आर्थिक जगत के क्रान्ति दूत – हज़रत मुहम्मद (स०अ०व०)
विश्वविख़्यात लेखक माइक हार्ट ने अपनी पुस्तक द
हन्ड्रेड में पैगम्बर मुहम्मद सल्ल० को इतिहास की सबसे प्रभावशाली हस्ती के रुप
में उल्लिखित करके ईमानदारी का सबूत दिया है। वास्तव में संपूर्ण एवं समग्र
क्रान्ति के दूत के रुप में आप सल्ल० एक मात्र ऐसे विश्वनायक हैं जिन्होंने 23
वर्ष की छोटी सी अवधि में बिल्कुल निराला समाज खड़ा कर दिया। आपके आह्वान पर विचार
बदले, धारणाएं बदलीं, स्त्री-पुरुष बच्चे और गुलाम बदले, यहां तक कि लंबे समय से
चले आ रहे संस्कार और रीति रिवाज बदल गए। इस बदलाव के पीछे थी वह मानसिक क्रान्ति
जिसकी बुनियाद थी एकेश्वरवाद तथा परलोक में जवाबदेही का एहसास।
आप सल्ल० की सीरत पर अगर विशुद्ध आर्थिक दृष्टिकोण से नज़र
डालें तो पता चलता है कि ईश्वरीय विधान, पवित्र कुरआन के प्रकाश में अपनी
तत्वदर्शिता के साथ आप सल्ल० ने एक अत्यन्त संतुलित आर्थिक व्यवस्था लागू की
जिसमें मानव कल्याण, आर्थिक विकास एवं स्थायित्व पाया जाता है। जिसमें नैतिकता,
विश्व सहकारिता, गरीबी उन्मूलन, समता, न्याय, आर्थिक उन्नति सब कुछ मौजूद है। इस
संक्षिप्त चर्चा में उनके द्वारा लागू की गई आर्थिक व्यवस्था (Economic System) के कुछ बिंदुओं पर निम्न पंक्तियों में प्रकाश डाला गया हैः-
1) नैतिकताः- मानवीय व्यवहार
सामाजिक मान्यताओं एवं मूल्यों से नियंत्रित होता है। आर्थिक क्रियाओं को इससे अलग
करके देखना सही नहीं है। दुर्भाग्यवश आधुनिक अर्थशास्त्र ने नैतिक मूल्यों के
प्रति तटस्थ रहने का सिद्धांत अपनाया जिसके परिणामस्वरुप आर्थिक क्षेत्र में
स्वार्थपरता शोषण तथा अन्याय को बढ़ावा मिला। पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों को भी अब
नैतिक मूल्यों के महत्व का आभास होने लगा है। यह अलग बात है कि परलोक की अवधारणा
के अभाव में ईमानदारी मात्र एक नीति बन कर रह गई है। पैंगबर
मुहम्मद सल्ल० ने नैतिकता तथा ईमानदारी को आस्था से जोड़ दिया और नैतिकता के पालन
को आर्थिक गतिविधियों में भी अनिवार्य किया।
2) सामाजिक न्यायः- पैंगबर मुहम्मद सल्ल० द्वारा लागू की गई आर्थिक स्कीम सामाजिक समता एवं न्याय
पर आधारित है। इसमें प्रत्येक प्रकार का ज़ुल्म, अत्याचार और शोषण समाप्त हो जाता
है और लोग स्वेच्छा से एक दूसरे के साथ हमदर्दी का व्यवहार करते हैं। आवश्यकता
पड़ने पर न्याय स्थापना के लिए जनहित में आदेशों को बलपूर्वक भी लागू किया जा सकता
है।
3) साधनों पर विशेषाधिकार नहीः- धरती तथा उसमें मौजूद संसाधन ईश्वर ने मानव-जाति के लिए बनाए हैं, इसलिए उनसे
लाभ उठाना हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस अधिकार में सभी लोग समान रुप से
भागीदार हैं। किसी व्यक्ति को इस अधिकार से ना तो वंचित किया जा सकता है और ना ही
किसी को दूसरे पर वरीयता दी जा सकती है। इस प्रणाली में व्यक्तिगत, वर्गीय,
क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय विशेषाधिकार का कोई स्थान नहीं है। अल्लाह की धरती पर
मानव-जाति को जीविकोपार्जन के अधिक से अधिक अवसर प्राप्त होने चाहिए।
4) संपत्ति पर स्वामित्वः- इस प्रणाली में लोगों के संपंत्ति पर स्वामित्व के अधिकार को मान्यता दी गई
है, साथ ही इस अधिकार पर अन्य लोगों तथा समाज के हित में कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए
हैं। प्रत्येक व्यक्ति के माल में उसके नातेदारों, पड़ोसियों, मित्रों और अन्य
असहाय व निर्धन समेत पूरे समाज का हक भी रखा गया है। संपत्ति का अधिकार व्यक्तियों
में आर्थिक क्रियाओं के लिए प्रेरणादायक होता है तथा दूसरी ओर इस पर लगाए गए
प्रतिबंधों के कारण समाज पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के प्रति कवच का कार्य
