वज़न बढ़ने का कारण सिर्फ मोटापा नहीं!
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स्वास्थ्य
वज़न बढ़ने का कारण सिर्फ मोटापा नहीं!

आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में मोटापा बढ़ना एक सामान्य बात समझी जाने लगी है। हर दूसरा या तीसरा इंसान हमें आसपास मोटापे से ग्रस्त मिल जाता है। विशेषरुप से महिलाएं इसका ज़्यादा शिकार होती हैं, जिसमें अधिकांश संख्या 30 वर्ष की आयु से ऊपर की महिलाओं की होती है। मोटापे के कंट्रोल करने के लिए इसका बाज़ारीकरण भी आजकल खूब तेज़ी से होने लगा है। जिस कारण हर गली मोहल्ले में बड़ी संख्या में खुलते जिम, फिटनेस सेंटर, लाइफ कोच की भरमार हो चुकी है। लोग एक से बढ़कर एक आकर्षक पैकेज लेकर बदले में मोटी रकम देकर मोटापे से छुटकारा पाने की कोशिश में लगे हुए दिखाई देते हैं। आइए जानते हैं मोटापे का असल कारण और इससे संबंधित तथ्यों के बारे में।

अमेरिका की ड्यूक युनिवर्सिटी में हुए हालिया अध्ययन के अनुसार, मोटापे का मुख्य कारण गलत खान-पान और गलत दिनचर्या है। आजकल की बिज़ी लाइफ में लोग अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड का इस्तेमाल ज़्यादा करने लगे हैं जिस कारण मोटापा तेज़ी से बढ़ रहा है। ऐसा माना जाता है कि आजकल की लाइफस्टाइल में शारीरिक सक्रियता कम हो गई है जिस कारण मोटापा बढ़ने लगा है। लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में पाया गया है कि यह धारणा बिल्कुल गलत है। पहले के मुकाबले वर्तमान समय में लोग ज़्यादा शारीरिक ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद मोटापा बढ़ रहा है जिसका सीधा संबंध हमारी बिगड़ती लाइफइस्टाइल है।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश भारत में आने वाले साल 2050 तक लगभग एक तिहाई आबादी मोटापे का शिकार हो सकती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक जिस प्रकार इस समय हर चार में से एक भारतीय मोटापे का शिकार है, यदि यही स्थिति रही तो 2050 तक 44.9 करोड़ लोग मोटापे की चपेट में आ जाएंगे। मोटापा बढ़ने के कारण कई तरह की बीमारियों का जन्म होता है जैसे कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ जैसी बीमारियों को मोटापे पे कंट्रोल करके हराया जा सकता है।

महिलाओं में मोटापा बढ़ने की वजह लिपोडिमा नामक बीमारी भी हो सकती है। जिस कारण कमर का हिस्सा, पैर और हाथों में सूजन आने लगती है। मरीज़ को लगता है कि उसका वज़न बढ़ रहा है और वह अपनी डाइट पर कंट्रोल करने लगता है, एक्सरसाइज़ शुरु कर देता है लेकिन इसके बावजूद वज़न बढ़ता जाता है। अमेरिकी मेडिकल सेंटर क्लीवलैंड क्लिनिक के अनुसार दुनिया में लगभग 11 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी की शिकार हैं। 

यह ऐसी बीमारी है जो धीरे धीरे बढ़ती जाती है और लास्ट स्टेज में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि मरीज़ का उठना बैठना और डेली रुटीन का काम करना भी नामुमकिन हो जाता है। हालांकि इस बीमारी का पता 1940 के दशक में ही लगा लिया गया था लेकिन इसके इलाज के लेकर भ्रम बना रहा। पिछले 15 सालों के भीतर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस पर ध्यान देना शुरु किया और डब्लूएचओ ने इसे 2019 में बीमारी के रुप में मान्यता दी। जिस कारण अभी तक लोगों में इस बीमारी को लेकर जागरुकता की कमी है। अभी तक इसकी कोई कारगर दवा ईजाद नहीं हो सकी है। हालांकि इस पर तेज़ी से रिसर्च हो रही है और उम्मीद है कि जल्द ही वैज्ञानिक इसकी कारगर दवा बनाने में सफल हो सकेंगें।

एक्सपर्ट के अनुसार जांघ और कूल्हे में दर्द, असमान रुप से वज़न का बढ़ना, जल्दी थकान आना, मामूली सी चोट पर भी निशान पड़ जाना, पूरे शरीर के मुकाबले कुछ हिस्सों का वज़न तेज़ी से बढ़ना यह सभी लक्षण लिपोडिमा के हो सकते हैं। महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन और मेनोपॉज़ के दौरान इस बीमारी के होने का ख़तरा सबसे अधिक होता है। शुरुआती स्टेज पर लिपोडिमा को नियमित खानपान और लाइफस्टाइल के ज़रिए कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन अंतिम स्टेज पर पहुंचने के बाद इसका केवल एक ही इलाज बचता है और वह सर्जरी। सर्जरी के द्वारा शरीर के जिन हिस्सों में अधिक चर्बी जमा हो जाती है उसे निकाला जाता है।

- सहीफ़ा ख़ान

- उप संपादक, आभा ई मैग्ज़ीन

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