विकसित देशों की परिवार नियोजन पॉलिसी क्यों विफ़ल?
जनसंख्या निंयत्रण का औचित्य
बीसवीं सदी के मध्य दुनियाभर में बड़ी तेज़ी से बदलाव शुरु हुए। जहां एक ओर साइंस ने आश्चर्यजनक प्रगति करना शुरु की तो वहीं सामाजिक परिवर्तन के लिए नित्य नए आंदोलन शुरु हो गए। जैसे मानवाधिकार, समानता का अधिकार, महिला सशक्तिकरण इत्यादि। उसी दौर में एक अन्य आंदोलन बड़ी तेज़ी से समाज में कदम जमाता चला गया और वह था जनसंख्या नियंत्रण या परिवार नियोजन आंदोलन। इसने समाज को बड़ी गहराई तक प्रभावित किया। यह कहना गलत ना होगा कि समाज के सभ्य वर्ग से लेकर निम्न स्तर तक के लोगों को इस आंदोलन ने बड़ी तेज़ी से प्रभावित किया। फैमिली प्लानिंग को लेकर तरह तरह के आकर्षक नारे गढ़े गए। लोगों के अंदर जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणाम का भय पैदा किया जाने लगा और इस भय से हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।
विकासशील देशों के लोगों को जनसंख्या नियंत्रण कर विकसित समाज बनाने का सपना दिखाया जाने लगा। उन्हें इस बात के लिए भी लुभाया जाने लगा कि यदि वे जनसंख्या नियंत्रित करने में सहायक बने तो उनके देश में, उनके घर व समाज में खुशहाली आ जाएगी। तत्पश्चात विश्व के लगभग सभी विकासशील देशों में जनसंख्या नियंत्रण के लिए तेज़ी से कानून बनने लगे, जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ा। 1975 के आपातकाल के दौरान अपने विवादस्पद फैसलों के कारण इंदिरा गांधी की देशभर में खूब आलोचना हुई थी और वह विपक्ष के निशाने पर रही थीं। उन्हीं विवादस्पद फैसलों में से उनका एक चर्चित फैसला जबरिया नसबंदी का भी था। इस अभियान की कमान उनके पुत्र संजय गांधी ने परोक्ष रुप से संभाल रखी थी।
उस समय शिक्षकों से लेकर समूचे सरकारी तंत्र को नसबंदी अभियान सफल बनाने के लिए लक्ष्य दिया गया था और लक्ष्य पूरा ना होने पर वेतन काटने की चेतावनी भी दी गई थी। इसका प्रभाव यह पड़ा कि एक साल के भीतर 62 लाख पुरुषों की नसबंदी करवा दी गई। इस अभियान से ख़ौफ का आलम यह था कि ग्रामीण इलाके में सरकारी गाड़ी देखकर लोग खेतों और जंगलों में जाकर छिप जाते थे। उस समय की विभिन्न रिपोर्टों की मानें तो नसबंदी के दौरान हुई लापरवाही के कारण 2000 से अधिक पुरुषों की मौत हो गई थी। प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी की चर्चित पुस्तक “मिडनाइट चिल्ड्रेन” में इस अभियान का उल्लेख मौजूद है।
इसके बाद सन् 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में गठित वेंकटचलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 31 मार्च 2002 को केंद्र सरकार को सौंपी थी। जिसमें कहा गया था कि देश के विकास के लिए यह आवश्यक है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए ठोस कानून बने। 2018 में भाजपा नेता व सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जनसंख्या नियंत्रण कानून पर संसद में बहस कराए जाने की मांग की थी। हिंदू रक्षा सेना के अध्यक्ष महामंडलेश्वर प्रबोधानंद गिरि ने भी पीएम मोदी को पत्र लिखकर जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाए जाने की मांग की थी। जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि दो से ज़्यादा बच्चे होने पर नागरिकता समाप्त कर दी जाए। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी 2021 में जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का मसौदा विधानसभा में पेश किया था। जिसमें दो बच्चे पैदा करने वाले लोगों के लिए प्रोत्साहन और अधिक बच्चे पैदा करने वालों के लिए सरकारी लाभ में कटौती का प्रावधान था। हालांकि यह विधेयक अभी तक सदन में पारित नहीं हो सका।
जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने वाले देशों की स्थिति
जनसंख्या के मामले में चीन विश्व में नंबर वन और भारत दूसरे पायदान पर आता है। चीन में जनसंख्या नियंत्रण के लिए 1979 में ‘वन चाइल्ड पॉलिसी प्रोग्राम’ लागू किया गया। जिसके तहत कोई भी चीनी नागरिक एक से अधिक बच्चे पैदा नहीं कर सकता। यह कानून चीन के भविष्य के लिए ऐसी चुनौती बना जिसका कानून बनाने वालों ने अंदाज़ा भी नहीं किया होगा। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कानून के लागू होने के तीस साल के अंदर चीन की प्रजनन दर 2.81 से घटकर 1.51 पर पहुंच गई। जिसके बाद वहां मजदूरों की संख्या लगातार घटने लगी, सेना में लोगों की संख्या में गिरावट आने लगी और बूढ़ों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। जिसके बाद सरकार ने वन चाइल्ड पॉलिसी को समाप्त कर ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ लागू की और यह भी कारगर साबित ना हो सकी तो सरकार को ‘थ्री चाइल्ड पॉलिसी’ प्रोग्राम लागू करना पड़ा।
