गज़ा संघर्ष: इतिहास, वर्तमान और भविष्य की चुनौतियाँ

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By Super Admin April 14, 2025

इज़रायल ने एक बार फिर पिछले मंगलवार को गज़ा में हवाई हमले शुरू कर दिए है। इजरायल द्वारा की गई बमबारी में अब तक 400 से ज़्यादा आम फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। किसी एक दिन में ही हमलों में मारे जाने वालों का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। दशकों से जारी इज़रायल–फिलिस्तीन विवाद एक बार फिर तब चर्चा का विषय बना था जब गज़ा के प्रतिरोध समूह हमास ने 07 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर एक हमला कर 252 इज़रायली नागरिकों को बंधक बना लिया था। 

इस हमले के नतीजे में इज़रायल को एक बार फिर फिलिस्तीनियों पर हमला करने का कारण मिल गया था। बंधकों की रिहाई की आड़ में इज़रायली सेना ने फिलिस्तीनियों पर ज़मीनी और हवाई हमले किए। प्रतिष्ठित न्यूज चैनल अल–जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 16 महीने चली इस जंग में इज़रायल गज़ा पट्टी में बमबारी और ज़मीनी हमले के ज़रिए से 61 हज़ार लोगों की हत्या कर चुका है। जिसमें बड़ी संख्या में बच्चें और औरतें भी शामिल है। इससे कई गुना बड़ी आबादी विस्थापित और चोटिल हुई है। वर्ष भर से भी ज़्यादा चला यह नरसंहार आख़िर इज़रायल और हमास के बीच हुए युद्ध विराम समझौते के तहत 15 जनवरी 2025 को रोक दिया गया था।

एक बार फिर गज़ा में शांति स्थापित होना शुरू हुई थी। लोग अपने घरों की तरफ वापस लौट रहे थे। लेकिन 16 महीने बाद रुका यह संघर्ष आकस्मिक तौर पर एक बार फिर शुरू हो गया है। इज़रायल और हमास के मध्य हुआ युद्ध विराम समझौता तीन चरणों में पूरा होना था। पहले चरण में दोनों पक्षों के कैदियों की रिहाई, गज़ा में मानवीय सहायता पहुंचने की अनुमति और इज़रायली सेना के गज़ा से पीछे हटने का क़रार हुआ था। पहले चरण के लगभग पूरा होने के बाद इज़रायल पहले चरण को आगे बढ़ाने की मांग कर रहा था, जबकि हमास ने दूसरे चरण की ओर बढ़ने पर जोर दिया था।  

इज़रायल द्वारा पूर्ण रूप से हमले बंद न करने और गज़ा में आ रही सहायता पर प्रतिबंध लगाने के कारण हमास ने इज़रायल के 250 में से शेष बचे 59 बंधकों को रिहा नहीं किया था। युद्ध विराम की इन्हीं शर्तों पर सहमति न बन पाने के बाद इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गज़ा पर हमले के आदेश दे दिए है।

अमेरिकी प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट का कहना है कि इज़रायल ने पहले ही इस बारे में जानकारी दे दी थी। उन्होंने फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा कि डोनाल्ड ट्रंप तो पहले ही कह चुके हैं कि हम हमास, हूथी, ईरान और इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों के खिलाफ हैं। इन्हें खत्म करने के हम पक्ष में हैं। इससे साफ है कि अमेरिका भी इज़रायल के इन ताबड़तोड़ हमलों में साथ है और आने वाले दिनों में यह संकट और बढ़ सकता है।

इज़रायल के एयरस्ट्राइक में हमास सरकार के प्रमुख इस्साम अल-दालिस सहित कई शीर्ष अधिकारियों की मौत हो गई। हमास का कहना है कि इज़रायल ने शायद मान लिया है कि उसे बाकी बंधक नहीं चाहिए।


क्या है इजरायल–फिलिस्तीन विवाद का इतिहास


भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के मध्य स्थित, मध्यपूर्व का यह क्षेत्र जिसे इजरायल या फिलिस्तीन कहा जाता है, दशकों से अस्थिरता का शिकार रहा है। 

यह अस्थिरता 1916 में ब्रिटेन और फ्रांस के बीच हुए साइक्स–पिकोट समझौते के बाद से शुरू हुई जो दशकों बाद भी निरंतर जारी है। इस समझौते से पूर्व यह क्षेत्र बहुसंख्यक मुस्लिमों, अल्पसंख्यक ईसाईयों और यहूदीयों की मिलीजुली आबादी वाला क्षेत्र था। उस समय क्षेत्र में किसी भी प्रकार का कोई झगड़ा या विवाद नहीं पाया जाता था। यह इलाक़ा  400 वर्षों तक ऑटोमन साम्राज्य के अधीन रहा। इस पूरे समयांतराल में क्षेत्र में कोई बड़ा विवाद नहीं पनपा। शांति और सह-अस्तित्व के मामले में यह इलाक़ा दुनिया में उदाहरण बना रहा।