करता है।
5) धनोपार्जनः- धन कमाने के तरीकों में इस्लाम ने जितनी बारीकी से उचित व अनुचित का वर्गीकरण
किया है उतना विश्व के किसी अन्य कानून में देखने को नहीं मिलेगा। वह चुन चुनकर
ऐसे सभी साधनों को अवैध घोषित करता है जिनके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों
और पूरे समाज को नैतिक एवं आर्थिक नुकसान पहुंचा कर अपनी रोज़ी कमाता है। शराब और
अन्य नशीली वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय, अश्लीलता एवं नाच गाने का धंधा, जुआ,
सट्टा, लॉटरी, पूर्वानुमान और धोखे पर आधारित सौदे समेत ऐसे समस्त व्यापारिक तरीके
जिनमें एक पक्ष का लाभ निश्चित और दूसरे का संदिग्ध हो, जीवन की आवश्यक वस्तुओं की
ब्लैक मार्केटिंग, ब्याज चाहे उसकी दर कम हो या ज़्यादा और चाहे व्यक्तिगत कर्ज़
पर हो या व्यापारिक कर्ज़ पर, सभी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है।
6) उपार्जित धन के अनुचित व्यय पर भी रोकः- इस व्यवस्था में व्यक्ति को नियमित किया गया है कि वह अपनी वैध कमाई को उचित
ढंग से खर्च करे। एक ओर तो कंजूसी और सन्यास की मनाही है दूसरी ओर अपव्यय एवं
फिज़ूलखर्ची करने वालों को शैतान का भाई कहा गया है। दोनों स्थितियों के बीच एक
संतुलित जीवनशैली का सुंदर नक्शा पेश किया गया है। धनवानों को आदेश दिया गया है कि
उनके धन में वंचित लोगों का विधिवत अधिकार है। इस प्रकार अमीर व गरीब के बीच की
खाई को पाटने का फॉर्मूला समाज को दे दिया गया। पैगंबर मुहम्मद सल्ल० ने अपने जीवन
काल मे इसे पूर्ण रुप से लागू किया जिसका अनुसरण खलीफ़ाओं ने भी किया।
7) ज़कात की अनिवार्यताः- इस्लाम का एक क्रान्तिकारी कदम ज़कात को अनिवार्य घोषित करना है जो ईश्वरीय
विधान द्वारा किया गया है। यह संपन्न लोगों के संचित माल पर एक साल में 2.5
प्रतिशत तथा 10 प्रतिशत भी है। यह धन निर्धनों, अनाथों तथा आर्थिक दौड़ में पिछड़
गए लोगों की सहायता के लिए होता है। यह एक ऐसा ‘सामूहिक बीमा’ है जिसके होते हुए कोई व्यक्ति जीवन की मूल
आवश्यकताओं (Basic Need) से कभी भी वंचित नहीं रह सकता। ज़कात में ‘टैक्स की भावना’ नहीं होती, बल्कि इसमें इबादत और ईशभक्ति
होती है। इसके द्वारा अमीर और गरीब के बीच की आर्थिक, मानसिक एवं सामाजिक दूरी कम
हो जाती है। इस अनिवार्य अंशदान के अतिरिक्त ऐच्छिक दान पुण्य करने के लिए भी
धनवानों को उभारा गया है।
8) ब्याज पर पूर्ण रोकः- ईश्वरीय आदेशों के तहत हज़रत मुहम्मद सल्ल० ने प्रत्येक प्रकार के सूदी लेन-देन को पूरी तरह समाप्त कर दिया। व्यक्तिगत
कर्ज़ ब्याज रहित होंगे। व्यापार व व्यवसाय में धन लगाया जा सकता है लेकिन व्यापार
के लाभ एवं हानि में भागीदार होना पड़ेगा। ब्याज पूंजीवादी व्यवस्था का ऐसा हथियार
है जिसने गरीबों, मेहनतकशों तथा आम जनमानस का खून ज़ोंक की तरह चूसा है जो कि
मानवता विरोधी है। स्वार्थ कंजूसी, पत्थरदिली इसी से आती है। सूद खाने वाला मानसिक
रुप से विक्षिप्त हो जाता है। ब्याज आधारित व्यवस्था में सामाजिक तथा मानवीय
मूल्यों का पतन हो जाता है। विशुद्ध आर्थिक दृष्टिकोण से भी ब्याज, अर्थव्यवस्था
के लिए ज़हर समान है। आज विश्व स्तर पर गरीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, आर्थिक असंतुलन
के लिए ब्याज आधारित वित्त व्यवस्था ही ज़िम्मेदार है।
9) सबसे बड़ा कारनामाः- मानवता के महान हितैषी हज़रत मुहम्मद सल्ल० का सबसे बड़ा कारनामा यह है कि
उन्होंने प्रवचन और उपदेश देने को ही पर्याप्त नहीं समझा बल्कि उन सिद्धांतों को
धरती पर पूरी तरह लागू कर दिखाया भी। दुःख से कराहती दुनिया को इस्लाम की ठंडी
छांव में सुख शांति और अमन के साथ बिठा दिया।
डॉक्टर फ़रहत हुसैन
रिटायर्ड प्रोफेसर, रामनगर,
उत्तराखंड