रजीना बेग़म
Secretary TWEET Foundation
इतिहास अतीत का ठहरा हुआ पानी नहीं बल्कि हमारे वर्तमान अस्तित्व के संघर्ष की प्रेरक धारा है। मुस्लिम समाज जो आज समूचे विश्व में अपने ठोस अस्तित्व के लिए संघर्ष करता हुआ प्रतीत हो रहा है वह अतीत में भी भयानक परिस्थितियों से गुज़र चुका है। समय के चक्र ने उसे कई बार ऐसी ऐसी भयानक परिस्थितियों से चमत्कारिक रुप से उबरते हुए देखा है जहां से वापस लौटना असंभव था। जब हम किसी मुश्किल का सामना कर रहे होते हैं तो हमारे मन में कई प्रकार के सवाल उठते हैं। जैसे कि हमें ही क्यों ऐसी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है? हमारे ही ऊपर क्यों यह दुखों का पहाड़ टूटा? जबकि हम ज़्यादा इबादत करते हैं, अल्लाह के हुक्म को ज़्यादा मानते हैं। और जो लोग दिन रात अल्लाह की नाफरमानी कर रहे हैं वह हमसे ज़्यादा अच्छी ज़िंदगी जी रहे हैं। उन्हें सबकुछ मिलता है जो वह चाहते हैं लेकिन हमें क्यों नहीं?
लेकिन हमारे सामने पूरे इस्लामिक इतिहास का उदाहरण मौजूद है कि अल्लाह हमें यूं ही अकेला नहीं छोड़ता। उसने हमारे लिए संदेश भेजे, संदेशवाहक के रुप में ऐसे लोगों को हमारे बीच भेजा जो हमारे जैसी परिस्थितियों से (या यूं कहें कि हमसे भी बदत्तर) परिस्थितियों से गुज़रे। अल्लाह ऐसा इसलिए करता है ताकि हम सीखें, आगे बढ़ें, दृढ़ रहें और जब तक हम उससे ना मिलें, तब तक उसकी ओर शालीनता से आगे बढ़ते रहें।
सूरह अन्नाहल आयत नंबर 122 में इब्राहिम अलै० का ज़िक्र करते हुए कहा गया है कि इस दुनिया में अच्छी चीज़ें और आख़िरत में नेक लोगों के बीच उनकी जगह बना दी गई है। यह आयत इस ज़िंदगी और अगली ज़िंदगी दोनों में अपने संमर्पित बंदों के प्रति अल्लाह की कृपा को उजागर करती है। यह आयत विश्वास रखने वाले लोगों को नेकी के रास्ते पर चलने और अल्लाह की रज़ा हासिल करने के लिए प्रेरणा है।
“उनकी कहानियों में समझ रखने वालों के लिए एक शिक्षा थी। कुरआन कोई गढ़ी हुई कहानी नहीं है, बल्कि जो कुछ उसके पहले था उसकी पुष्टि है और हर चीज़ की विस्तृत व्याख्या है, उन लोगों के लिए मार्गदर्शन है दया है जो ईमान लाएं।” (युसूफ़ 111)
لَقَدْ كَانَ فِي قَصَصِهِمْ عِبْرَةٌ لِّأُوْلِي الأَلْبَابِ مَا كَانَ حَدِيثًا يُفْتَرَى وَلَكِن تَصْدِيقَ الَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَتَفْصِيلَ كَلَّ شَيْءٍ وَهُدًى وَرَحْمَةً لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ ﴿١١١﴾
सभी इस्लामिक ऐतिहासिक कहानियों से हमें ऐसा सबक मिलता है जिनसे हम ठोस ईमान स्थापित करने के गुण प्राप्त कर सकते हैं। इसी में से एक कहानी है हाजरा रज़ि० की। उनका त्याग और दृढ़ता हमें एक मोमिन के रुप में मुश्किलों का सामना करते समय ज़िदगी के कई कीमती सबक देती है जिसे हम अपनाकर अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकते हैं।
हाजरा अलै० की पृष्ठभूमि
अल्लाह के रसूल सल्ल० ने कहा, “अगर अल्लाह किसी के लिए अच्छा चाहता है तो वह उसे मुश्किलों में डालता है।” (बुख़ारी)
