आखिर बेटी ही तो माँ है

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By Super Admin April 14, 2025

नौशीन फातिमा खान, भोपाल, मध्यप्रदेश


Description : मां हमारे लिए सम्मानित है, पर बेटी होने से हम डरते है। क्यों ? प्रेम हमें मां से अधिक मिलता है और ज़रा दूर पहुंचने पर हमें पिता से पहले मां की याद आती है। फिर भी हमें बेटे की ही चाह क्यों है? जान लें नर-नारी ज़िन्दगी की गाड़ी के दो पहिये हैं। जिसमें से एक भी कम होगा, तो गाड़ी चल नहीं पायेगी। इतना तो सब जानते हैं, पर बहुत कुछ ऐसा है जो हम में से कई लोग नहीं जानते। ख़ुदा ने दुनिया बनायी फिर बड़े प्यार से उसे सजाया। साथ-साथ रहने और एक दूसरे का साथ देने के लिए पुरुष और महिला का अस्तित्व दुनिया में बसाया। दोनों को ही अपने आप में महत्वपूर्ण बनाया। पुरुष को कठोर और महिला को कोमल बनाया, क्योंकि यही इनकी सुंदरता है। दोनों ही अपने आप में अद्‌भुत है किसी का किसी से कोई मुक़ाबला नहीं। लिंग के आधार पर किसी को किसी पर श्रेष्ठता नहीं है। 

दोनों का ही अपना अलग अलग किरदार है, जो उन्हें ज़िन्दगी में निभाना है। जैसे चांद और सूरज होते हैं, जैसे दिन और रात होते हैं। इनमें से कौन प्रिय कौन अप्रिय यह कोई बता सकता है? चांद न हो तो रात अंधेरी लगेगी और सूरज न हो तो दिन का अस्तित्व ही कहां? रात ना होगी तो चैन कब पाएंगे ? दिन ना हुआ तो काम कैसे हो पाएंगे ? निसंदेह कोई किसी की जगह नहीं ले सकता और ना ही लेना चाहिए, क्योंकि यही प्रकृति का नियम है।

सोचिए जब सृष्टि के रचायिता ने इतने प्यार से अपनी हर एक मख़लूक को बनाया तो हम कौन होते हैं जो किसी से भी इस ख़ूबसूरत दुनिया में आने का अधिकार छीने ? बच्चे ईश्वर की ओर से भेजा गया बेहतरीन तोहफा होते हैं। अगर कोई किसी को तोहफा दे और जिसे दिया जा रहा है वह उसे बुरा समझे या उसे नष्ट कर दे तो देने वाले को कैसा लगेगा? कभी सोचा है उन्होंने जो कुछ मासूम तोहफों को दुनिया में आने से पहले ही ख़त्म कर देते हैं? केवल इसलिए कि वह ख़ुदा की बनाई नरम नाज़ुक और बेहद ख़ूबसूरत मख़लूक में से एक है। यह तो तोहफा देने वाले की मर्जी पर है न कि वह किसे कौन सा तोहफा देगा। फिर हम कौन होते हैं उसके बेहद मोहब्बत से भेजे गए तोहफे को ठुकराने वाले? 

कुरान में स्पष्ट उल्लेख है कि, ‘अल्लाह ही के लिये है आसमान और ज़मीन की बादशाही, वह जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के प्रदान करता है।“ (42:49, 50) 

अल्लाह ने कुरान में आगे फरमाया “और उस वक़्त को याद करो जबकि ज़िंदा दफन की गई लड़की से पूछा जाएगा कि उसे किस जुर्म में मारा गया” (81:8,9)

इस आयत में अल्लाह तआला भ्रूण हत्या करने वालों को चेतावनी दे रहे हैं कि क्या होगा उस दिन जब मरने के बाद तुम्हारे कर्मों का हिसाब होगा और जिसे तुमने बिना किसी कुसूर के मार दिया वह तुम्हारे ख़िलाफ़ गवाही दे। जिस तरह किसी भी बेगुनाह की जान लेना हराम है उसी तरह बेटी होने की वजह से गर्भपात करवाना भी हराम है। 

अल्लाह ने फरमाया- “किसी ने एक बेगुनाह जान क़त्ल की, वह ऐसा है जिसने पूरी इंसानियत को क़त्ल कर दिया और जिसने एक जान बचा ली तो गोया उसने पूरी इंसानियत को बचा लिया।“ (5:32) 

लड़कियों के विवाह के समय दहेज देने की जो प्रथा समाज में प्रचलित हो गई है, इस्लाम में इसका कोई स्थान नहीं है। लड़कियों को अल्लाह ने सक्षम बनाया है उनका जायदाद में हिस्सा भी होता है और अपने दायरे में रहते हुए उन्हें काम करने का अधिकार भी दिया है। वह किसी भी तरह किसी पर बोझ नहीं है।