अब इस पॉलिसी को अधिक प्रभावी बनाने के लिए चीन ने अधिक बच्चे पैदा करने पर सब्सिडी देने की घोषणा की है। जिसके अंतर्गत चीन तीन साल से कम आयु के बच्चों के खर्च को पूरा करने के लिए माता पिता को 500 डॉलर प्रति बच्चे की वार्षिक सब्सिडी देगा। और तीन बच्चों पर 1500 डॉलर तक की सब्सिडी मिलेगी।
फ्रांस में यह सब्सिडी सरकार पहले से ही दे रही है लेकिन उसके बावजूद प्रजनन दर में कोई खास वृद्धि नहीं हो सकी है। 2023 में फ्रांस की प्रजनन दर 1.66 थी और 2024 में यह 1.85 तक पहुंची थी और 2025 में भी इतना ही रहने का अनुमान है। फ्रांस का भी शुमार उन देशों में होता है जहां बूढ़ों की संख्या युवाओं से अधिक है। यही हाल जापान का भी है जहां 2017 के आंकड़ों के अनुसार वहां की जनसंख्या 12 करोड़ 80 लाख थी। 2024 में वहां की प्रजनन दर 1.15 हो गई, जो कि 2024 में 1.20 थी। यह अब तक कि वहां की सबसे कम दर है। जिसके हिसाब से अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सदी के अंत तक वहां की जनसंख्या केवल 5 करोड़ 30 लाख तक ही बचेगी। जिससे जापान को आर्थिक एवं प्राकृतिक स्त्रोतों को संभालने वाले लोगों के भीषण संकट का सामना करना पड़ सकता है।
यही स्थिति दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में से एक माने जाने वाले इटली की भी है। 2017 की लैसेंट की रिपोर्ट के अनुसार इटली की आबादी 6 करोड़ दस लाख थी, जो इस सदी के अंत तक घटकर दो करोड़ 80 लाख हो जाएगी। साल 2019 के विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार इटली में 23 प्रतिशत आबादी 65 साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों की है। वर्ष 2015 में इटली की सरकार ने प्रजनन दर बढ़ाने के लिए एक योजना शुरु की थी, जिसके तहत हर जोड़े को एक बच्चा होने पर सरकार की ओर से 725 पाउंड दिए जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद वहां की प्रजनन दर में गिरावट आ रही है। 2024 में प्रति महिला यह दर 1.18 पहुंच गई है जो कि अब तक कि सबसे न्यूनतम दर है।
जनसंख्या नियंत्रण पर इस्लामी दृष्टिकोण
गरीबी, जनसंख्या वृद्धि व अच्छे भविष्य से वंचित रह जाने के भय से संतान की हत्या करना इस्लाम के अनुसार बहुत बड़ा अपराध है। कुरआन में सूरह बनी इसराईल में कहा गया है, “अपनी संतान को गरीबी के डर से कत्ल ना करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। सच्चाई यह है कि उनका कत्ल एक बड़ा अपराध है।”(कुरआन 17:31)
दूसरी जगह कहा गया है, “यकीनन घाटे में पड़ गए वे लोग, जिन्होंने अपनी औलाद को जिहालत व नादानी के बिना पर कत्ल किया।” (कुरआन 6:140)
अल्लाह के रसूल सल्ल० सहाबा किराम रज़ि० से बैत (शपथ) लेते समय जिन बातों की बैत दिलवाते उनमें से एक बात यह भी होती कि वह अपनी औलादों को कत्ल नहीं करेंगे।
मदीना हिजरत से पहले यसरिब के जिन लोगों ने हज के मौके पर आप सल्ल० से मुलाकात की और आप सल्ल० के हाथ में बैत की थी उनमें हज़रत उबादा बिन सामित रज़ि० भी थे। वे बयान करते हैं कि आप सल्ल० ने फरमायाः “मुझ से बैत करो इस चीज़ पर कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराओगे, चोरी नहीं करोगे, ज़िना नहीं करोगे और अपनी औलाद को क़त्ल नहीं करोगे।” (बुख़ारी, मुस्लिम)
यूरोप और चीन का उदाहरण देख यह ज़ाहिर हो गया कि ईश्वरीय प्रबंधन को चुनौती देने का अंजाम क्या होता है। जिन जिन देशों ने परिवार नियोजन के तरीके अपनाने और बढ़ती जनसंख्या पर अंकुश लगाने की पॉलिसी अपनाई उन्हें मुंह की खानी पड़ी। नतीजा हमारे सामने है और अब हमें यह फैसला करना है कि हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर की बनाई संरचना और उसके आदेश का पालन करना है या दुनिया के लोक लुभावन कानूनों की ओर आकर्षित होकर स्वयं को घाटे में डालना है।
सहीफ़ा ख़ान
उप संपादक, आभा-ई-मैग्ज़ीन