‘सब्र’ ही कामयाबी का रास्ता है
"ए लोगो जो ईमान लाए हो सब्र और नमाज़ से मदद लो, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है" (क़ुरआन-2:153)
क़ुरआन ने अल्लाह पर ईमान रखने वालों की जो महत्वपूर्ण विशेषताऐं बताई हैं उनमें से बहुत बुनियादी विशेषता "सब्र" है, क़ुरआन सब्र को मदद हासिल करने का ज़रिया भी बताता है और सफलता का मंत्र भी, क़ुरआन में जहाँ कहीं अहले ईमान की मुश्किल परिस्थितियों और आज़माइशों का वर्णन किया गया है वहाँ उन्हें सब्र करने की तलक़ीन की गई है, अल्लाह के पैग़म्बर मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम जब अपने हालात और अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों का वर्णन मूसा अलैहिस्सलाम के सामने करती है तो उनसे कहा जाता है, "अल्लाह से मदद माँगो और सब्र करो" (7:128)
सब्र क्या है..??
सब्र मज़बूती के साथ अपने मौकफ़ (उद्देश्य) पर जम जाने का नाम है, जब किसी व्यक्ति पर सच बात स्पष्ट हो जाए तो सब्र ही वो हथियार है जो उसे सच पर मज़बूती से जमे रहने की ताक़त देता है, जिस तरह फ़िरऔन के सामने जादूगरों ने दृढ़ता और हिम्मत का प्रदर्शन किया, जब उन्हें अल्लाह पर ईमान लाने की वजह से फ़िरऔन के ग़ज़ब का सामना करना पड़ा था।
सब्र शऊर (चेतना) की सतह पर ज़िंदगी बसर करने का नाम है, शऊर की इस सतह पर व्यक्ति अपनी तमाम परेशानियों और मुसीबतों पर शिकवा शिकायत के बजाए इस अहसास का इज़हार करता है कि "हम अल्लाह ही की तरफ़ से हैं और उसी की तरफ़ पलट कर जाना है", ये मात्र एक जुमला या दुआ नहीं है बल्कि एक मुस्लिम बंदे के जीने का स्तर है जिसे क़ुरआन सब्र कहता है।
सब्र उस संतुलित दृष्टिकोण का नाम है जो इंसान को आज़माइश व परेशानी, सख़्ती व तंगदस्ती, और प्रतिकूल परिस्थितियों में मायूसी, घबराहट, भय और मानसिक तनाव से बचाता है, ख़ुशहाली व फ़रावानी में अहंकारी नहीं बनने देता है ।
कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सब्र का मुतालबा इस बात की निशानी है कि सब्र ही से ये फ़ैसला होता है कि आप जिस विचारधारा के झंडावाहक हैं उसके लिए ख़ुद अपने अंदर कितना विश्वास रखते हैं, जैसे मानो कि सब्र विचारधारा पर विश्वास की गवाही है, और सब्र ही वो मात्र ज़रिया है जिससे कड़े विरोध के बीच आप लोगों का ध्यान अपनी ओर केंद्रित कर सकते हैं ।
सब्र ही से इंसान के अंदर बहादुरी, हिम्मत, हुस्ने सुलूक, बलिदान, पाकदामनी जैसी उच्च कोटि की विशेषताएँ जन्म लेती हैं और निरन्तर संघर्ष करने का साहस मिलता है, इसीलिए पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "सब्र का बदला जन्नत है।"
क़ुरआन में सब्र करने वालों को दोहरे अज्र की बशारत सुनाई गई है, और सबसे बढ़ कर ये कि "अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।"
सब्र की इसी अहमियत और ज़रूरत की वजह से पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमज़ान के महीने को "सब्र" का महीना कहा है, अर्थात इंसान इस महीने में अपने व्यक्तित्व में बुलन्द औसाफ़ पैदा करने की तरफ़ मुतवज्जोह हो, और रोज़ा इस लिहाज़ से इंसान की तरबियत का बेहतरीन ज़रिया है।
मुत्तलिब मिर्ज़ा
स्वतंत्र लेखक, राजस्थान