देश से विलुप्त होती महिला सुरक्षा! कर्नाटक और उड़ीसा की बदहाल स्थिति
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समाज
देश से विलुप्त होती महिला सुरक्षा! कर्नाटक और उड़ीसा की बदहाल स्थिति

आज जब हम महिला सशक्तिकरण और भारत के विश्वगुरु होने का डंका पीटते हैं तो उसी भारत की दूसरी रोती बिलख़ती तस्वीर हमें आईना दिखाने के लिए हमारी आंखों के सामने आकर खड़ी हो जाती है। एक ओर महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं तो दूसरी ओर समाज में उनके लिए सुरक्षा के साथ रहने की स्थिति निरंत्तर घटती जा रही है। 

कर्नाटक का ताज़ा मामला झकझोर कर रख देने वाला है। यहां के मंगलुरु शहर में मौजूद एक शिव मंदिर के कैंपस में कई लड़कियों और महिलाओं के साथ कथित रेप की घटना सामने आई है। यहां के एक सफाईकर्मी के बयान पर हड़कंप मच गया। उस सफाईकर्मी ने आरोप लगाया है कि 1998 से 2014 के बीच कई नाबालिग लड़कियों और महिलाओं के शवों को जबरन दफनाने एवं जलाने के लिए उसे मजबूर किया गया। ऐसा ना करने पर उसे जान से मारने की धमकी दी गई। पुलिस को दिए अपने बयान में सफाईकर्मी ने खुलासा किया कि उसने कई स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को उनके यूनिफॉर्म के साथ दफनाया था। 

इसी प्रकार कुछ दिनों पूर्व ओडिशा में हुए रेप केस ने सबको चौंका कर रख दिया था। वहां पर एक बीस वर्ष की लड़की से उसके अध्यापक ने ही रेप किया था। जब लड़की ने हिम्मत दिखाकर कालेज प्रबंधन से इसकी शिकायत की तो उसी पर अपनी बात वापस लेने का दबाव बनाया जाने लगा। अंत में उसने हिम्मत हार कर सुसाइड कर लिया। उससे पहले कोलकाता रेप केस ने भी सबको झकझोर कर रख दिया था। इस प्रकार ना जाने कितनी निर्मम घटनाएं हमारे समाज में दिन प्रतिदिन होती रहती है। कुछ में हल्ला मचता है और फिर सब शांत बैठ जाते हैं। ऐसा लगता है कि हम सब इन घटनाओं को पढ़ने और सुनने के आदी हो चुके हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक देश में नाबालिग बच्चियों के रेप केस 2016 से 2022 के बीच में 96 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। सबसे ज़्यादा मामले राजस्थान में दर्ज किए गए हैं, उसके बाद उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर तथा मध्य प्रदेश इन आंकड़ों के मुताबिक तीसरे स्थान पर मौजूद है। वहीं कर्नाटक और ओडिशा की बात करें तो कर्नाटक में 2024 में पॉक्सो एक्ट के तहत 4,019 मामले दर्ज हुए जो पिछले चार वर्षों में सबसे ज़्यादा थे। और इनमें भी सबसे अधिक मामले विकास का प्रतिबिंब माने जाने वाले बेंगलुरु शहर से थे। यहां पर 2021 से 2023 के बीच 444 रेप केस दर्ज हुए। 

ओडिशा में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर दिन लगभग 15 महिलाओं के साथ अपराध घटित होता है। ओडिशा गृह विभाग की वाइट पेपर रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में 2,826 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जो 2024 में बढ़कर 3,054 हो गए। यहां के आंकड़ों में एक अन्य हैरान करने वाला तथ्य देखने को मिला। राज्य में कुल 2,14,113 अपराध के मामले दर्ज हुए, जिनमें से केवल 1,39,001 मामलों में चार्जशीट पेश की गई थी। मतलब बहुत सारे केस अभी भी लंबित हैं और पीड़ित न्याय की आस में बैठे हैं।

यह सारे आंकड़े हमारे समाज के खोखलेपन और लचीली न्याय व्यवस्था को दर्शाते हैं। जिनसे हमें आज के हमारे सशक्त समाज की स्थिति के बारे में पता चलता है। हम भारतीय समाज के सशक्त होने का डंका पीटते हैं, हर साल महिला सशक्तिकरण दिवस मनाते हैं, महिला उत्थान के अलग अलग नारे लगाते हैं लेकिन उसी सशक्त समाज में महिलाओं की यह दयनीय स्थिति हमारे लिए कलंक समान है। कोई भी समाज जब तक सशक्त नहीं हो सकता तब तक वहां की महिलाएं सुरक्षित ना हों। उन्हें कहीं आने जाने में डर ना महसूस हो, महिला अपराधों की घटनाएं शून्य हों या कम से कम उनमें निरंतर गिरावट आती जाए। 

यदि अपराधों के यह आंकड़े लगातार और दोगुनी चार गुनी तेज़ी के साथ बढ़ते जा रहे हैं तो इसका सीधा और साफ मतलब है कि हम सभ्य समाज के नाम पर असफल साबित हो रहे हैं। हम नैतिक मूल्यों को समाज में लागू करने में असफल हो गए हैं, हम महिलाओं को सम्मान दिलाने में और न्याय दिलाने में असफल साबित हो रहे हैं। इन समस्याओं के बहुत सारे कारण हैं, जिनमें से एक मुख्य कारण हमारी न्याय व्यवस्था का लचीला पन है। जहां एक आरोपी को अपराधी साबित करने में कई वर्ष बीत जाते हैं और पीड़ित एवं पीड़िता को इन वर्षों में जिन जिन भयानक ट्रायल और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है वह बेहद दयनीय होती है। इन सबके बावजूद कई बार आरोपी सबूतों के अभाव या किसी अन्य कारणवश बरी हो जाते हैं। 

ऐसे में ज़रुरत है कि समाज में नैतिक मूल्यों को पुनः स्थापित किया जाए। निष्पक्ष एवं सुविधाजनक ट्रायल व्यवस्था हो ताकि पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके। स्कूलों और कॉलेजों में आत्मरक्षा प्रशिक्षण केंद्र हों, पीड़ित को सहायता देने के लिए काउंसलिंग सेंटर मौजूद हों और इन सबके लिए समाज में जागरुकता को बढ़ावा दिया जाए। 

याद रहे कि हर पीड़ित एक ज़िंदगी है, जिसे डर के साए में नहीं जीना चाहिए बल्कि उसे एक सुविधाजनक वातावरण मुहैया कराया जाना चाहिए। अब समय केवल चर्चा करने और आकर्षक एवं लुभावने नारे देने का नहीं बल्कि कुछ करने का है। कुछ ऐसा करने का जिससे समाज में महिला सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और पीड़ित लोगों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके।

इस नंबर को याद रखेः

महिला हेल्पलाइन – 181, थाना सहायता -112, बाल सुरक्षा - 1098


ज़ैनबुल गज़ाली

स्वतंत्र पत्रकार, कर्नाटक

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