इंकलाब-ए-ईरान – इस्लामी क्रांति (1979)
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इतिहास
इंकलाब-ए-ईरान – इस्लामी क्रांति (1979)

1970 के दशक के अंत तक ईरान में एक नए इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई और वहां की जनता ने पहलवी राजवंश की सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंका। इस इंकलाब की यह ख़ासियत रही कि चंद घटनाओं को छोड़ यह पूरी तरह से अंहिसक था। आइए जानते हैं ईरान की इस इस्लामी क्रांति के बारे में विस्तार सेः-

फारस या ईरानः

ईरान को पहले पश्चिमी दुनिया में फारस के नाम से जाना जाता था और यही वहां का पारंपरिक नाम था लेकिन 1935 में वहां के शासक रज़ा पहलवी ने नाम बदलकर ईरान रख दिया और तब से सभी आधिकारिक कामों में ईरान शब्द का इस्तेमाल होने लगा। 1979 से पहले, शाह के शासन में धर्मनिरपेक्ष प्रवृत्ति प्रचलित थी। क्योंकि शाह पहलवी पूरी तरह से पश्चिमी समर्थक शासक था और उसने एक ईरान के सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को कुचलकर नए समाज का निर्माण करने का प्रयास किया। जिस कारण ईरान की जनता में अंसतोष पैदा होने लगा और वहां के धर्मगुरु भी नाराज़ हो गए जो कि इस्लामी क्रांति का मुख्य कारण बना। 

ईरानी क्रांति कई कारकों से प्रेरित थी जिसने समाज को व्यापक रुप से प्रभावित किया। देश की आर्थिक स्थिति भी क्रांति का एक बड़ा कारक बनी क्योंकि तीव्र विकास और उच्च व्यय ने मुद्रास्फीति को जन्म दिया और जीवन स्तर को प्रभावित किया। रोज़गार की उच्च दर के बावजूद, शाह शासन के तहत राजनीतिक भागीदारी नगण्य थी और सेंसरशिप एवं राजनीतिक दमन ने अंसतोष को और बढ़ावा दिया। इसके अलावा, आयतुल्लाह ख़ुमैनी का प्रभाव बढ़ा और उन्होंने धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों और धार्मिक समूहों, दोनों का समर्थन जुटाया। अंततः शाह को सत्ता से बेदखल कर दिया गया और एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई।

क्रांति से पहले ईरान कैसा था?

शाह के संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल के साथ अच्छे संबंध थे और उनके शासनकाल में ईरानी समाज पर पश्चिमी और धर्मनिरपेक्ष प्रभाव पड़ा। आधुनिकीकरण कार्यक्रम इस्लामी विचारधारा के विरुद्ध थे। क्रांति से पहले, ईरान पर मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी के नेतृत्व वाली राजशाही का शासन था। उस समय, शाह पूरी तरह अमेरिका के समर्थक थे और पश्चिमीकरण को बढ़ावा दे रहे थे, जिसके बारे में कई ईरानी मानते थे कि यह उनकी स्वदेशी संस्कृति और मूल्यों को कमज़ोर कर रहा था। 

इन प्रथाओं ने पहलवी राजवंश के प्रति अंसतोष को जन्म दियाः

शाह की आर्थिक नीतियों के कारण 1970 के दशक के अंत तक अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी और मुद्रास्फीति के कारण जीवन-यापन की लागत बढ़ गई थी। ऐसे में देश भर में ईरानी शासन के विरुद्ध अंसतोष फैलने लगा। जनता पहलवी के शासन को आर्थिक वादों में विफल एवं भ्रष्टाचार में लिप्त मानने लगी।

इतना ही नहीं इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा दमनकारी नीति अपनाई जाने लगी। सरकार विरोधियों की सामूहिक हत्या, यातना एवं कारावास के लिए अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित गुप्त पुलिस का इस्तेमाल किया गया। शाह की विचारधारा थी कि पश्चिमीकरण द्वारा ही ईरान का विकास संभव है। इस विचारधारा को ईरान की जनता ने नकार दिया और उन्हें लगा कि ईरान को इस्लाम की ओर लौट आना चाहिए। 

इसके लिए अयातुल्लाह ख़ुमैनी के नेतृत्व वाले शिया मुस्लिमों ने सरकार का कड़ा विरोध किया। सरकार के विरुद्ध उनके तर्कों का आधार सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण था। उनका मानना था कि पश्चिमी मूल्यों को लोकप्रिय बनाकर देश व इस्लामिक मूल्यों को बर्बाद किया गया है। अयातुल्लाह ख़ुमैनी की लोकप्रयिता दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी। ख़ासकर वे युवाओं एवं छात्रों के बीच लोकप्रिय नेता बनकर उभरे। धीरे धीरे ईरान के मुस्लिम युवा एवं छात्र इस्लामी राज्य के विचार का समर्थन करने लगे। 

