शिक्षा की व्यापक अवधारणा
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शिक्षा
शिक्षा की व्यापक अवधारणा

शिक्षा क्या है?

और ज्ञान किसे कहते हैं?

शिक्षा और ज्ञान में क्या फ़र्क़ और इनका आपसी रिश्ता क्या है?

पढ़ाई लिखाई का मक़सद क्या है?

ज्ञान प्राप्त करने से इंसान में क्या परिवर्तन आता है?

क्या वर्तमान शिक्षा व्यवस्था छात्रों एवं छात्राओं में वो सकारात्मक परिवर्तन ला पाने में सक्षम है जिसकी उससे अपेक्षा की जाती है?

ज्ञान (जिसे उर्दू व अरबी में इल्म कहते हैं) का अर्थ है जानना और समझना। जीवन एवं संसार की वास्तविकताओं को जानना, सच्चाइयों को समझना, मानव व्यवहार को समझना, ज़हन में उठने वाले प्रश्नों के उत्तर ढूंढना, जानना और इससे आगे बढ़कर अज्ञानता को जानना। इंसान के ज्ञान की एक उच्च सतह यह भी है कि वह अपनी अज्ञानता को पहचान ले।

इंसानों ने जो कुछ अपने ऐतिहासिक अनुभव और अपनी ललक व जिज्ञासा से सीखा है, ज्ञान अर्जित किया है या ईश्वर ने अपने दूतों के माध्यम से जो वास्तविक ज्ञान इंसानों तक भेजा है उसे नई पीढ़ी तक हस्तांतरित करने की प्रक्रिया (प्रोसेस) का नाम शिक्षा है। इसीलिए हर ज़माने में, हर समाज में हर विचारधारा ने अपने अनुकूल शिक्षा का अपना विशेष मॉडल विकसित किया। आज भी हर देश ने अपने विशेष सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं आर्थिक पृष्टभूमि को ध्यान में रखते हुए और अपनी राष्ट्रीय आवश्यकताओं का ख़्याल रखते हुए अपनी विशेष शिक्षा व्यवस्था विकसित की है।

मोहनदास करमचंद गांधी जी ने शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा था कि “सच्ची शिक्षा वही है, जो शरीर, मन और आत्मा – तीनों का समान रूप से विकास करे।” इस कथन को जब हम समझने और डिकोड करने का प्रयास करते हैं तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि सच्ची और वास्तविक शिक्षा वही है जो इंसान के शरीर यानि की उसकी शारीरिक स्वास्थ्य, क्षमताओं, महत्त्वकांशाओं को विकसित करने में पूर्ण भूमिका निभाए।

इंसान के मन, मस्तिष्क, उसके विचार, उसके सोचने के अंदाज़, सही और ग़लत में अंतर कर सकने की क्षमता को विकसित करें और उसे समाज और समूहों के अनुचित दबाव से मुक्ति प्राप्त कर दें।

इंसान की आत्मा शुद्ध हो, उसका परमात्मा से संबंध मज़बूत होशरीर से ऊपर उठकर जो इंसान की आश्यकताएं हैं उस पर भी सोचें और आत्मा की बेहतरी के लिए प्रयत्नशील रहें। अब हम अंत में ज्ञान, शिक्षा एवं इससे संबंधित वर्तमान परिदृश्य का संक्षिप्त रूप से अवलोकन करने का प्रयास करेंगे।

कबीरदास का एक प्रसिद्ध दोहा है:-

पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

केवल पुस्तकों का अध्ययन करते-करते, संसार के असंख्य लोग जीवन बिता देते हैं, परंतु वे वास्तविक "पंडित" (ज्ञानी) नहीं बन पाते। कबीर जी कहते हैं कि पढ़-पढ़ कर (मात्र किताबी ज्ञान से) कोई वास्तविक ज्ञानी नहीं बनता। कारण यह है कि किताब में मौजूद ज्ञान सिर्फ़ पढ़ लेने और याद कर लेने मात्र से कोई परिवर्तन नहीं आता जब तक कि इंसान का मन मस्तिष्क एवं आत्मा में परिवर्तन नहीं आए। अगली लाइन में कबीर जी कहते हैं कि ढाई अक्षर का शब्द "प्रेम" जब मानव अस्तित्व का अभिन्न अंग बनता है तो यह इंसान के ज्ञानी होने का वास्तविक परिचायक है। क्योंकि बिना प्रेम, करुणा और दया के कैसा ज्ञान?

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था स्टूडेंट्स को एक ऐसी दौड़ और होड़ में झोंक दे रही है जिसमें:-

गला काट प्रतियोगिता है, (सहयोगिता नहीं)

मात्र अधिकाधिक मार्क्स प्राप्ति के लिए संघर्ष है, (सीखने पर ज़ोर नहीं)

सिर्फ़ किताबी रट्टा मारी है, (समझने पर ध्यान नहीं और व्यवहारिक ज्ञान एवं कौशल की कमी)

कोचिंग का गोरखधंधा है, (बच्चों पर अधिक दबाव)

छात्रों के जज़्बात और बचपने के साथ खिलवाड़ और एक ही ढर्रे पर चलने का प्रचलन है, (रुचि और रचनात्मकता का अभाव)

पढ़ाई सिर्फ़ नौकरी के लिए है, (चरित्र निर्माण कोई मक़सद ही नहीं)

ऐसे में निदा फ़ाज़ली का मशहूर शेअर, हमें बच्चों के सिलसिले में अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए प्रेरित करता है, कि:-

बच्चों के छोटे हाथों  को  चाँद सितारे  छूने दो

चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे।

मतलब यह है कि बच्चों के अपने अरमान और अपनी उमंगे होती है। प्रत्येक बच्चे को ऐसा माहौल मिलना चाहिए कि वह अपने आप को, अपनी छुपी प्रतिभा को, अपनी विशिष्ट क्षमता को पहचान सकें, विकसित कर सकें और समुदाय, देश एवं मानवता के विकास में अपना भरपूर योगदान दे सके। चांद सितारे छूना एक प्रतीक है बड़े उद्देश्य का, उच्च लक्ष्य का। अगर इन बच्चों पर बहुत ज़्यादा दबाव डाला गया, इनकी विशेष आवश्यकताओं का ख़्याल नहीं रखा गया तो ये भी हम जैसे हो जाएंगे। हम कैसे हैं ये हम अच्छे से जानते हैं।


दीन-ए-इस्लाम इल्म व तालीम (ज्ञान एवं शिक्षा) के संबंध में एक स्पष्ट अवधारणा रखता है। ज्ञान का वास्तविक स्रोत ईश्वर की ज़ात है। उसने इंसान को इस संसार में परीक्षा के लिए भेजा कि कौन सुंदर कर्म करता है। सोचने समझने एवं संवेदना के लिए लिए इंसान को एक खुला दिमाग और धड़कता हुआ दिल दिया। लेकिन साथ ही एक नफ्स (बुराई की ओर ले जाने वाला और अच्छाई की तरफ़ झुकाव रखने वाला रुझान) दे दिया। अब इंसान का इम्तिहान है कि कैसे वह इस संसार के झमेलों और बखेड़ों से उलझता हुआ, चुनौतियों का सामना करते हुए, ज्ञान अर्जित करते हुए, बेहतर कर्म करते हुए इस दुनिया से जाता है। इसी आधार पर हमेशा हमेश के जीवन की सफ़लता या नाकामी का निर्णय होगा।

पहली क़िस्त...

- अनवर काठात

- स्वतंत्र लेखक, ब्यावर, राजस्थान

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