घरेलू हिंसा: एक सुलगती हकीकत जो हर घर को झकझोरती है

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By Saheefah Khan March 27, 2025

आभा शुक्ला:सोशल एक्टिविस्ट (कानपुर, उत्तर प्रदेश)

घरेलू हिंसा एक ऐसा विषय है जिसके प्रति जागरुकता लाने के लिए बहुत प्रयास किए जा चुके हैं और किए जा रहे हैं लेकिन उसके बावजूद इस विष से समाज को मुक्ति नहीं मिल सकी है। इस कारण हमारे देश की हर तीसरी महिला नरक समान जीवन जीने को विवश हैं। क्योंकि अपने ही घर में उत्पीड़न सहना किसी नरक से कम नहीं होता।


ज़रा सोचिए घर क्या होता है? प्यार, विश्वास और अपनेपन की बुनियाद पर घर का अस्तित्व बनता है लेकिन जिस घर में प्यार, सुरक्षा और अपनापन होना चाहिए, वही घर दर्द, भय और आँसुओं का गवाह बन जाए, तो समाज का असली चेहरा सामने आ जाता है। क्योंकि घरेलू हिंसा सिर्फ मारपीट ही नहीं होती, बल्कि  यह ऐसा ज़हर है जो धीरे-धीरे आत्मा को छलनी कर देता है। अब सवाल यह उठता है कि यह सब कब तक चलेगा? कब तक दीवारों के पीछे एक पीड़ित महिला का दर्द दबा रहेगा और कब तक एक महिला अपने ही घर की चारदीवारी में कैद होकर घुटन भरी सांसे लेने को मजबूर रहेगी


मानसिक स्वास्थ्य पर बर्बरता का असर

यह बात हमें और आपको अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जब किसी घर में कोई महिला सतायी जाती है तो उसका असर केवल चोट के निशानों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह दिमाग और आत्मसम्मान को भी चीर कर रख देता है। इसका असर यह होता है कि उन शिकार बनी महिलाओं की सोचने-समझने की क्षमता, आत्मविश्वास और मानसिक स्थिरता तहस नहस होकर रह जाती है। 

आइए जानते हैं घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला पर क्या क्या प्रभाव पड़ता हैः-

1. डिप्रेशन और एंग्जायटी—एक अदृश्य कैद

बार-बार गाली, धक्का-मुक्की, अपमान और तिरस्कार सहते-सहते महिलाओं का आत्मसम्मान चूर-चूर हो जाता है। वे इस जहरीली स्थिति में इतनी फँस जाती हैं कि कभी खुद को तो कभी अपने भाग्य को दोषी मानने लगती हैं। उनका दिमाग हमेशा डर और बेचैनी में डूबा रहता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ की रिसर्च के अनुसार, घरेलू हिंसा झेलने वाली 75% महिलाओं में गंभीर डिप्रेशन के लक्षण पाए गए हैं।

2. आत्महत्या की ओर बढ़ता हर कदम

आप सोच सकते हैं कि सिर्फ गाली-गलौज से कोई आत्महत्या कैसे कर सकता है? लेकिन हकीकत यही है कि जब एक महिला रोज तिरस्कार और मारपीट का शिकार होती है, तो वह जीने की इच्छा ही खो देती है। लांसेट साइकेट्री की रिपोर्ट बताती है कि घरेलू हिंसा झेलने वाली महिलाओं में आत्महत्या की संभावना सामान्य महिलाओं से 4 गुना अधिक होती है।

3. आर्थिक निर्भरता—खुद की बेड़ियाँ

एक महिला जब आर्थिक रूप से अपने पति या परिवार पर निर्भर होती है, तो उसकी आज़ादी छिन जाती है। वह चाहकर भी हिंसक माहौल से बाहर नहीं निकल पाती, क्योंकि उसे पता ही नहीं होता कि अगला कदम क्या होगा। कई बार हिंसा झेलने वाली महिलाएं सोचती हैं, “मैं जाऊँ तो कहाँ जाऊँ?” और यही सोच उन्हें हिंसा सहने पर मजबूर कर देती है।

4. बच्चों पर असर—भविष्य भी खतरे में

घर में अगर हर दिन गाली-गलौज, मारपीट और चीख-पुकार का माहौल हो, तो बच्चे भी इसका शिकार बनते हैं। उनके दिमाग में यह तस्वीर बैठ जाती है कि रिश्तों का मतलब ही हिंसा और डर है। ऐसे माहौल में पले-बढ़े बच्चे बड़े होकर खुद हिंसा को सामान्य मानने लगते हैं। 

आँकड़े जो समाज को झकझोर देंगे

- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, घरेलू हिंसा झेलने वाली 60% महिलाएं गंभीर मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाती हैं।

- हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट बताती है कि हिंसा झेलने वाली महिलाओं के दिमाग में कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर इतना बढ़ जाता है कि वे कभी सामान्य जिंदगी नहीं जी पातीं।

- NCRB के अनुसार, हर तीसरी महिला अपने जीवन में कभी न कभी घरेलू हिंसा की शिकार होती है। पर यह तो सिर्फ दर्ज मामलों की संख्या है, न जाने कितनी चीखें बिना सुने ही दम तोड़ देती हैं।

क्या कानून ही काफी है?

भारत में घरेलू हिंसा पर लगाम कसने के लिए 2005 में घरेलू हिंसा (रोकथाम एवं संरक्षण) अधिनियम, 2005 लागू किया गया, लेकिन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि इसका कोई असर महिलाओं की ज़िंदगी पर नहीं पड़ा। अब सवाल यह उठता है कि क्या कानून बन जाने से महिलाओं की तकलीफें खत्म हो जाती हैं? नहीं! जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, जब जब किसी घर में कोई महिला सतायी जाती है तो उसका असर केवल चोट के निशानों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह दिमाग और आत्मसम्मान को भी चीर कर रख देता है। इसका असर यह होता है कि उन शिकार बनी महिलाओं की सोचने-समझने की क्षमता, आत्मविश्वास और मानसिक स्थिरता तहस नहस होकर रह जाता हैं