा) का उल्लेख सामाजिक न्याय, आर्थिक संतुलन और मानव अधिकारों की महत्ता को उजागर करता है। यह आयत हमें बताती है कि अल्लाह ने नबियों को केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों की स्थापना के लिए भी भेजा। इस लेख में हम इसी आयत के आलोक में मज़दूरों के अधिकारों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।न्याय की स्थापना का आदेश: “लियक़ूमन नासु बिलक़िस्त”अल्लाह फ़रमाते हैं: “ताकि लोग न्याय पर कायम रहें” यहाँ “क़िस्त” से तात्पर्य है...

Uploaded on 05-May-2025

मज़दूरों का सम्मान हमारी ज़िम्मेदारी

मज़दूरों का सम्मान हमारी ज़िम्मेदारी...

मज़दूर दिवस प्रत्येक वर्ष संपूर्ण विश्व में मजदूरों के सम्मान और उनके कार्य की सराहना के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत अमेरिका में 1 मई 1889 से हुई परंतु उनकके अधिकारों के लिए संघर्ष एवं प्रयास 1886 से किया जाने लगा था और 3 वर्ष बाद इसे आधिकारिक रूप से वैश्विक स्तर पर मनाया जाने लगा। भारत में 1 मई 1923 को पहली बार मज़दूर दिवस मनाया गया और अमेरिका की तरह यहां भी श्रमिकों के लिए 8 घंटे काम करने का नियम लागू कर दिया गया।सामान्यतः मज़दूर दिवस पर जब चर्चा होती है तो अधिकतर निचले और मध्यम वर्ग के श्रमिकों के संदर्भ में बातचीत की जाती है और उनकी अनथक मेहनत व परिश्रम से संबंधित किस्से बयान किए जाते है। हालांकि उनके श्रम और कार्य का मूल्यांकन करना आसान नहीं है। लेकिन जब मज़दूर की बात की जाए तो किसी भी समाज, संस्था और उद्योग आदि में काम करने वाला हर व्यक्ति उस में शामिल होता है। क्योंकि जहां शारीरिक श्रम महत्वपूर्ण है वहीं मानसिक श्रम भी महत्वपूर्ण है। कार्यालय में काम करने वाले कर्मचारी हो, दैनिक मज़दूर या किसी बड़ी संस्था में ऊंचे पदों पर कार्यरत्त कर्मचारी, हर एक का सम्मान किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति जो अपनी...

Uploaded on 05-May-2025

मिसेज- एक ऐसी फिल्म जो मर्दों को देखना ज्यादा

मिसेज- एक ऐसी फिल्म जो मर्दों को देखना ज्यादा...

फिल्म- मिसेज निर्देशक: आरती कदवकलाकार: सान्या मल्होत्रा, कंवलजीत सिंह, निशांत दहियापिछले महीने 8 मार्च को हमने जोर शोर से महिला दिवस मनाया। बड़े बड़े मंच पर महिलाओं को लेकर बड़ी-बड़ी बातें हुई, सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाटसअप और इन्स्टा स्टोरी पर महिलाओं के कसीदे पढ़े गये। लेकिन जितनी बातें होती है, क्या हकीक़त में भी हमारे समाज में महिलाओं की उतनी इज्जत होती है। हम बहुत दूर न जा कर अपने घरों में ही देख लें हम यहां अभी समानता की बात नहीं करेंगे, वर्क प्लेस पर उसके साथ कैसा बर्ताव होता है उसकी बात भी नहीं करेंगे, हम आज उसके श्रम की बात करेंगे। वह श्रम जो एक महिला अपने घर में सुबह से उठकर रात में बिस्तर पर जाने से पहले तक करती है। उसका श्रम और घर के लोगों द्वारा उसके श्रम के सम्मान की बात करेंगे। यह घर की बात है, लोग कहेंगे कि इस पर क्या ही बात करना, पर यह बहुत बड़ा मुद्दा है, जिस पर कभी गंभीरता से बात ही नहीं होती। खुद महिलाओं को भी नहीं पता है कि इस पर बात होनी चाहिए, वह तो इसे नियति समझती हैं। इस पर बात करने के लिए हम एक फिल्म का जिक्र करेंगे, जो हाल ही...

