राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी का सवाल सदियों पुराना है लेकिन देश की आज़ादी के 75 सालों बाद भी ये सवाल ज्यों का त्यों सिर उठाए खड़ा है, देश तो आज़ाद हुए सबने अपने मुल्क भी बना लिए और उसकी सत्ता पर काबिज़ भी हो गए लेकिन महिलाओं का राजनीति में सम्मानजनक मुकाम कैसे बने इस समस्या का हल अभी तक नहीं हो पाया है।
अनेक कारण है जिसकी वजह से महिलाएं आज भी देश की राजनीति में अपने सम्मानजनक अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रही हैं l
भारतीय समाज की सामाजिक और धार्मिक मान्यताएं स्त्री विरोधी होना
"ढोल, गवांर, शूद्र, पशु, नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी"
"औरतों में अक्ल कम होती है"
"महिलाओं को बहुत अधिक गुणवान नहीं होना चाहिए"
उपरोक्त लिखित वाक्य भारत में सदियों से सामाजिक और धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त कथन हैं ,
यह वाक्य भारतीय समाज की उस मानसिकता को दर्शाते है जो महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझती है। सामाजिक और धार्मिक रूप से औरतों को कमतर समझे जाने की वजह से भारतीय समाज में राजनीति में महिलाएं वो स्थान हासिल नहीं कर पाई हैं जिसकी वो हकदार हैं। सामाजिक और धार्मिक उत्थान के बिना महिलाओं का राजनीति में सम्मानजनक स्थान पाना नामुमकिन है। यह बहुत आवश्यक है कि भारत की कोई भी सरकार यदि ईमानदारी से राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहती है तो उसे भारतीय समाज की स्त्री विरोधी सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं का उन्मूलन करना पड़ेगा।
आधुनिक युग में जहां दुनिया एआई अर्थात् आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना रही हैं वहीं भारत में आज भी औरतों को डायन या चुड़ैल बताकर मार दिया जाता है।
भारत की एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में ऐसे सीरियल्स बनाए जाते हैं जिनमें महिलाओं को चुड़ैल या जादू टोना करने वाली बताया जाता है।
इन सब धार्मिक और सामाजिक स्थितियों में बदलाव किए बिना महिलाओं की राजनीति में भागीदारी सुनिश्चित करना असंभव है।
पुरुषों की एकाधिकार की चाह
भारतीय समाज में पुरुष वर्ग, समाज, धर्म, राजनीति हर एक की सत्ता पर अपना एकाधिकार चाहता है l सामाजिक और धार्मिक रूप से महिलाओं की स्थिति को कमतर ही इसलिए बनाया गया है ताकि समाज, धर्म और राजनीति में पुरुषों का वर्चस्व स्थापित किया जा सके। योग्य महिलाओं को राजनीति से दूर कर दिए जाने की वजह से कम योग्य पुरुषों के लिए भी स्थान बन जाता है।
महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बड़ी बड़ी बातें करने वाली पार्टियां सिर्फ इस विषय पर राजनीति करती है।
भारत के जितने भी राजनीतिक दल हैं, चाहे वो वामपंथी हो या दक्षिणपंथी, या अन्य सेक्युलर दल सभी की पार्टी संरचना को यदि ईमानदारी से परखा जाए और इस बात का मूल्यांकन किया जाए कि ये गांव, कस्बे से लेकर नगर, राज्य और देश स्तर पर पार्टी के सृजित पदों में यह महिलाओं को कितना स्थान देती हैं तो वास्तविकता सामने आ जाएगी।
भारत के पुरुष महिलाओं को केवल तभी बड़ी उपाधियों से नवाज़ते हैं जब तक वो उनका मनोरंजन करती रहे।
एक यह प्रवृति भी भारतीय समाज के पुरुषों में देखी जाती है कि अगर कोई महिला मनोरंजन के क्षेत्र में बड़ा काम कर रही हो तो उस क्षेत्र में उसकी काबिलियत कुबूल करके उसे, विश्व सुंदरी, महान नृत्यांगना, महान अभिनेत्री जैसी उपाधियों से नवाज़ते हैं, लेकिन अगर कोई योग्य महिला राजनीति में आगे बढ़ रही हो तो उसका चरित्र हनन किया जाता है।
महुआ मोइत्रा से लेकर प्रियंका चतुर्वेदी, सुप्रिया श्रीनेट आदि राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं की मुखरता विपक्षी दल हज़म नहीं कर पाते हैं, सोशल मीडिया पर इन महिला राजनीतिज्ञों को अश्लील कमेंट, यौन हमले की धमकियों आदि का सामना करना पड़ता है। सोनिया गांधी का बीजेपी के लोग एक लंबे अरसे तक बार डांसर कहकर अपमान करते रहे हैंl
समाज में वैज्ञानिक सोच या तार्किक सोच की कमी
महिलाओं की राजनीति में हिस्सेदारी पर बहुत सारे पुरुष आज भी ये सवाल पूछते हैं कि इसकी ज़रूरत क्या है। भारतीय समाज में सरकारें वैज्ञानिक सोच स्थापित करने में विफल रही है जबकि ये संविधान में निहित है कि सरकार लोगों में वैज्ञानिकता या साइंटिफिक टेंपरामेंट का प्रसार करने की कोशिश करेगी l इसके विपरीत वर्तमान सरकार तो धार्मिक अंधविश्वासों को बढ़ावा दे रही है।
देश में आज भी पुरुष महिलाओं के लिए बराबरी या समानता या न्याय के सवाल पर बिदकते हैं l मनुष्य के रूप में पुरुषों से कमतर समझे जाने की मानसिकता महिलाओं को हर स्तर पर पीछे धकेल देती है।
औरतों में स्वयं भी मानवीय मूल्यों के लिए खड़े होने की चेतना का अभाव होना
किसी चीज़ को पाना हो तो उसके लिए क्लेम करना सबसे पहला कदम होता है, भारतीय महिलाओं में यह चीज़ अभी आम नहीं हैं। यहां महिलाएं खुद रूढ़िवादी सोच से ग्रसित हैं, उन्हें लगता है कि पुरुष उद्धारक और स्वामी है। इसी सोच की वजह से कई बार महिलाएं अपने पति, भाई और पिता के ज़ुल्मो के खिलाफ भी नहीं खड़ी होती हैं l रेप जैसे घिनौने अपराध को अंजाम देने के बाद भी पुरुष पत्नियों, बेटियों और बहनों का समर्थन पा जाते हैं।
प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार भारत में सन 2000 से 2019 के बीच लगभग 90 लाख महिलाओं की भ्रूण हत्या कर दी गई, जिस देश में औरत को मां की कोख में भी हिस्सेदारी की लड़ाई लड़नी लड़नी पड़ती हो, वहां महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या होगी यह समझना मुश्किल नहीं है।
हुमा मसीह
नई दिल्ली