बूढ़ी नानी की अक्लमंदी
कहानी
आज़ादी के पहले एक बार ऐसा हुआ कि ज़मीर साहब के नाना जान परिवार समेत लाहौर जाने का इरादा करने लगें। उनके चचेरे छोटे भाई अफसर खां जो पढ़ने और खेलने में बहुत होशियार थे मुहल्ले की एक गली में गिल्ली डंडा खेल रहे थे। जैसे ही उन्होंने गिल्ली में डंडा मारा, गिल्ली जिस दिशा में गई, उसी दिशा से एक गोरा चिट्टा अंग्रेज़ पुलिस वाला आ रहा था। गिल्ली जाकर सीधा उसके माथे पर लग गई। गिल्ली इतनी ज़ोर से टकराई की कोई नस फट गई और माथे से खून बहने लगा।
बस फ़िर क्या था, गोरा गुस्से में आग बबूला हो गया और अफ़सर खां के पीछे दौड़ पड़ा। अफ़सर खां, “अम्मी जान बचाओ” “भाई जान बचाओ” “अब्बा जान बचाओ”... चिल्लाते हुए वहां से भागे। गोरा भी अंग्रेज़ी में “इडिएट” “बास्टेड” “इंडियन डॉग” आदि शब्द बड़बड़ाते हुए अफ़सर खां के पीछे पीछे दौड़ा चला जा रहा था।
नाना जान के परिवार की झोपड़ियां जिस परिसर में बनीं थी उसमें से एक झोपड़ी का दरवाज़ा खुला हुआ था। अफ़सर खां उसी दरवाज़े में घुस गये और पीछे के दरवाज़े से निकल कर भाग गए।
उस कमरे में ज़मीर साहब की नानी गला साफ़ कर रही थीं। शोर सुनकर बाहर निकलीं तो देखा कि एक गोरा सिपाही पिस्तौल लेकर सामने खड़ा अंग्रेज़ी में अंडबंड बके जा रहा है। उसके हाथ में पिस्तौल देखते ही उनके मुंह से बड़ी ज़ोर से “अरे अल्लाह रे” की चीख़ निकलीं और वह बेहोश होकर ज़मीन पर धड़ाम से गिर पड़ीं। चीख और गिरने की आवाज़ सुनकर कई औरतें और मर्द अपने घरों से बाहर निकल आए।
गोरा उनके बेहोश पड़े जिस्म के नज़दीक खड़ा था और उसके सिर से बहते हुए ख़ून की बूंदें नानी के सीने पर गिर कर चारों ओर फ़ैल गई जिसकी वजह से उनका दुपट्टा ख़ून से रंगा हुआ दिखाई देने लगा। यह माजरा देख लोगों के समझ में आया कि गोरे ने नानी को गोली मार दी है, सब लोग ख़ून ख़ून चिल्लाने लगे। इधर लोग ख़ून ख़ून चिल्ला रहे थे तो उधर गोरा सिपाही अंग्रेज़ी में अपने सिर पर लगी चोट के बारे में बता रहा था जो कि किसी के समझ में नहीं आ रहा था।
भीड़ और शोर शराबा देखकर गोरा मौके से भागने पर मजबूर हो गया। उसके जाते ही लोग नानी के करीब आए और देखा कि गोरे के सिर से बहने वाले ख़ून से नानी के कपड़े लाल हो गए हैं। गोरे के जाते ही नानी झटपट उठकर बैठ गईं। ना वह बेहोश हुई थीं और ना ही उनको कहीं चोट लगी थी। उनको ठीक ठाक देखकर लोगों की जान में जान आयी।
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लेकिन किसी को यह समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर माजरा क्या है? किसी ने अफ़सर खां को भागते हुए नहीं देखा लेकिन गोरे के हाथ में पिस्तौल लहराते और अंग्रेज़ी में गिटर पिटर करते हुए सबने सुना था। सबको यही लगा कि गोरे पुलिस वाले ने नानी को किसी बात से नाराज़ होकर गोली मार दी है और नानी टें बोल गईं।
सबके ख़ामोश हो जाने पर नानी ने बताया कि वे गल्ला साफ़ कर रही थीं। कोई लड़का उधर से “अम्मी जान बचाओ” “भाई जान बचाओ” “भाभी जान बचाओ” चिल्लाता हुआ अगले दरवाज़े से घुसा और पिछले दरवाज़े से भाग गया। बाहर निकलकर देखा तो गोरा पिस्तौल लिए खड़ा अंग्रेज़ी में बड़बड़ा रहा था। यह सब देख उन्हें ये समझने में देर नहीं लगी कि मुहल्ले के किसी लड़के ने गोरे को चोट पहुंचा दी है। उन्हें गोरे को भगाने का कोई तरीका नहीं सूझा तो वे बेहोशी का बहाना बनाकर गिर पड़ीं।
सब लोग नानी की इस अक्लमंदी पर खुश हुए, लेकिन अब सबके होठों पर एक ही सवाल था कि वह लड़का आखिर कौन था जिसके खून का प्यासा गोरा सिपाही था? तभी नाना जान हांफते भागते हुए आए। किसी ने उनको ख़बर दे दी थी कि नानी को गोली लग गई है, लेकिन जब उन्होंने देखा कि नानी सही सलामत हैं तो उनकी जान में जान आयी।