Uploaded on 22-Apr-2025

मैं लूज़र नहीं हूं

मैं लूज़र नहीं हूं...

आतिफा! तुम ने फिर वही हरकत की! शर्म से सिर झुका दिया हमारा, तुम्हे ज़रा सा भी ख्याल है कि किस परिवार से संबंध है तुम्हारा? उसकी मां की आंखों में खून उतर चुका था।कभी देखा है कि हममें से किसी ने अम्मी अब्बू को परेशान किया हो? उसकी बड़ी बहन ने जलती पर तेल छिड़का।और आतिफा खामोश..बहुत खामोश! मासूम सी सूरत लिए बारह वर्ष की बच्ची अपनी खूबसूरत बड़ी बड़ी पलकों वाली आंखों में दो कतरे लिए अपराधी बनी खड़ी थी। उसका दुर्गभाग्य था कि वह कभी क्लास में अच्छे नंबर से पास नहीं हुई थी, और इस बार तो हद हो गई, गणित के पर्चे में ग्रेस देकर पास किया गया था, और प्रमोट किया गया था।“कहां है वह नालायक..” एक और गरजती हुई आवाज़ उसके कानों में पड़ी और उसके ख़ौफ में इज़ाफा हो गया। खाला....वह...मैं....मुझे....माफ.. वह कुछ नहीं कह सकी।“तुम वैसी की वैसी ही रहोगी...चाहे मैं कितना मेहनत से तुमको पढ़ाऊं” “कोई ज़रुरत नहीं खाला..इस लूज़र को पढ़ाने की!! यह सिर्फ आपका नाम खराब करेगी।“ अदीबा ने उनके गुस्से में इज़ाफा किया।अदीबा जो कि आतिफा की बड़ी बहन थी, हमेशा टॉप करती थी और वह अब पीएचडी की तैयारी कर रही थी।“मैं क्या करूं बाज़ी! माफ कर...

Uploaded on 22-Apr-2025

पीसीओएस (PCOS) एक गंभीर बीमारी

पीसीओएस (PCOS) एक गंभीर बीमारी...

हमारे देश में महिलाओं का स्वास्थ्य एक बड़ी चिंता का विषय है, जिसमें प्रजनन स्वास्थ्य से लेकर मानसिक स्वास्थ्य,गर्भावस्था, प्रसव के समय मौत जैसे मुद्दे प्रचलित हैं। महिलाओं की पोषण स्थिति भी चिंता का विषय है, कई महिलाएं आयरन की कमी, एनीमिया और कम वजन या अधिक वजन से जूझ रही हैं। आयरन की कमी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) वाली महिलाओं में पाया जाने वाली एक सामान्य समस्या है। पीसीओएस में आयरन की कमी के कारण और यह कैसे प्रभावित करता है? हमारे देश में आयरन की कमी एक बड़ी पोषण संबंधी समस्या है। यह प्रजनन आयु की महिलाओं, गर्भवती महिलाओं और गरीबी रेखा पर जीवन यापन करने वाली महिलाओं में ज़्यादा पायी जाती है। लोहे का प्राथमिक कार्य पूरे शरीर में आयरन का परिवहन करना है। यही कारण है कि अगर आपका आयरन का स्तर कम है तो आपको थकान महसूस हो सकती है। महिलाओं को रजोनिवृत्ति तक 18 मिलीग्राम प्रति दिन की आवश्यकता होती है, लेकिन जब आयरन की आवश्यकता 8 मिलीग्राम प्रति दिन तक कम हो जाती है तो यह समस्या बन सकती है। अगर सीरम फेरिटिन का स्तर 10 मिलीग्राम से कम है तो भी आपको आयरन की कमी हो सकती है। मोटी और पतली महिलाओं दोनों में सीरम...

Uploaded on 22-Apr-2025

खुशहाल परिवार में महिला की भूमिका

खुशहाल परिवार में महिला की भूमिका...