अल्लाह उन लोगों की परीक्षा लेता जिनसे वह प्यार करता है और इब्राहिम अलै० अल्लाह को इतने प्यारे थे कि उन्हें ख़लील अर्थात ख़ास मित्र का उपनाम दिया गया था। अल्लाह ने पहले ही उन्हें कई आज़माईशों में डाला, उनके पिता ने उनकी बात नहीं मानी, उनके अपने लोगों ने उन पर अत्याचार किए और उसके बाद उनके ऊपर विस्थापन की कड़ी आज़माईश आयी। विस्थापन के बाद लंबे समय तक औलाद का इंतज़ार किया और जब औलाद हुई तो हाजरा अलै० को भी बेहद कठिन परिस्थिति में अल्लाह ने डाल दिया।
रेगिस्तान में अकेले
उस समय मक्का एक सुनसान रेगिस्तान था जहां दूर दूर तक कोई आबादी नहीं थी। इब्ने अब्बास रह० का बयान है कि, ‘इब्राहिम अलै० ने हाजरा अलै० को (काबा के पास) बैठाया और उनके पास एक चमड़े का थैला रखा जिसमें कुछ खजूर थीं और एक छोटी पानी की थैली जिसमें थोड़ा पानी था। उसके बाद वह वहां से चल पड़े। इस्माइल की मां उनके पीछे-पीछे आयीं और कहने लगीं, “हे इब्राहिम! आप हमें इस घाटी में कहां छोड़कर जा रहे हैं जहां कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसकी संगति का हम आनंद ले सकें, और ना ही यहां कोई चीज़ है?” उन्होंने कई बार अपने शब्द दोहराए लेकिन इब्राहिम अलै० ने मुड़कर उनकी ओर नहीं देखा। फिर उन्होंने पूछा, “क्या अल्लाह ने आपको ऐसा करने का आदेश दिया है?” उन्होंने जवाब दिया, “हां।” हाजरा अलै० ने कहा, “फिर वह हमें नज़रअंदाज़ नहीं करेगा” और वह वापस लौट गईं, जबकि इब्राहिम अलै० आगे बढ़ गए..’ (तफ़सीर इब्ने कसीर)
अल्लाह की मर्ज़ी के आगे समर्पण करने में हाजरा अलै० ने एक पल का भी संकोच नहीं किया। बिना किसी शक के उन्होंने यह इत्मिनान कर लिया कि अल्लाह उनका ख़्याल रखेगा, वह मुड़ीं और काबा के बगल में अपनी जगह पर वापस चली गईं, खजूर की एक थैली और कुछ गिलास पानी लेकर और अपने बच्चे के पास बैठ गईं, पूरी तरह से आश्वस्त थीं कि अल्लाह उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा।
कुरआन में कहा गया है कि “और जो कोई अल्लाह पर भरोसा रखता है, तो वह उसके लिए पर्याप्त है।” (कुरआन, 65 : 3) अल्लाह के रसूल सल्ल० ने कहा, “यदि तुम अल्लाह पर भरोसा करो, तो वह तुम्हें उसी तरह खाना उपलब्ध कराएगा, जिस तरह वह पंक्षियों को खाना उपलब्ध कराता है। वे सुबह खाली पेट निकलते हैं और भरे हुए लौटते हैं।” (तिर्मिज़ी)
हाजरा अलै० को पूरा भरोसा था कि अल्लाह उनके लिए काफी है और वह उनकी आवश्यकताएं पूरी करेगा, जैसे वह पंक्षियों की ज़रुरतें पूरी करता है। वह जानती थीं कि भले ही वह और इस्माइल अलै० रेगिस्तान में अकेले नज़र आते हों, लेकिन वास्तव में अल्लाह उनके करीब है।
सफ़ा और मरवा
इसी ठोस विश्वास के चलते वह (हाजरा अलै०) दो पहाड़ों के बीच दौड़ती रहीं कि अल्लाह उनकी मदद ज़रुर करेगा और उनकी स्थिति बदल जाएगी। उनका यह अटूट विश्वास इतना ज़्यादा शक्तिशाली था कि अल्लाह ने उन्हें मुहम्मद सल्ल० की उम्मत के लिए एक इबादत की शक्ल में मिसाल बना दिया और मुहम्मद सल्ल० की उम्मत हर साल हज के मौके पर सफा और मरवा के बीच सई (दौड़) कर हाजरा अलै० के उस विश्वास को याद करती है।
ज़मज़म का चमत्कार
अल्लाह अपने लोगों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करता। इसकी मिसाल के रुप में हमारे सामने ज़मज़म मौजूद है। जो इस बात का प्रतीक है कि यदि मन में विश्वास हो कि अल्लाह की मदद आएगी तो वह ज़रुर आती है। जिस प्रकार रेगिस्तान में जहां कुछ भी मौजूद नहीं था, नवजात बच्चा प्यास से तड़प रहा था तब अल्लाह ने एक बंजर ज़मीन पर चमत्कार के रुप में पानी भेजा। यह करिश्मा भी हाजरा अलै० के उस अटूट विश्वास की बुनियाद पर ही हुआ था।