परन्तु यह अशांति पैदा हुई ब्रिटेन और फ्रांस के बीच 16 मई 1916 को हुए साइक्स-पिकोट समझौते से। यह समझौता प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस के बीच गुप्त रूप से हुआ था, जिसमें उन्होंने ओटोमन (उस्मानी) साम्राज्य के पतन के बाद मध्य–पूर्व के क्षेत्र को आपस में बाँटने की योजना बनाई थी। इस योजना के तहत फिलिस्तीन का क्षेत्र ब्रिटेन के हिस्से में आया था। 

उसी समय थियोडोर हर्ट्ज़ल (Theodor Herzl) नामी व्यक्ति द्वारा 1897 में स्थापित की गई world Zionist Organisation का Aliyah Migration Movement अपने चरम पर था। इस आंदोलन के द्वारा दुनिया भर के यहूदियों को फिलिस्तीन आकर बसने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। यहूदियों को कहा जा रहा था कि फिलिस्तीन यहूदियों के लिए promised land अर्थात् ईश्वर द्वारा यहूदियों के रहने के लिए चुना गया स्थान है, जिसका एक विशेष धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। 1917 में ब्रिटिश सरकार ने बेलफोर घोषणा (Balfour Declaration) जारी की, जिसमें यह कहा गया कि फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए "राष्ट्रीय यहूदी मातृभूमि" बनाई जाएगी। ब्रिटेन की इस नीति और प्रवासन आंदोलन के परिणाम स्वरूप लाखों यहूदी फिलिस्तीन आकर बसे और फिलिस्तीन में यहूदी बहुसंख्यक हो गए। 

प्रवास का यह सिलसला निरंतर चलता रहा साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहूदियों का यह संगठन इजरायल के निर्माण के लिए दबाव डालता रहा और इसी तरह आगे चलकर 1948 में इजरायल के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ और फिलिस्तीनी अपने ही देश में अल्पसंख्यक और बेघर हो गए।

इजरायल के गठन की घोषणा के बाद महज़ 7 महीनों के भीतर, फिलिस्तीनियों के 531 गांव नष्ट कर दिए गए थे और 11 शहरी इलाक़े खाली करा लिए गए थे। यह सिलसला आज तक बिना रुके जारी है। इस प्रकार से इजरायल नाम के एक अवैध राष्ट्र का निर्माण हुआ था।

प्रवासी यहूदियों के फिलिस्तीन में बसने और इजरायल राष्ट्र के गठन का अरब मुस्लिम विरोध करते रहें। परन्तु इस प्रतिरोध का इजरायल पर कोई ख़ास असर नहीं हुआ। इजरायल के गठन की घोषणा के साथ ही 1948 में पहला युद्ध हुआ। जिसमें इज़रायल ने अपनी सीमाएं बढ़ा ली और 7 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी बन गए। इसके बाद 1967 में एक बड़ा छः दिवसीय युद्ध हुआ। जो इज़रायल और 6 अरब देशों के मध्य हुआ। इस युद्ध में भी अरब देशों को अपने कुछ क्षेत्र खोने पड़े जिन्हें बाद में इन देशों ने कुछ समझौतों के तहत वापस हासिल किया। इन युद्धों के नतीजे में लाखों फिलिस्तीनियों की मौत हुई साथ ही फिलिस्तीनी लोगों की एक बड़ी आबादी आसपास के अरब देशों में विस्थापित हो गई। बाक़ी बची हुई आबादी फिलिस्तीन के गज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक के इलाक़े में सिमटकर रह गई। 

तब से फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध का एक बड़ा केंद्र गज़ा पट्टी रहा है। इस लंबे समय अंतराल में एक छोटे से क्षेत्र गज़ा पट्टी में इजरायल के इस कब्जे के विरोध में कई संगठन बनकर उभरे हैं। इनमें सबसे चर्चित नाम हमास रहा है। 