जब हम अपने समाज पर नज़र डालते हैं तो समझ आता है कि मानवता जिन विकट समस्याओं से जूझ रही है उसका मूल कारण परिवारों का विघटन है। लिंगभेद, मानसिक तनाव, हत्या और हिंसा, उपद्रव, नैतिक पतन इत्यादि गंभीर समस्याओं की जड़ परिवार नामी संस्था का समापन है। क्योंकि परिवार वह नींव है जिसके आधार पर समाज और संस्कृति का निर्माण होता है। यह वह केंद्र है जहाँ अतीत की परंपराएँ और आदतें न केवल सुरक्षित रहती हैं, बल्कि नई पीढ़ी तक पहुँचाई जाती हैं। परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण और उसके विकास के मार्ग को सुलभ करता है। इसके अलावा, परिवार भावनात्मक शांति और सामाजिक समर्थन का एक प्रमुख स्रोत है। परिवार व्यक्ति को एक सुरक्षित और प्यार भरा वातावरण प्रदान करता है, जहाँ वह अपना व्यक्तिगत, नैतिक और सामाजिक विकास कर सकता है। यह वही स्थान है जहाँ से व्यक्ति कठिनाइयों का सामना करने और बड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने की ताकत प्राप्त करता है। यह वही स्रोत है जहाँ प्रेम के झरने बहते हैं और सफलताओं को प्रेरित किया जाता है। दुनिया को समझने का ज्ञान, मानवता से रिश्ते का प्रशिक्षण, कार्य के लिए भावना की वृद्धि और आगे बढ़ने का हौंसला यहीं से प्राप्त होता है। इसीलिए, इस...

Uploaded on 22-Apr-2025

गज़ा संघर्ष: इतिहास, वर्तमान और भविष्य की चुनौतियाँ

गज़ा संघर्ष: इतिहास, वर्तमान और भविष्य की चुनौतियाँ...

इज़रायल ने एक बार फिर पिछले मंगलवार को गज़ा में हवाई हमले शुरू कर दिए है। इजरायल द्वारा की गई बमबारी में अब तक 400 से ज़्यादा आम फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। किसी एक दिन में ही हमलों में मारे जाने वालों का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। दशकों से जारी इज़रायल–फिलिस्तीन विवाद एक बार फिर तब चर्चा का विषय बना था जब गज़ा के प्रतिरोध समूह हमास ने 07 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर एक हमला कर 252 इज़रायली नागरिकों को बंधक बना लिया था। इस हमले के नतीजे में इज़रायल को एक बार फिर फिलिस्तीनियों पर हमला करने का कारण मिल गया था। बंधकों की रिहाई की आड़ में इज़रायली सेना ने फिलिस्तीनियों पर ज़मीनी और हवाई हमले किए। प्रतिष्ठित न्यूज चैनल अल–जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 16 महीने चली इस जंग में इज़रायल गज़ा पट्टी में बमबारी और ज़मीनी हमले के ज़रिए से 61 हज़ार लोगों की हत्या कर चुका है। जिसमें बड़ी संख्या में बच्चें और औरतें भी शामिल है। इससे कई गुना बड़ी आबादी विस्थापित और चोटिल हुई है। वर्ष भर से भी ज़्यादा चला यह नरसंहार आख़िर इज़रायल और हमास के बीच हुए युद्ध विराम समझौते के तहत 15 जनवरी 2025 को...

Uploaded on 22-Apr-2025

महिलाओं की राजनीति में हिस्सेदारी और भारतीय समाज की

महिलाओं की राजनीति में हिस्सेदारी और भारतीय समाज की...

राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी का सवाल सदियों पुराना है लेकिन देश की आज़ादी के 75 सालों बाद भी ये सवाल ज्यों का त्यों सिर उठाए खड़ा है, देश तो आज़ाद हुए सबने अपने मुल्क भी बना लिए और उसकी सत्ता पर काबिज़ भी हो गए लेकिन महिलाओं का राजनीति में सम्मानजनक मुकाम कैसे बने इस समस्या का हल अभी तक नहीं हो पाया है।अनेक कारण है जिसकी वजह से महिलाएं आज भी देश की राजनीति में अपने सम्मानजनक अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रही हैं lभारतीय समाज की सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं स्त्री विरोधी होना"ढोल, गवांर, शूद्र, पशु, नारीये सब ताड़न के अधिकारी" "औरतों में अक्ल कम होती है""महिलाओं को बहुत अधिक गुणवान नहीं होना चाहिए"उपरोक्त लिखित वाक्य भारत में सदियों से सामाजिक और धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त कथन हैं , यह वाक्य भारतीय समाज की उस मानसिकता को दर्शाते है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझती है। सामाजिक और धार्मिक रूप से औरतों को कमतर समझे जाने की वजह से भारतीय समाज में राजनीति में महिलाएं वो स्थान हासिल नहीं कर पाई हैं जिसकी वो हकदार हैं। सामाजिक और धार्मिक उत्थान के बिना महिलाओं का राजनीति में सम्मानजनक स्थान पाना नामुमकिन है। यह बहुत आवश्यक है कि भारत...

Uploaded on 22-Apr-2025

शिक्षा : शैक्षणिक दबाव का स्याह पक्ष

शिक्षा : शैक्षणिक दबाव का स्याह पक्ष...

बीते माह फरवरी में आईआईटी कानपुर के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। यह सुनकर आपके मन में यह विचार कौंध रहा होगा कि पढ़ाई में पीछे रह जाने या परीक्षा में असफल हो जाने या कम नंबर आने से उसने आत्महत्या की होगी तो बता दें कि आत्महत्या करने वाले अंकित यादव ने आईआईटी दिल्ली से एमएसएसी कर आईआईटी कानपुर में केमिस्ट्री से पीएचडी में एडमिशन लिया था और उसे 37 हज़ार रुपये यूजीसी की फेलोशिप मिल रही थी। इसी प्रकार फरवरी महीने में ही जयपुर स्थित राजस्थान युनिवर्सिटी की भी एक छात्रा ने सुसाइड कर अपनी ज़िंदगी को खत्म करने का फैसला ले लिया। आए दिन हमें छात्रों के इस प्रकार जीवन से निराश होने की घटनाएं देखने और सुनने को मिलती रहती है।एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं हर साल खतरनाक दर से बढ़ रही हैं, जो जनसंख्या वृद्धि दर और कुल आत्महत्या प्रवृत्तियों से भी अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल 726 000 लोग अपनी जान ले लेते हैं और इससे भी ज़्यादा लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। हर आत्महत्या एक त्रासदी है जो परिवारों, समुदायों और पूरे देश को प्रभावित करती है और पीछे छूट गए...

Uploaded on 22-Apr-2025

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक होना महिलाओं के लिए

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक होना महिलाओं के लिए...

एक ओर जहां हमारे समाज ने विकास के विभिन्न आयामों से गुज़रते हुए अनेक क्षेत्रों में सफलता के नित नए झंडे गाढ़े हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे अंधविश्वास और कुरीतियां हमारे समाज में अभी भी मौजूद हैं जिसका दंश महिलाओं को सबसे अधिक भुगतना पड़ता है। इसमें एक है ‘मानसिक स्वास्थ्य’, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अनेकों भ्रांतियां मौजूद है जिस कारण यदि कोई व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से गुज़र रहा है तो उसे पर्याप्त इलाज नहीं मिल पाता। विशेषरुप से महिलाओं को, उनके बदले व्यवहार, चिड़चिड़ेपन को अकसर हम झगड़ालू, बहुत तेज़ है, या ज़बान की बदत्तमीज़ इत्यादि का टैग देकर उनकी समस्याओं को अनदेखा कर देते हैं। जबकि उनके इस व्यवहार पर घर का माहौल, घरेलू कलह बहुत बड़ा कारण होता है। इन्हीं तमाम मुद्दों को समझने के लिए क्लीनिकल सॉइकोलॉजिस्ट अस्मा तब्स्सुम करीमुल्लाह से सहीफ़ा खान का संवाद। असमा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कार्य करने वाली संस्था अमाहा में सीनियर कंस्लटेंट हैं।मानसिक स्वास्थ्य क्या है?विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी स्थिति है जिसमें हर व्यक्ति अपनी अपनी क्षमता के अनुसार काम करता है। जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, प्रभावी ढंग से रचनात्मक कार्य करते हुए समाज व समुदाय में...

