बदलते मौसम और बाढ़ के बाद बच्चों की सेहत का इस तरह रखें ख़्याल
मौसम का मिज़ाज जब बदलता है, तो सबसे पहले असर बच्चों की सेहत पर पड़ता है। राजस्थान जैसे प्रदेश में कभी तपती गर्मी, कभी अचानक बरसात और फिर उमस भरी नमी, ये सब मिलकर बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर कर देते हैं।
बरसात और बाढ़ के बाद हालात और भी चुनौतीपूर्ण हो जाते हैं। गली-कूचों में जमा पानी, मच्छरों की बढ़ोतरी, खाने-पीने की चीज़ों का जल्दी खराब होना, सब मिलकर बच्चों को बीमारियों के घेरे में ले आते हैं।
ऐसे में माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता यही रहती है कि “कहीं बच्चा बीमार न पड़ जाए” क्योंकि बच्चों की सेहत नाज़ुक होती है, और छोटी सी लापरवाही बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है। आइए जानें, ऐसे मौसम में बच्चों को सबसे ज़्यादा कौन-कौन सी बीमारियाँ घेरती हैं, उनके लक्षण क्या हैं, और किन सावधानियों से हम अपने बच्चों की सुरक्षा कर सकते हैं।
मौसम के बदलते ही बच्चों में सर्दी-ज़ुकाम के लक्षण शुरु
लक्षण: छींक, नाक बहना, गले में खराश।
सावधानी: ठंडी चीज़ों से बचाएँ, भीगने पर कपड़े बदलें।
उपचार: गुनगुना पानी पिलाएं, भाप दें, तेज़ बुख़ार पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
तेज़ बुख़ार और साँस फूलना — न्यूमोनिया का खतरा
लक्षण: तेज़ बुख़ार, खाँसी, तेज़ साँस।
सावधानी: भीड़भाड़, धूल और धुएँ से बचाएँ।
उपचार: डॉक्टर की निगरानी में दवा दें, लापरवाही ना बरतें।
बारिश के बाद दस्त और हैज़ा बच्चों के लिए जानलेवा
लक्षण: बार-बार पतले दस्त, उल्टी, पानी की कमी।
सावधानी: उबला/फ़िल्टर किया पानी दें, बासी खाना न खिलाएँ।
उपचार: ओआरएस का घोल दें, तरल पदार्थ खिलाएं, तबियत में सुधार ना हो तो तुरंत अस्पताल में भर्ती करें।
बाढ़ के पानी से पनपे मच्छर और डेंगू का डर
लक्षण: तेज़ बुख़ार, सिरदर्द, प्लेटलेट्स की कमी।
सावधानी: मच्छरदानी का इस्तेमाल करें, जमा पानी हटाएँ।
उपचार: नारियल पानी का सेवन करें, तरल आहार लें। गंभीर स्थिति में तुरंत अस्पताल पहुंचे।
ठंडी-गर्मी का बुख़ार — मलेरिया की पहचान
लक्षण: ठंड लगना, बुख़ार चढ़ना-उतरना, पसीना।
सावधानी: मच्छरों से बचाव करें, आसपास पानी न रुकने दें।
उपचार: खून की जाँच कराएँ, पूरी दवा लें।
गंदे पानी और बासी खाना — टायफाइड का बड़ा कारण
लक्षण: लगातार बुख़ार, भूख कम, पेट-दर्द।
सावधानी: साफ़ पानी और ताज़ा खाना ही दें।
उपचार: डॉक्टर की देखरेख में सही इलाज करें।
गीले कपड़े और मिट्टी से स्किन इंफेक्शन
लक्षण: खुजली, लाल दाने, फोड़े।
सावधानी: बच्चों को साफ़-सुथरा और सूखा रखें।
उपचार: एंटीसेप्टिक लोशन लगाएं, गंभीर स्थिति में डॉक्टर से संपर्क करें।
आँखों की लालिमा और पानी — कंजक्टिवाइटिस का फैलाव
लक्षण: आँख लाल होना, पानी आना, चिपचिपापन।
सावधानी: तौलिया साझा न करें, आँख न मलें।
उपचार: साफ़ पानी से धोएँ, डॉक्टर की सलाह पर आई-ड्रॉप डालें।
बदलते मौसम और बाढ़ के बाद का समय बच्चों की सेहत के लिए कड़ी परीक्षा है। लेकिन अगर हम साफ़-सफ़ाई का ख़याल रखें, उबला पानी पिलाएँ, मच्छरों से बचाव करें, और ज़रूरत पड़ने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें तो बड़ी बीमारियों से आसानी से बचा जा सकता है।
बदलते मौसम और बाढ़ के बाद बच्चों की सेहत – माँ-बाप के लिए त्वरित टिप्स
1. सर्दी–जुकाम और बुख़ार
बच्चों को गीले कपड़े पहनने न दें।
हल्का, गर्म और पौष्टिक खाना खिलाएँ।
तेज़ बुख़ार हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ।
2. गले का इंफेक्शन और खाँसी
ठंडे पेय और बासी खाना न दें।
गुनगुना पानी पिलाएँ।
लगातार खाँसी हो तो मेडिकल सलाह लें।
3. डायरिया और उल्टी
बच्चों को सिर्फ़ उबला या फ़िल्टर किया हुआ पानी दें।
ओआरएस, नींबू पानी और हल्का आहार दें।
दस्त/उल्टी बढ़ने पर तुरंत अस्पताल जाएँ।
4. मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया (मच्छर जनित रोग)
घर और आसपास पानी जमा न होने दें।
बच्चों को फुल आस्तीन के कपड़े पहनाएँ।
सोते समय मच्छरदानी ज़रूर लगाएँ।
5. त्वचा और आँखों के इंफेक्शन
बच्चों को दिन में एक बार साबुन से नहलाएँ।
गीले कपड़े या गंदे तौलिये का इस्तेमाल न करें।
आँख लाल या चिपचिपी हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ।
याद रखिए: साफ़ पानी, साफ़ खाना और साफ़ माहौल ही बच्चों की सेहत की सबसे बड़ी गारंटी है।
क्या न करें (Don’ts)
गीले कपड़े बच्चों को लंबे समय तक न पहनाएँ।
बासी खाना या ठंडी चीज़ें बच्चों को न दें।
बच्चों को भीड़भाड़ या धूल-धुएँ वाली जगहों पर न ले जाएँ।
तौलिया, रूमाल, पानी की बोतल साझा न कराएँ।
घर में जमा गंदा पानी बिल्कुल न छोड़ें।
डॉ मोहम्मद इलियास (शिशु रोग विशेषज्ञ)
शिफ़ा चिल्ड्रन हॉस्पिटल, सीकर (राजस्थान)