क्रांति की शुरुआतः

1970 के दशक की शुरुआत में ईरान की अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज हुई और शाह की फिज़ूलखर्ची की तीखी आलोचना होने लगी। कहा जाने लगा कि ऐसे समय में जब देश की अधिकांश जनता गरीबी में जी रही है ऐसे में शाह और उनके परिवार के शाही ठाठ बाट में कोई कमी नहीं आयी बल्कि जनता की मेहनत का ढेर सारा पैसा उनके रहन सहन में बर्बाद किया जा रहा है। इस प्रकार धीरे धीरे अंसतोष फैलता चला गया। हालांकि शाह सरकार ने हर प्रकार के प्रतिरोध को दबा दिया और अयातुल्लाह ख़ुमैनी को देश से निर्वासित कर दिया। लेकिन इसके बावजूद विरोध की आवाज़ें बढ़ती चली गईं। बाज़ारो में खुलेआम ख़ुमैनी के भाषणों के ऑडियो कैसेट बिकने लगे। 1977 में ख़ुमैनी के बेटे की मौत हो गई जिसका आरोप शाह की अमेरिकी प्रशिक्षित पुलिस पर लगाया गया। इस कांड से ख़ुमैनी की पॉपुलैरिटी मज़ीद बढ़ गई। जिसके बाद कई सरकार विरोधी संगठन खुलकर सामने आ गए और शाह सत्ता का खुलेआम विरोध होने लगा।

जनवरी 1978 में छात्रों द्वारा तेहरान के एक अख़बार में ख़ुमैनी की आलोचना में छपे एक लेख का ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरु हुआ। जिसको कंट्रोल करने के लिए सरकार ने कई छात्रों की हत्या करवा दी। जिसके बाद देशभर में सरकार के ख़िलाफ विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। इसके साथ ही साथ सरकार की पश्चिमी नीतियों का खुलेआम विरोध शुरु हो गया। सिनेमाघरों और बार जैसे पश्चिमी कल्चर का अंग माने जाने वाले स्थान जनता द्वारा तोड़े जाने लगे। विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई मौतों ने इस आंदोलन को और उग्र कर दिया। सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को कुचलने का बहुत प्रयास किया लेकिन आखिरकार 16 जनवरी 1979 को शाह पहलवी को ईरान छोड़कर भागना पड़ा। जिसके बाद फरवरी 1979 में ख़ुमैनी सोलह साल बाद ईरान वापस लौट आए।

उनका पूरा नाम अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी था और वह एक प्रसिद्ध शिया मुस्लिम धर्मगुरु थे। इतिहास में उन्हें ही इस क्रांति का जनक माना जाता है। उन्होंने इस क्रांति का नाम इंकलाब-ए-ईरान दिया था। पहलवी राजवंश के पतन के साथ यह क्रांति समाप्त हो गई तथा इसके परिणामस्वरुप ईरान में राजतंत्र की जगह इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई। अप्रैल 1979 में देशभर में जनतम संग्रह करवाया गया जिसमें ख़ुमैनी ही इस इस्लामी गणराज्य के सर्वोच्च नेता (रहबर) चुने गए। उन्होंने इस्लामी कानून विशेषज्ञों की मदद से एक इस्लामी शासन की शुरुआत की तथा देश का एक नया संविधान स्थापित किया।

इस क्रांति का दुनिया भर में असर

ईरान की इस इस्लामी क्रांति ने पूरी दुनिया को चौंका दिया क्योंकि इसकी ख़ासियत यह थी कि यह आर्थिक मुद्दों के कारण ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक सुधारों के प्रयासों को लेकर अस्तित्व में आयी थी। इससे पहले तक जितनी भी ऐतिहासिक क्रांतियां दुनिया भर में उत्पन्न हुई थीं वे सब लगभग आर्थिक सुधारों एवं आर्थिक हित को लेकर ही शुरु हुई थीं। लेकिन ईरान की जनता ने इस क्रांति के द्वारा ना केवल आर्थिक सशक्तिकरण को मुद्दा बनाया बल्कि अपने देश में बढ़ रहे पश्चिमी प्रभाव को भी रोक दिया। देश में इस्लामी राज्य का असर दिखाई देने लगा। महिलाओं एवं छात्राओं के लिए ड्रेसकोड लागू कर दिया गया तथा पहलवी राज में हुए ईरानी समाज का पश्चिमीकरण अब समाप्त होने लगा। इन सामाजिक परिवर्तनों ने यूरोप समेत पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। ईरान में हो रहे इस परिवर्तन से इराक को ख़तरा महसूस होने लगा तथा इराक में किसी इस्लामी क्रांति की संभावना को खत्म करने के लिए इराक ने 1980 में ईरान पर हमला कर दिया। यह हमला लगभग आठ साल तक चला। 

वर्तमान ईरान का भू-राजनीतिक परिदृश्यः

1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता खुमैनी की मुत्यु हो गई। जिसके बाद अयातुल्लाह अली हुसैनी ख़ामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता चुने गए और उन्होंने पदभार संभाला। उनके शासन में भी उस क्रांतिकारी विचारधारा को समर्थन मिला जिसकी शुरुआत ख़ुमैनी ने की थी। ख़ामेनेई ने ईरान रिवोल्यूशनरी गॉर्ड्स को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया तथा ईरान रिवोल्यूशनरी गॉर्ड्स एक राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति के रुप में उभरे। अमेरिका द्वारा ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद ईरान आर्थिक रुप से सशक्त होता चला गया। आज भी ईरान की अर्थव्यवस्था काफी हद तक अपने यहां पाये जाने वाले तेल स्त्रोत पर निर्भर है। हालांकि विपक्षियों एवं पश्चिमी समर्थकों द्वारा ईरान के कड़े इस्लामी कानूनों का कड़ा विरोध किया जाता है लेकिन इसके बावजूद ईरान आज भी मज़बूती के साथ एक इस्लामी राज्य बना हुआ है।


सहर नज़ीर

स्वतंत्र पत्रकार, बरेली, उत्तर प्रदेश

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