अल्लाह ने हाजरा अलै० के पास लोगों को भेजा
इस कड़ी आज़माईश के बाद हाजरा अलै० के पास अल्लाह ने कुछ लोगों को भेज दिया। तफ्सीर इब्ने कसीर के अनुसार, ‘यमनी जनजाति, बानी जुरहुम के कुछ लोग, जो अब मक्का है वहां से गुज़र रहे थे, तब उन्होंने एक पंक्षी को देखा जिसकी आदत पानी के चारों ओर उड़ने की थी। उस पंक्षी को देखकर उन्होंने अंदाज़ा लगाया कि पास में ही कहीं पानी मौजूद है, इससे पहले रेगिस्ता की यात्राओं के दौरान उन्होंने पानी कभी नहीं देखा था। वह वहां तक पहुंच गए। हज़रत मुहम्मद सल्ल० के मुताबिक, इस्माइल की मां पानी के पास बैठी थी। उन्होंने उससे पूछा, “क्या आप हमें अपने साथ रहने की इजाज़त देती हैं?” उन्होंने जवाब दिया, “हां, लेकिन आपको पानी रखने का कोई अधिकार नहीं होगा।” वे इस बात पर सहमत हो गए।‘
इस प्रकार अल्लाह ने लोगों का एक समूह रेगिस्तान के बीच में बसने के लिए भेजा ताकि हाजरा अलै० अकेली ना रहें। वह इन धन्य लोगों के साथ पूरी तरह सुरक्षित थीं।
हाजरा अलै० की इस कहानी में कुछ महत्वपूर्ण संदेश छिपे हुए हैं जिनसे हमारी ज़िंदगियां बदल सकती हैः-
आशावाद – अल्लाह तआला के बारे में सकारात्मक रुख
सबसे पहले हाजरा अलै० ने अपने पति के बारे में तब भी अच्छा सोचा जब वह उन्हें संकट भरी परिस्थिति में अकेले छोड़ रहे थे। वह जानती थीं कि कुछ तो ज़रुर होगा जिस कारण उन्हें ऐसा करना पड़ा। दूसरी महत्वपूर्ण बात कि हाजरा अलै० ने जब सच्चाई जान ली कि यह अल्लाह की मर्ज़ी है तो तुरंत यह जवाब दिया, “फिर वह हमें नज़रअंदाज़ नहीं करेगा।” (अल बुख़ारी)
बुख़ारी में ही इस बात का भी उल्लेख है कि अल्लाह सुब्हानो तआला का कहना है कि, “मैं वैसा ही हूं जैसा मेरा बंदा मुझसे उम्मीद करता है, इसलिए यदि वह मेरे बारे में अच्छा सोचता है तो उसे वह मिलेगा, और यदि वह मेरे बारे में बुरा सोचता है तो उसे वह मिलेगा।”
एक महत्वपूर्ण संदेश इस हदीस में छिपा हुआ है जिसे हमें याद रखना चाहिए कि जब भी हम किसी मुसीबत से टकराएं तो हमें अल्लाह से अच्छी उम्मीद लगानी चाहिए उस पर भरोसा रखना चाहिए। निस्संदेह यह मुश्किल काम है क्योंकि भरोसे की बातें कहना आसान होता है लेकिन उन पर अमल करना मुश्किल। लेकिन मोमिन अगर ठान ले तो कुछ भी मुश्किल नहीं।
हाजरा अलै० को अल्लाह से अच्छी उम्मीदें थीं। उनके केवल यह कहने से उनकी मुश्किलें दूर नहीं हो गईं कि “अल्लाह हमें नज़रअंदाज़ नहीं करेगा” बल्कि वह इतनी विकट परिस्थिति में भी अल्लाह से अच्छी उम्मीद लगाए बैठी थीं, सकारात्मक रवैया अपनाए हुए थीं जिस कारण अल्लाह ने उन्हें वह सब दिया जो चमत्कार था और रहती दुनिया तक के लिए जीवंत उदाहरण बन गया।
तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा)
हाजरा अलै० की ज़िंदगी से हमें यह सीख मिलती है कि सिर्फ और सिर्फ अल्लाह पर भरोसा रखो। वह टूटी नहीं, ख़ाना ख़त्म हो गया, पानी ख़त्म हो गया, बच्चा भूख व प्यास से रो रहा था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बल्कि अल्लाह पर भरोसा कर के सुनसान पहाड़ी पर दौड़ लगानी शुरु कर दी। एक निस्वार्थ मां की ख़ुद के लिए और अपने बच्चे के लिए अल्लाह पर उम्मीद और भरोसा था। मदद ना मिल जाने तक लगातार वह दौड़ लगाती रहीं यानि निरंतर प्रयास करती रहीं। उनकी इस कोशिश को हज के अनुष्ठानों में से एक के रुप में आज भी किया जाता है।
