शीर्षक: "मैं अभी जि़ंदा हूं"
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साहित्य
शीर्षक: "मैं अभी जि़ंदा हूं"


अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस का संदेश यही है 

नारी सिर्फ संबंधों की परिभाषा नहीं,

वह स्वयं एक संपूर्ण सृष्टि है।"

कि हर स्त्री, हर हाल में पूर्ण है।

वह छाया नहीं, स्वयं धूप है।


पति गया तो दुनिया ने कहा 

अब तो बस छाया रह गई,

सपनों की वह रंगी दुनिया

जैसे बिन परछाईं रह गई।


सफेद साड़ी, मौन लबों पर,

एक स्त्री को जंज़ीर मिली,

शोक से बढ़कर शोक यही था,

जीवन भर की तौहीन मिली।


माथे का सिंदूर मिटाया,

हंसी को पाप बताया गया,

कभी बहू, कभी माँ कहकर,

हर रूप को ठुकराया गया।


पर मैं टूटी नहीं, रुकी भी नहीं,

अंदर ज्वाला फिर से जलती है,

मैं अब सिर्फ विधवा नहीं,

एक औरत भी हूं — जो चलती है।


मैंने कांधे पर बोझ उठाया,

बच्चों को फिर से पढ़ाया है,

बिना किसी सहारे के भी,

जीवन को मैंने अपनाया है।


न मैं शोक की परिभाषा हूं,

न टूटी कोई आशा हूं,

मैं जीवन की धड़कन हूं,

सपनों संग अभिलाषा हूं।


पति के साथ एक राह थी,

पर अब राहें और भी होंगी,

सिर्फ रिश्तों और घर से नहीं,

अब पहचानें और भी होंगी।


मेरे माथे का उजियारा,

सिर्फ सिंदूर नहीं होता,

मेरी बातों का उजास भी,

एक सूरज की तरह होता।


आज सूरज मेरे लिए भी उगता है,

चाँदनी मुझ पर भी छाई है,

मेरे आँचल में भी सपने हैं,

मेरी आंखों में भी रौशनी आई है।


विधवा कहो या नारी कहो,

अब सीमाएं नहीं स्वीकार,

मैं खुद को फिर से गढ़ूंगी,

लेकर संकल्प अपार।


सफेद रंग को बोझ समझकर,

जो दुनिया मुझ पर हंसती थी,

उसी रंग में अब उम्मीदों की

नई कहानी मैं सजाती हूं।


न आँखों में बेबसी है अब,

न शब्दों में कोई डर है,

मैं संघर्ष की वो कविता हूं,

जिसका हर छंद अमर है।


अब न रोको मुझे, न टोको मुझे,

मैं अधिकारों की बात करूंगी,

सपनों की एक नई सुबह में,

मैं अपना भी नाम लिखूंगी।


अब मुझको सिर्फ सहानुभूति नहीं,

अधिकार और सम्मान चाहिए,

हर विधवा को गरिमा मिले —

मुझे ऐसा एक जहान चाहिए।


अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस पर,

हम सब ये संकल्प लें,

कि हर विधवा स्त्री को भी

सम्मान और संबल दें।


(अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस पर विशेष)

डॉक्टर भावना दीक्षित ज्ञानश्री

जबलपुर मध्यप्रदेश 

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