इस्लाम में बहन को भी बहुत मूल्यवान माना गया है। बड़ी बहन को मां का और छोटी को बेटी का दर्जा दिया गया है। उनका उसी तरह ख़्याल रखने का और उनके साथ उचित व्यवहार करने का आदेश है। जो लोग अपनी बहनों का ख़्याल नहीं करते या उनका हिस्सा दबा लेते हैं वह जान लें कि वह अल्लाह के ख़िलाफ़ जा रहे हैं और इसकी क़ीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। 

क़ुरान में अल्लाह तआला फरमा रहे हैं कि ‘ऐ ईमान वालों। आपस में एक-दूसरे का माल नाहक़ मत खाओ।‘ (4:29)

इस्लाम में मर्द को मेहर (शादी के वक़्त पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला धन) देने का हुक्म है। अगर औरत ख़ुद कमाती भी है तब भी घर के खर्चें की कोई ज़िम्मेदारी उस पर नहीं है। यह उसकी मर्जी है कि वह अपने पैसे मां-बाप को दे, अपने भाई बहन पर ख़र्च करे, ख़ुद पर ख़र्च करे या दान करे। 

“और औरतों को उनका मेहर राज़ी ख़ुशी से दे दिया करो हां अगर वह उसमें कुछ अपनी मर्ज़ी से तुम्हारे लिए छोड़ दें तो उसे इस्तेमाल करो।“ (कुरआन 4:4)

ऐसे में अगर कभी शादी ना भी चल पाई तो दिया हुआ कुछ भी लेना या अपने पास रख लेना जायज़ नहीं है। कुरान में यह भी कहा गया है कि, “और जो कुछ तुम अपनी बीवियों को दे चुके उसमें से कुछ भी वापस लेना तुम्हारे लिए हलाल नहीं।“ यानी अगर किसी वजह से शादी ना चले और अलगाव से जाए तब भी दिया हुआ कुछ भी वापस नहीं लिया जा सकता। यह इसलिए है कि अलग होने पर भी कोई किसी को तकलीफ न पहुंचाए। इस्लाम हमें एहसान सिखाता है। हर हाल में लोगों के साथ अच्छा सुलूक करना अल्लाह की बात मानना यही ईमान है।

दहेज और बीवी की तरफ से कुछ मिलने का सोचना बेजा बात है जबकि हदीस में नेक (अच्छी) बीवी को ही बेहतरीन खज़ाना बताया गया है। हदीस में है कि, बेशक दुनिया फायदा उठाने की जगह है और दुनिया में सबसे ज़्यादा फायदा देने वाली चीज नेक बीवी है” (सही मुस्लिम)। 

एक अच्छी बीवी एक अच्छी मां भी बनती है जो बच्चों की अच्छी परवरिश करती है और उन्हें अच्छा इंसान बनाने में मददगार साबित होती है। अल्लाह ने मां का स्थान बाप से तीन दर्जे अफज़ल रखा है क्योंकि उसकी कुर्बानियां भी कहीं ज़्यादा होती हैं। अल्लाह तआला फरमाते हैं कि औलाद की जन्नत उसकी मां के पैरों के नीचे है। इतना बड़ा मुकाम है औरत का इस्लाम में की लिखते-लिखते मेरी कलम थक जाएगी, लेकिन फज़िलतें पूरी बयान नहीं हो पाएंगी। 

हमारे मुआशरे में भी कहते हैं कि हर कामयाब इंसान के पीछे एक औरत होती है और वह यक़ीनन सबसे पहले उसकी मां ही होती है। जिसने एक बेटी से मां बनने तक का सफर तय किया होता है। ज़रूरत इस बात की है कि हम अपनी बेटियों की इज़्ज़त करें उनका मुक़ाम समझें और उन्हें शुरू से आत्म निर्भरता की शिक्षा दें कि जीवन में कभी कोई विपत्ति आ पड़े तो न वह हार माने और न पराजित हों। 

भूण हत्याओं और लड़कियों के प्रति हो रहे अपराधों के चलते देश में हालात यह हैं कि कई जगह शादी के लिए लड़कियां ही नहीं बचीं। आंकड़ों की माने तो 1000 लड़कों पर महज़ 940 लड़कियां ही रह गई हैं देश में। आख़िर में इतना ही कहूंगी कि अगर सच में अपनी माता से प्रेम करते हैं और यह केवल ‘मदर्स डे’ और ‘वूमेंस डे’ तक ही सीमित नहीं तो लड़कियों की इज्ज़त करें, भ्रूण हत्या रोकें उन्हें अच्छी परवरिश दें और दहेज को समाप्त करें यही हमारे समाज को पतन से बचा सकता है।