हार मान लेना अविश्वास से क्यों जुड़ा है? क्योंकि हार मान लेना और उम्मीद खो देना इस बात का संकेत है कि हम वास्तव में अल्लाह के नाम और गुणों को सही अर्थों में जानते ही नहीं है। हम यह मानते ही नहीं है कि वह ही रक्षक, सर्वज्ञ, शांति का स्त्रोत, राहत और विजय देने वाला है।
“....और अल्लाह की रहमत से निराश मत हो। निस्संदेह, काफ़िर लोगों के अलावा कोई भी अल्लाह की रहमत से निराश नहीं होता।” (कुरआन 12 : 87)
धैर्य
बच्चे के साथ अकेले रेगिस्तान में छोड़ दिए जाने से लेकर, भोजन और पानी ख़त्म हो जाने तक, पानी की तलाश में इधर उधर भागने तक हर घटना इस बात की गवाही देती है कि हाजरा अलै० ने हार नहीं मानी। निरंतर धैर्य के साथ संघर्ष जारी रखा जो कि इस बात का प्रतीक है कि उनका अल्लाह पर कितना अटूट विश्वास था। जो कि धैर्य (सब्र) का जीवंत उदाहरण है। धैर्य ही हमें संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता है, हमें मज़बूत बनाता है।
अतः कुरआन में कहा गया है, “धैर्यपूर्वक सहन करो, एक सुंदर धैर्य के साथ”
त्याग
हाजरा अलै० के त्याग व बलिदान का सबसे बड़ा और जीवंत उदाहरण तब देखने को मिला जब वह अपने नवजात बच्चे के साथ सुनसान रेगिस्तान में अकेले छोड़ी गईं। इब्राहिम अलै० उनके पति और एकमात्र कमाने वाले थे, इसलिए वह आसानी से इस बात को लेकर नाराज़ हो सकती थीं कि वह अपना और अपने बच्चे का भरण-पोषण कैसे करेंगी। वह इस बात से भी अनजान थीं कि उन्हें कितने घंटों या महीनों के लिए अकेला छोड़ा जा रहा है। लेकिन उन्होंने यह सब ना सोचकर तुरंत यह जवाब दिया कि “अल्लाह हमें नज़रअंदाज़ नहीं करेगा” इस प्रकार त्याग व बलिदान का इससे बड़ा जीवंत उदाहरण हमें कहीं नहीं देखने को मिल सकता। अपने पति के साथ भावनात्मक लगाव, बुनियादी सुविधाओं का अभाव लेकिन इन सब चीज़ों के बावजूद अल्लाह पर अटूट विश्वास और विश्वास की बुनियाद पर डट जाना यह हाजरा अलै० की ज़िंदगी का सबसे रौशन पहलू है।
इब्ने माजा की हदीस है, “जिस व्यक्ति का इरादा आखिरत की ओर है, अल्लाह उसके लिए उसके मामलों को समेट देगा, उसके दिल में संतोष भर देगा और दुनिया उसके पास स्वेच्छा से आएगी।”
हाजरा अलै० की उम्मीद, तवक्कुल, धैर्य, त्याग व बलिदान का परिणाम यह हुआ कि जो स्थान निर्जन था, अल्लाह के घर का सबसे सम्मानजनक स्थान बन गया, जहां रहती दुनिया तक प्रत्येक वर्ष लाखों लोग जाते रहेंगे और इब्राहिम अलै० और हाजरा अलै० को याद करते रहेंगे। वह जिस थोड़े से पानी की तलाश में भटक रही थीं, वह एक कुआं निकला जिसने पूरे क्षेत्र में जीवन ला दिया और आज भी लोग उस पानी से लाभ हासिल कर रहे हैं और शायद रहती दुनिया तक वह समाप्त ना हो। उन्होंने जो विश्वास, धैर्य और कड़ी मेहनत के पल बिताए वह अरबों लोगों की आस्था का मूलभूत हिस्सा बन गए।
पानी की तलाश में सई (दौड़) की, उसके बिना हमारा हज और उमराह कभी भी पूरा नहीं हो सकता। अर्थात इस्लाम का एक मुख्य स्तंभ इस महिला का अनुसरण किए बिना पूरा नहीं हो सकता। यह केवल सफा और मरवा के बीच चलने का भौतिक अर्थ नहीं है बल्कि सबसे विकट परिस्थितियों में अल्लाह पर विश्वास रखने, उसका अनुसरण करते रहने और उसी से आशा रखने का प्रतीक है।