‘जो लोग धैर्यवान हैं उनके मार्ग में कभी अंधकार नहीं होता’
सब्र यानी धैर्य का अर्थ अति व्यापक है जिसके अंतर्गत संयम और बंधन दोनों अर्थ शामिल हैं। धैर्य इच्छाशक्ति की वह शक्ति, दृढ़ संकल्प की वह दृढ़ता और दिल का वो जमाव है जो इंसान को उसके पसंदीदा रास्ते पर चलने में सक्षम बनाता है। वह सभी कठिनाइयों और कष्टों का बहादुरी से सामना करता है और फ़र्ज़ की राह में अपने क़दम आगे बढ़ाता चला जाता है। सब्र (धैर्य), वस्तुतः सभी सिद्धांतों, नैतिकताओं और सभ्यता का आधार है और इसके बिना जीवन व्यर्थ समान है।
अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाता है- "ए लोगो जो ईमान लाए हो सब्र और नमाज़ से मदद लिया करो, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है"(सुरह बक़रह)।
सब्र(धैर्य) एक आस्तिक के लिए एक वांछनीय गुण है। यह इच्छा आत्मा (ख़्वाहिश ए नफ़्स) का अनुशासन है जो व्यक्ति को शारीरिक प्रलोभनों और बाह्य कठिनाइयों के बावजूद, अपने दिल और विवेक (ज़मीर) द्वारा चुने गए मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ने में सक्षम बनाता है। सब्र दरअसल इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा आश्रय (पनाहगाह) है। जो व्यक्ति सब्र (धैर्य) को अपनाता है, वह कष्टों और परीक्षाओं की तपिश में भी नहीं टूटता, बल्कि अपने भीतर और अधिक शक्ति का निर्माण करता है। जब ज़ख्म दिल को तकलीफ़ देते हैं, तो सब्र उन्हें सहने की ताक़त देता है और समय के लंबे और अंतहीन रेगिस्तान में शीतल छाया की तरह शांति प्रदान करता है। जब कठिनाइयाँ तूफ़ान के रूप में घेर लेती हैं, तो सब्र ही वह नाव है जो परिस्थितियों के चक्र को चीरकर इंसान को किनारे तक ले आती है।
आस्तिक(मोमिन) का धैर्य जीवन के सर्वोच्च मूल्यों और ईश्वर के लिए होता है। उसका धैर्य निरर्थक नहीं होता। क़ुरान में जिस गुण का सबसे अधिक उल्लेख किया गया है, वह गुण जो व्यक्ति को स्वर्ग तक ले जाएगा, वह सब्र (धैर्य) ही है। "और अपने रब के लिए सब्र करो"(कुरान- सूरह मुदस्सर)। यदि कर्म (अमल) ही जीवन है, तो धैर्य ही कर्म है, क्योंकि धैर्य के बिना अच्छे कर्मों की प्राप्ति संभव नहीं है, इसलिए धैर्य हर पैग़म्बर की कहानियों में छलकता है।
पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) ने फरमाया:- "सब्र से बेहतरीन तोहफ़ा इंसान की ज़िंदगी में हो ही नहीं सकता।"(बुखारी)
अंबिया (अलैहि सलाम) ने मुश्किल हालात में अल्लाह पर अपना गुस्सा ज़ाहिर नहीं किया और ना शिकायत की बल्कि सब्र किया। सबसे अच्छा सब्र यही है कि मुश्किल घड़ी में अल्लाह के सामने झुक जाएँ, गिड़गिड़ाएं, लेकिन शिकायत का एक शब्द भी मुंह से न निकालें, यही सबसे खूबसूरत सब्र(सबरन जमीला) है। दुनिया में जो कुछ हमें मिला है वह सब हमारे धैर्य की परीक्षा है चाहे धन हो,औलाद हो या कुछ और।
अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाता है- और हम ज़रूर तुम्हें ख़ौफ और ख़तरा, फाक़ा कशी जान ओ माल के नुक़सानात और आमदनियों के घाटे में मुब्तिला करके तुम्हारी आज़माइश करेंगे, इन हालात में जो लोग सब्र करें और जब कोई मुसीबत पड़े तो कहें कि 'इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलएही राजी'ऊन' यानी हम अल्लाह ही के हैं और अल्लाह ही की तरफ हमें पलट कर जाना है"(सुरह बकरह- 155-156)।
यानी अल्लाह ने हमें पहले ही बता दिया है कि वह हमारी परीक्षा ज़रूर लेगा, और हर कोई किसी न किसी तरह की परीक्षा से गुज़र रहा है, कोई बच्चों से आज़माया जा रहा है कोई सेहत से, तो कोई अपने किसी प्रियजन की मौत से। दुनिया में हर चीज़ नाश होने वाली है और हमारे पास जो कुछ भी है, वह सब एक दिन चला जाएगा, केवल अल्लाह का सार ही शेष रहेगा। जब कोई इंसान अल्लाह से ज़्यादा किसी चीज़ से प्यार करता है, तो अल्लाह उसी चीज़ से उसकी परीक्षा लेता है। जब हम अल्लाह पर भरोसा करेंगे तो उसके किसी भी फ़ैसले से नाराज़ नहीं होंगे, बल्कि उस पर सब्र करेंगे तो सफलत हमारे कदमों में होगी।
पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) ने फरमाया- "मोमिन से मुताल्लिक़ अल्लाह की तक़दीर और फैसले पर मुझे ताज्जुब होता है कि अगर उसे कोई भलाई हासिल होती है तो वह अपने रब की हम्द बयान करता है और कोई मुसीबत आती है तो उसे पर भी सब्र और शुक्र अदा करता है"(हदीस)।
और एक मुक़ाम पर आप(सल्ल०)फरमाते हैं- "जब तुम पर कोई दुख तकलीफ़ आए तो मेरे दुखों को याद कर लिया करो"(हदीस)। किसी व्यक्ति के लिए अपने परिवार और प्रियजनों को खोना कितना कष्टदायक होता है। पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व) पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उनके सभी प्रियजन अल्लाह को प्यारे हो गए, लेकिन आपने धैर्य बनाए रखा। इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, आपसे ज़्यादा कोई मुस्कुराने वाला नहीं था।
क़ुरान में सब्र करने वालों के लिए अल्लाह ने फरमाया- "उन्हें खुशख़बरी दे दो उन पर उनके रब की तरफ़ से बड़ी इनायत होगी, उसकी रहमत उन पर साया करेगी, और ऐसे ही लोग हिदायत पाने वाले हैं"(सूरह बक़रह- 157) सब्र करने वालों के लिए यह कितनी बड़ी नेमत है।
धैर्य इंसान की इबादत में मदद करता है, उस इंसान को अल्लाह की मोहब्बत और फ़रिश्तों की सोहबत नसीब होती है, और अल्लाह उस इंसान का सम्मान बढ़ाता है जो किसी भी दुःख या किसी के द्वारा उत्पीड़न या आरोपों के कारण या परिस्थितियों की कठिनाई या आजीविका की कमी, बीमारी या बच्चों की मृत्यु के कारण वह अल्लाह को दोष नहीं देता, न ही अपने भाग्य को कोसता है, बल्कि धैर्य रखता है। यह एक सच्चाई है कि सब्र के गुण के बिना कोई भी व्यक्ति किसी राष्ट्र या संगठन का नेता बन ही नहीं सकता।