Uploaded on 22-Apr-2025

सोशल मीडिया के आवरण में विलुप्त होती सुधार की

सोशल मीडिया के आवरण में विलुप्त होती सुधार की...

हम लोगों ने अपनी बाल्यवस्था इस प्रकार से व्यतीत की है कि किसी भी छोटी मोटी शरारतों या गलत कार्यों पर बड़े बुज़ुर्ग सुधार हेतु प्रयास करते थे। हमारे गलत कृत्यों पर अकसर बड़े बुज़ुर्गों के मुंह से किसी भी छोटी मोटी शरारतों में ‘बेटा यह गंदी बात’ यह जुमला ज़रुर सुना करते थे। जिसकी वजह से हर गलत चीज़ के नज़दीक पहुंचते ही वह गंदी बात वाला डायलॉग सामने आ जाता था और खुद ब खुद कदम गलत हरकत करने से रुक जाते थे। फिर चाहे कहीं रखे हुए पैसे उठाने का मन हो, क्लास में किसी के बैग से कोई चीज़ चुराने का मन हो, या फिर गुस्से में किसी को अपशब्द कहने का मन हो। अंतरात्मा ज़ोर ज़ोर से पुकारने लगती थी कि यह “गंदी बात” है। लगभग हम सभी इसी संस्कार और परिवेश के साथ इस भारतीय समाज में पले बढ़े हैं। जिसका प्रभाव हमारे संस्कारों में और हमारे समाज में सदियों से देखने को मिलता था। बुज़ुर्गों को सम्मान मिलता था। आस पड़ोस में रहने वाले लोग अपने सगे संबंधी समान समझे जाते थे। फिर चाहे उनका कोई भी धर्म हो या कोई भी विचारधारा। एक दुसरे की खुशियां अपनी खुशिय़ां लगती थीं, एक दुसरे का...

Uploaded on 22-Apr-2025

आखिर बेटी ही तो माँ है

आखिर बेटी ही तो माँ है...

नौशीन फातिमा खान, भोपाल, मध्यप्रदेशDescription : मां हमारे लिए सम्मानित है, पर बेटी होने से हम डरते है। क्यों ? प्रेम हमें मां से अधिक मिलता है और ज़रा दूर पहुंचने पर हमें पिता से पहले मां की याद आती है। फिर भी हमें बेटे की ही चाह क्यों है? जान लें नर-नारी ज़िन्दगी की गाड़ी के दो पहिये हैं। जिसमें से एक भी कम होगा, तो गाड़ी चल नहीं पायेगी। इतना तो सब जानते हैं, पर बहुत कुछ ऐसा है जो हम में से कई लोग नहीं जानते। ख़ुदा ने दुनिया बनायी फिर बड़े प्यार से उसे सजाया। साथ-साथ रहने और एक दूसरे का साथ देने के लिए पुरुष और महिला का अस्तित्व दुनिया में बसाया। दोनों को ही अपने आप में महत्वपूर्ण बनाया। पुरुष को कठोर और महिला को कोमल बनाया, क्योंकि यही इनकी सुंदरता है। दोनों ही अपने आप में अद्‌भुत है किसी का किसी से कोई मुक़ाबला नहीं। लिंग के आधार पर किसी को किसी पर श्रेष्ठता नहीं है। दोनों का ही अपना अलग अलग किरदार है, जो उन्हें ज़िन्दगी में निभाना है। जैसे चांद और सूरज होते हैं, जैसे दिन और रात होते हैं। इनमें से कौन प्रिय कौन अप्रिय यह कोई बता सकता है? चांद...

Uploaded on 14-Apr-2025