अभी लोग उन्हें सारी बात बता रहे थे कि गोरा अपने साथ छह हथियारबंद सिपाहियों को लेकर आ गया। साथ के सिपाही हिंदुस्तानी थे और हिंदी अंग्रेज़ी दोनों ज़बानों को समझते थे। उन्होंने सारी बात बता कर उस लड़के का नाम व पता पूछा जिसकी गिल्ली से गोरे को चोट लगी थी। लेकिन गोरा यह बात नहीं समझ सका कि हिंदी में उन सिपाहियों ने इशारा कर दिया था कि कोई लड़के का नाम नहीं बताएगा।
और हकीकत भी यही थी कि किसी को उस लड़के का नाम मालूम भी नहीं था। सबने उन लोगों के ज़ुबानी गोरे को यकीन दिलाया कि वे लोग पता करके उस लड़के को पुलिस चौकी में पेश कर देंगे। उन पर भरोसा कर के गोरे और उसके साथी वहां से चले गए।
जब गोरा और उसके साथी वहां से चले गए तो एक लड़के ने अपनी आंखों देखी दास्तान सुना दी कि किस तरह अफ़सर खां की गिल्ली से गोरे को चोट लग गई थी। नाना जान ने फिर उनके मां बाप को इस बात से आगाह कर दिया कि गोरा किसी से भी बदला ले सकता है। इसके बाद अफ़सर खां की तलाश शुरु हो गई। बहुत ही होनहार लड़का था इसलिए सबको चिंता हो रही थी कि उसका कैरियर चौपट ना हो जाए।
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अगले दिन नाना जान के एक दोस्त उनके पास आए। उनका लड़का पुलिस महकमे में नौकरी करता था। उन्होंने बताया कि गोरो ने ख़ुफ़िया तरीके से जानकारी हासिल कर ली है कि आपके चचेरे भाई ने जान बूझकर उसको गिल्ली मारी थी और आपके घर में घुस गया था। उसे सब मालूम हो गया है कि किस तरह से आपकी बीबी ने उसे छिपा लिया और बेहोशी का नाटक कर के गोरे को वापस जाने पर मजबूर किया।
अब वह आपके सारे खानदान का दुश्मन हो गया है और किसी ना किसी झूठे मुकदमे में फंसाने की तैयारी कर रहा है। नाना जान ने घर जाकर सारी बात अपने परिवार वालों को बतायी और सभी को घर छोड़ रिश्तेदारी में जाने की हिदायत दी लेकिन वे खुद व उनकी बीवी वहीं रुके रहे।
एक दो दिन बाद पुलिस आयी और बागियों की मदद करने के जुर्म में नाना जान को पकड़ ले गई। दो दिन पुलिस चौकी में बिठाकर पूछताछ करती रही। उनके एक पड़ोसी राय साहब के अंग्रेज़ों से अच्छे संबंध थे। वे उनको समझा बुझाकर और इस शर्त पर नाना जान को छुड़ा लाए कि उस लड़के को ढूंढकर जल्द ही पुलिस के सामने पेश कर देंगे। वह गोरा सिपाही इस बात को मानने को तैयार नहीं था कि गिल्ली जान बुझ कर नहीं मारी गई और अनजाने में उसके माथे पर लग गई।
यह घटना आज़ादी के कुछ दिन पहले की है। उस समय आज़ादी की लड़ाई ज़ोरों पर थी और अंग्रेज़ों की ज़ुल्म की दास्तां भी ज़ोर शोर से चल रही थी। इसलिए हर आम आदमी डरा सहमा रहता था, नाना जान तो बहादुर और वतन परस्त इंसान थे, लेकिन परिवार और बच्चों की फिक्र ने उन्हें कमज़ोर कर दिया था।
कुछ दिनों के बाद ख़बर मिली कि उनके चचेरे भाई अफ़सर खां जो इन सारी मुसीबत की जड़ थे, एक रिश्तेदार के साथ लाहौर चले गए। परिवार के लोगों ने मश्विरा किया कि क्यों ना हम सब लोग वहीं चलें क्योंकि गोरा और उसके साथ ख़ार खाए बैठे हैं और परेशान करने का बहाना ढूंढ रहे हैं। हमारे बच्चों को यहां रोज़गार भी नहीं मिल पा रहा है। वहां मुसलमानों की अक्सरियत है तो वे हमारी मदद करेंगें।
सबके सलाह मश्विरे से नाना जान भी लाहौर जाने को मजबूर होकर तैयारी और इंतज़ाम में जुट गए, लेकिन उनके हिंदू दोस्तों ने उन्हें पाकिस्तान नहीं जाने दिया और आखिरकार नाना जान हिंदुस्तान के ही होकर रह गए।
ज़हीर ललितपूरी
कवि एवं साहित्यकार