आज के दौर में अधीरता(बेसब्री) और बेचैनी बहुत ज़्यादा पाई जाती है, हम हर बात का परिणाम तुरंत चाहते हैं। हमारे अंदर आत्म संयम (सेल्फ कंट्रोल) ख़त्म होता जा रहा है। हमें तो किसी बीमारी या मुसीबत का सामना हो जाए तो पहला वाक्य हमारे मुंह से यही निकलता है कि 'इसमें हमारा क्या कसूर था', जबकि हम हज़रत मरियम (अलै०) को देखें तो कोई भी महिला कल्पना भी नहीं कर सकती कि अल्लाह ने उन्हें कैसी परीक्षा से गुज़ारा।
एक महिला जो इतनी पवित्र और अत्यंत प्रतिष्ठा वाली थी, वह गर्भवती हो जाती है, उन परिस्थितियों में उन्होंने अपनी क़ौम का सामना और सब्र कैसे किया। पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) का ताइफ की घटना पर सब्र, हज़रत आयशा(रज़ि०) का अपने ऊपर लगे आरोपों पर सब्र, हज़रत अयूब (अलै०) का उनकी लंबी बीमारी पर सब्र, हज़रत हाजरा (अलै०) का तपते हुए रेगिस्तान में अकेले एक मासूम बच्चे के साथ सब्र, हज़रत इब्राहिम (अलै०) का हर इम्तिहान पर सब्र, हज़रत इस्माइल(अलै०) का सब्र, हज़रत मूसा(अलै०, हज़रत लूत(अलै०), हज़रत ज़करिया(अलै०) हज़रत यूसुफ(अलै०), और हज़रत आसिया का सब्र, सभी घटनाएँ दर्शाती हैं कि प्रत्येक नबी की धैर्य (सब्र) से परीक्षा ली गई और वे सभी धैर्यवान रहे।
पैगंबर मोहम्मद (सल्ल०) ने फरमाया- "सब्र का बदला जन्नत है"(हदीस) और सब्र मुसीबत के शुरू में ही होता है जो कोशिश से आता है। कुछ दुख और कमर तोड़ कठिनाइयां इंसान की ज़िंदगी में आती है लेकिन अंत में उन्हें राहत भी मिलती है लेकिन शर्त यही है कि उसे उन मुसीबतों पर सब्र करना है। अल्लाह कुरान में फरमाता है- " क़सम है ज़माने (समय) की, इंसान ख़सारे(घाटे) में है, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और एक दूसरे को हक़(सत्य) और सब्र(धैर्य) का उपदेश दिया"(सूरह अस्र)।
इससे पता चलता है कि यदि आस्था सत्य पर विश्वास करने का नाम है, तो अच्छे कर्म धैर्य की अभिव्यक्ति(इज़हार) हैं। आस्थावान लोग अपने जीवन में जो कर्म और व्यवहार अपनाते हैं, वे उनके लिए पूरी तरह स्पष्ट होते हैं और पूरी तरह से तर्क(वाज़े) और अंतर्दृष्टि(अक़्ल ओ बसीरत) के अनुरूप होते हैं।
धैर्य का अर्थ उज्ज्वल प्रकाश (तेज़ रोशनी) भी है, इसीलिए जो लोग धैर्यवान हैं उनके मार्ग में कभी अंधकार नहीं होता, उनके जीवन का मार्ग सीधा और उज्ज्वल होता है। धैर्य केवल सहनशीलता का नाम नहीं है, यह वास्तव में प्रार्थना का एक रूप है, एक विश्वास है जो हृदय में यह भावना जगाता है कि हर दुःख के बाद शांति है और हर अंधकार के बाद प्रकाश है। धैर्यवान व्यक्ति हार को सबक़ में बदल देता है और निराशा को आशा की किरण में ढाल लेता है। धैर्य का सत्य यही है कि दिल में विश्वास बना रहे और ज़ुबान पर कृतज्ञता (शुक्र) जारी रहे। ऐसा धैर्य हृदय को विस्तृत(कुशादा) करता है, आत्मा(रूह) को प्रकाशित(मुनव्वर) करता है और समय की कठिनाइयों में व्यक्ति को सहारा प्रदान करता है।
रज़िया मसूद
भोपाल, मध्य प्रदेश