इज़रायल की रणनीति

कुछ दिन चले युद्ध विराम के बाद इज़रायल ने फिर से गज़ा पर हमले शुरू कर दिए है। इज़रायल की रणनीति तेज़ी से बदलती हुई दिखाई दे रही है। नेतन्याहू के कार्यालय ने कहा, ‘इज़राइल अब सैन्य ताकत बढ़ाकर हमास के खिलाफ कार्रवाई करेगा।’ इस बदलाव की एक बड़ी वजह हमास के प्रति कड़ा रुख रखने वाले ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना भी है। जब इज़रायल ने युद्ध शुरू किया, तो उसने अपने लिए दो लक्ष्य निर्धारित किए थे, हमास का विनाश और बंधकों की रिहाई। युद्ध विराम समझौते के नतीजे में बंधक तो छोड़ें जा रहे थे परन्तु इज़रायल हमास का खात्मा नहीं कर पाया था। 

शायद इज़रायल के दक्षिणपंथी नेता 16 महीने से भी अधिक समय चले युद्ध के नतीजे में हुई तबाही और मौतों के आंकड़ों से संतुष्ट नहीं थे। यह नेता जिनमें विशेषकर राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्वीर और वित्त मंत्री बेजालेल स्मोत्रिच भी शामिल है। यह नेता हमास का पूर्ण रूप से विनाश और पूरे गज़ा पर इज़रायल का कब्ज़ा देखना चाहते है। दोनों ने युद्ध विराम समझौते का कड़ा विरोध किया था और सरकार छोड़ने की धमकी भी दी थी। हो न हो इन्हीं के दबाव में नेतनयाहू ने एक बार फिर हमले का आदेश दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे गठबंधन वाली सरकार से अलग होकर नए चुनावों के लिए बाध्य ना करें।

इधर हमास का भी कहना कि इज़रायल की सरकार अपने आंतरिक संकट से ध्‍यान हटाने के लिए युद्ध का इस्‍तेमाल एक 'लाइफबोट' की तरह से कर रही है। ध्यान रहें कि नेतनयाहू सरकार के ख़िलाफ़ इज़रायल में हो रहे विरोध प्रदर्शन भी पिछले दिनों में काफ़ी तेज़ हुए है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इज़रायल अब अमेरिका और अन्य मध्यस्थ देशों पर दबाव बढ़ाकर हमास को समझौते के लिए मजबूर करना चाहता है। इस हमले से इज़रायल ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह बंधकों की रिहाई और सीजफायर को लेकर किसी भी कीमत पर हमास की मनमानी को सहन नहीं करेगा। इज़रायल युद्ध की समाप्ति या संघर्ष विराम केवल अपनी शर्तों पर करना चाहता है परंतु इतनी बड़ी तबाही के बावजूद हमास इज़रायल के सामने झुकने को तैयार नहीं है।

हमास की शर्तों को माने बिना आगे भी युद्ध विराम समझौते का होना नामुमकिन है। इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मंगलवार को गज़ा में हवाई हमले फिर से शुरू करने के फैसले का बचाव किया और कहा कि संघर्षविराम बहाल करने के लिए वार्ता "सिर्फ हमले के बीच" जारी रहेगी।

हमास और गज़ा का भविष्य

इज़रायल ने गज़ा में अपनी सैन्य शक्ति का भरपूर उपयोग किया, लेकिन वह हमास को सत्ता से हटाने में अब तक विफल रहा है, जो कि उसके मुख्य युद्ध उद्देश्यों में से एक है। हमास इज़रायल के साथ पिछले चार युद्धों के दौरान सत्ता में रहा है। 16 महीने चले इस ताज़ा संघर्ष में हमास को काफ़ी नुकसान का सामना करना पड़ा है और एक बार फिर इज़रायल के हमले दोबारा शुरू होने के पहले ही दिन उसके 5 कमांडर और फिलिस्तीन सरकार के प्रमुख मारे गए हैं। 

इससे पहले भी हमास के कई नेता मारे गए हैं। जिनमें इस्माइल हानिया और याह्या सिनवार का नाम प्रमुख है। परन्तु इस सबके बावजूद हमास अब भी पूरी शक्ति के साथ गज़ा में अपनी मौजूदगी बनाए हुए हैं। हमास इन सब परिस्थितियों का सामना करते हुए गज़ा का इकलौता नेतृत्वकर्ता संगठन बना रहेगा। हमास ने युद्ध के दौरान हुए नुकसान की भरपाई करते हुए अपने संगठन में नए लोगों को भर्ती कर लिया है। युद्ध विराम की घोषणा के साथ ही हमास ने गज़ा पट्टी का शासन पूरी तरह से सम्भाल लिया था। 

