शरई उलझनें और उसका जवाब
सवाल : ख़ुला के कितने समय बाद उसी पति से निकाह हो सकता है ?
जवाब : ख़ुला एक ‘तलाक़े बाइन’ के हुक्म में है, बाइन का मतलब यह है कि दुबारा निकाह के लिए औरत की मर्ज़ी ज़रूरी है । मुद्दत की कोई क़ैद नहीं है। ख़ुला के ज़रियह अलग होने के बाद दोनों जब चाहें दुबारा निकाह कर सकते हैं।
सवाल : हम में से कुछ औरतों को दीनी काम करने के लिए आज़ादी नहीं है। घरों से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी जाती। इस हालत में हम क्या करें ?
जवाब : घर से बाहर जाने के लिए सरपरस्त या पति की इजाज़त ज़रूरी है। इजाज़त न मिले तो यह औरत के लिए शरई उज़्र है। लेकिन समाज सुधार का काम करने के लिए घर से बाहर जाना बहुत ज़रूरी नहीं है । आजकल कोई भी औरत सोशल मीडिया के ज़रियह घर बैठे दूसरी औरतों से संपर्क कर सकती है और उनकी तालीम और तर्बियत की कोशिश कर सकती है ।
सवाल : एक औरत की उस के सास-सुसर से नहीं बनती थी। उसने पति पर दबाव डाला कि वह उस के लिए अलग घर का इंतिज़ाम करे। पति अपने माँ बाप की इकलौती औलाद है, इसलिए वह उनसे अलग हो कर रहने पर तैयार नहीं हुआ। विवाद बढ़ा तो मामला दारुल क़ज़ा पहुंचा । क़ाज़ी साहब ने यह फ़ैसला दिया कि औरत को अलग घर की मांग करने का हक़ है । इस के बारे में आपकी क्या राय है ?
जवाब : इस्लाम के क़ानूनी अहकाम जितने हैं, उस से कहीं ज़्यादा इस की अख़लाक़ी तालीमात हैं। क़ानूनी तौर पर सास सुसर की ख़िदमत औरत की ज़िम्मेदारी नहीं है और उसे अलग घर की मांग करने का हक़ है, लेकिन अगर इस मामले को अख़लाक़ी नज़र से देखा जायह तो सास-सुसर औरत के लिए माँ बाप के दर्जे में हैं। क़ुरआन और हदीस में सिलारहमी का हुक्म दिया गया है, इसलिए औरत को उनकी ख़िदमत करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए । ऐसी औरत से यह सवाल करना चाहिए कि अगर तुम्हार…
सवालः मेरी पत्नी गर्भवती है और हमारे पहले से एक बच्ची है जिसकी उम्र अभी एक साल है। क्या वह बच्ची को दूध पिलाना जारी रख सकती है या अब बंद कर देना चाहिए? कुछ लोग गर्भावस्था के दौरान दूध पिलाने से मना करते हैं। बराहे करम रहनुमाई करें।
जवाब: क़ुरआन में बच्चे को जन्म के बाद दो वर्ष तक दूध पिलाने की अवधि बताई गई है। अल्लाह का फ़रमान है:
"माएं अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाएं, यदि पिता यह चाहें कि बच्चा पूरी अवधि तक दूध पिए।" (सूरह बक़रह: 233)
यह नियम शरई (इस्लामी विधिक) दृष्टिकोण से है ताकि उस पर जुड़े शरई अहकाम लागू हो सकें। ज़रूरत पड़ने पर बच्चे को दो साल के बाद भी दूध पिलाया जा सकता है, या इससे पहले भी छुड़ाया जा सकता है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के समय में यह आम धारणा थी कि यदि कोई महिला दूध पिलाते हुए गर्भवती हो जाए तो उसका दूध बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। लेकिन पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस धारणा को ख़ारिज कर दिया और गर्भावस्था के दौरान भी बच्चे को दूध पिलाने की अनुमति दी।
हज़रत जुदामा बिन्त वहब असदिया रज़ि. कहती हैं कि मैं एक क़ाफ़िले के साथ रसूलुल्लाह (सल्ल.) की सेवा में हाज़िर हुई। मैंने आपको यह कहते सुना:
"मैंने इरादा किया था कि 'ग़ीला' (यानी गर्भावस्था के दौरान दूध पिलाना) को मना कर दूं, लेकिन मैंने देखा कि रोम और फ़ारस की महिलाएं ऐसा करती हैं और उनके बच्चों पर कोई बुरा असर नहीं होता, इसलिए मैंने मना नहीं किया।" (मुस्लिम: 1442)
निष्कर्ष: इससे साबित होता है कि इस्लामी दृष्टिकोण से गर्भावस्था के दौरान बच्चे को दूध पिलाने में कोई समस्या नहीं है। हालांकि बच्चे को धीरे-धीरे ठोस आहार की आदत भी डालनी चाहिए और जैसे-जैसे आहार बढ़ता जाए, दूध कम कर देना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो ऊपर का दूध (फॉर्मूला मिल्क आदि) भी दिया जा सकता है ताकि बच्चे की पोषण में कोई कमी न हो और वह अच्छी तरह से पले-बढ़े।
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प्रस्तुतिः डॉक्टर रज़िउल इस्लाम नदवी