07 अक्टूबर 2023 से शुरू हुआ संघर्ष जो बाद में इजरायल द्वारा किए जा रहे एक तरफा नरसंहार में बदल गया है, जिसके लिए वैश्विक अदालत में इजरायल के प्रधानमंत्री को युद्ध अपराधी भी माना गया है। इस पूरे समयांतराल में इजरायली सेना ने संयुक्त राष्ट्र उपग्रह केंद्र (UNOSAT) के आकलन के अनुसार, दिसंबर की शुरुआत में ही गज़ा की सभी संरचनाओं में से 69% या तो नष्ट या क्षतिग्रस्त कर दी है। संयुक्त राष्ट्र ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि गज़ा पट्टी के सड़क नेटवर्क का 68% भाग नष्ट या क्षतिग्रस्त किया जा चुका है।

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि गज़ा में इज़रायल द्वारा लगभग 1,060 चिकित्सा कर्मियों की हत्या की गई है। गज़ा के लगभग 50 प्रतिशत अस्पताल पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं। युद्धविराम के बाद गज़ा में एक उत्साह देखने को मिला था। वे अपनी बस्तियों के पुनर्निमाण के लिए बेताब और पुरजोश नज़र आ रहे थे। युद्ध के नतीजे में बड़ी आबादी बीमारियों से जूझ रही हैं उनके इलाज़ के लिए दवाइयां और सुविधाएं गज़ा में उपलब्ध नहीं है। 

गज़ा में आवश्यकताएं गंभीर बनी हुई हैं, जहां युद्ध के कारण दो मिलियन से अधिक लोग पूर्णतः खाद्य सहायता पर निर्भर हैं, बेघर हैं तथा उनकी कोई आय नहीं है। गज़ा पट्टी का भविष्य पूरी तरह से अंतराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है।

क्या था ट्रंप का गज़ा प्लान

हाल ही में जब इजरायल और हमास के मध्य युद्ध विराम की घोषणा हुई थी उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बयान देकर तबाह हो चुके गज़ा के पुनर्निमाण का एक विवादित हल पेश किया था। ट्रंप का ये बयान खासी आलोचना की वजह बना था। ट्रंप के इस प्रस्ताव के अनुसार गज़ा के पुननिर्माण के लिए अमेरिका गज़ा का नियंत्रण अपने हाथ में लेगा। और इसका पुनर्निर्माण करते हुए इसे “मध्य पूर्व का रिवेरा” के रूप में विकसित करेगा। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि फिलिस्तीनियों को गज़ा पट्टी से पुनर्वास करके पड़ोसी अरब देशों में शरण दी जाए ताकि गज़ा का पुनर्निर्माण हो सकें।

ट्रंप के इस प्रस्ताव को अरब देशों ने सिरे से ही नकार दिया था। इसके बदले मिस्र और अन्य अरब देशों ने गज़ा के पुनर्निर्माण की दूसरी योजनाएं प्रतुत की थी। यूरोप के कई देश जिनमें प्रमुख रूप से इटली, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ट्रंप के इस प्रस्ताव की आलोचना की थी। केवल इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ही इस विचार की प्रशंसा करते हुए कहा था कि इज़रायल इसे लागू करने की तैयारी कर रहा है। आलोचनाओं के बाद ट्रंप भी अपने बयान से मुकरते हुए नज़र आए थे। एक पत्रकार द्वारा इस संबंध में सवाल पूछे जाने पर ट्रंप ने कहा था कि फिलिस्तीनियों को कोई भी गज़ा से नहीं निकाल रहा है।

मिस्र द्वारा प्रस्तुत किए गए पुनर्निर्माण के प्रस्ताव में कहा गया है कि मिस्र की योजना में तीन चरणीय पुनर्निर्माण प्रक्रिया का प्रावधान है, जिसमें गज़ा से फिलीस्तीनियों को हटाए बिना पांच वर्ष तक का समय लगेगा। इसमें प्रारंभिक छह महीने की अवधि के दौरान फिलिस्तीनियों को स्थानांतरित करने के लिए गज़ा के भीतर तीन "सुरक्षित क्षेत्र" निर्धारित किए गए हैं। दो दर्जन से ज़्यादा मिस्र और अंतरराष्ट्रीय फ़र्म मलबा हटाने और पट्टी के बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण में हिस्सा लेंगी। यह भी कहा गया है कि पुनर्निर्माण से गज़ा की आबादी को हज़ारों नौकरियाँ मिलेंगी।

विभिन्न पक्षों द्वारा गज़ा के पुननिर्माण को लेकर प्रस्ताव दिए जा रहे हैं लेकिन विडंबना है यह थी कि किसी ने गजा वासियों या उनका नेतृत्व कर रहे संगठनों से नहीं पूछा कि वे क्या चाहते हैं।


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