दिखावा : एक सामाजिक बुराई
दिखावा इस एक शब्द में बहुत कुछ समाया हुआ है क्योंकि इस एक "दिखावे" के अंदर हर तरह का दिखावा सम्मिलित है। किसी के पास बहुत दौलत है तो वह उसका दिखावा करता है कोई बहुत सुंदर है, सुशील है तो उसका दिखावा करता है, किसी के पास विशाल मकान है या फिर एक अच्छा परिवार है तो वह दूसरों के सामने इतराते हैं और अपने परिवार वालों का दिखावा करते हैं।
यह एक बहुत बड़ी बुराई की तरह समाज में फैल रहा है इसके कारण मनुष्य का असली रूप हमारे सामने नहीं आ पाता। जो छवि उसकी हमारे सामने आती है वह नकली होती है। आजकल हमारे रहने सहने के तरीके में ही नहीं बल्कि अच्छे-अच्छे रिश्तों को निभाने के मामले में भी दिखावा देखने को मिलता है और सच्ची भावना तो कहीं दिखाई नहीं देती। न्यू जनरेशन तो घनिष्ठ संबंधों के प्रति भी पहले जैसी ईमानदार नहीं रही है। लोग मन ही मन एक दूसरे के लिए बुरा सोचते हैं, एक दूसरे के बारे में बुरा बोलते हैं मगर जब वही व्यक्ति सामने आ जाए तो उससे मुस्कुराकर बात करते हैं। सच्चा प्रेम और मधुरता तो रिश्तों से कहीं खो सी गई है।
मेरे परिचित लोगों में एक शर्मा जी हैं जो दिखावे को कभी बुरा ही नहीं समझते। उनकी बेटी की जब शादी का समय आया तो उस समय उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। सभी ने उनको सलाह दी कि कम से कम खर्च में शादी करें मगर वह किसी तरह न माने। उन्होंने लोन ले लिया 30 पर्सेंट ब्याज था, शादी के कुछ महीनों बाद ही वह बीमार हो गए स्थिति इतनी गंभीर हो गई के याददाश्त पर भी असर पड़ने लग गया। कुछ याद ही नहीं रहता था पूर्ण रूप से तो नहीं परंतु उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई, ऐसे में लोन कैसे चुकाते?
1 साल बाद उन्हें अपना मकान बेचकर बैंक का लोन अदा करना पड़ा। आज उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि किराए के मकान में जीवन यापन हो रहा है यह सब दिखावे के कारण हुआ।
इसी तरह मेरे एक और परीचित हैं सरफराज साहब, उनके बेटे ने इसी वर्ष 12th पास किया है। सरफराज साहब के बेटे को हमेशा से इतिहास पढ़ने का शौक था पर सरफराज साहब ने 11th में जब सब्जेक्ट चूज करना था उसको सिर्फ इस वजह से आर्ट्स लेने नहीं दिया क्योंकि उनके सभी सहकर्मियों के बच्चे आर्ट लेकर पढ़ रहे थे और उनके बॉस का बेटा बायो साइंस से पढ़ रहा था। अपने दिखावे के कारण उन्होंने बेटे को मजबूर करके बायो साइंस पढ़वाया, मनमर्जी का विषय न लेने के कारण अच्छे खासे बच्चे का आत्मविश्वास टूट गया फर्स्ट डिवीजन वाला बच्चा सेकंड डिवीजन में पास हुआ। दिखावे की भावना ने सरफराज साहब को इतना अंधा कर दिया था कि वह अपने बच्चे के शौक को भी नहीं देख पा रहे थे।
इसी प्रकार मेरी एक सहयोगी कार्यकर्ता है निधि वर्मा उनके पति का देहांत हो चुका है उनकी एक बेटी है जिसका विवाह उन्होंने बहुत ही शानदार तरीके से किया सभी ने उन्हें समझाया बुझाया था की अकेली हो सादगी से उसका विवाह संपन्न करा दो। कुछ अपने लिए भी बचा लो समय का कोई भरोसा नहीं तुम्हें कब किस चीज की जरूरत पड़ जाए पर दिखावे के चलते उन्होंने अपने सारे जेवर बेच दिए मगर शादी को शानदार तरीके से अंजाम दिया।
दिखावे की वास्तविकता को अगर हम समझें तो यह बहुत नुकसानदायक होता है व्यक्ति को भावनात्मक रूप से और मानसिक रूप से प्रभावित करता है यहां तक के आपसी संबंधों को भी खराब करता है। दिखावा करने वाले व्यक्ति की मानसिकता बन जाती है कि वह हमेशा दूसरे व्यक्ति की तुलना में सदैव उसे ही अच्छा कहा जाए, इस इस कारण दिखावा करने वाला व्यक्ति हमेशा तनाव में रहता है। हमेशा सामने वाले व्यक्ति से अच्छा और बेहतर दिखने की कोशिश करने से उसका दिल दिमाग सुकून में नहीं रहता।
मानसिक रोगियों की तरह उसका व्यवहार हो जाता है। इसके कारण वह ऐसे शब्द ऐसी बातें मुंह से निकाल देता है जिससे उसके सामाजिक संबंध भी खराब हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों की पहचान अलग होती है मिलने जुलने वाले इन से कतराते हैं।
दिखावे के ही कारण आर्थिक खर्च भी बढ़ जाता है जिस से जीवन में आगे जाकर इन्हें सिर्फ हानि ही प्राप्त होती है किस प्रकार व्यक्ति की पारिवारिक स्थिति और समाज में छवि खराब होती है। ईश्वर ने सभी प्राणियों में कुछ खास विशेषताएं रखी हैं जो केवल वह व्यक्ति पहचान सकता है जिनके अंदर यह प्रमुख विशेषता हो। वह अपनी विशेषता को और निखार सकता है परंतु दिखावे के चलते वह अपनी विशेषता को समझ ही नहीं पाता इसी कारण वह अपनी विशेष क्षमताओं का समापन कर देता है।
आज के दौर में आनलाइन प्लेटफार्म पर निजी जीवन का अनावश्यक दिखावा इस कदर बढ़ गया है कि क्या ही बोला जाए। हम कुछ खा रहे हैं तो उसका वीडियो, कहीं घूमने जा रहे हैं तो उस जगह की, वहां बिताए हर पल की, हर क्षण की वीडियो बनाते हैं, उसे आनलाइन प्लेटफार्म पर डालते हैं और डालना जैसे हमारी ड्यूटी में शामिल हो गया है। नई चीज़ खरीदते हैं तो उसे फेसबुक पर अपलोड करना नहीं भूलते। परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के दौरान खींची निजी तस्वीरों को भी लोग साझा करने से नहीं चूकते।
जबकि यह बिल्कुल गलत है ऐसा करना ही नहीं चाहिए। कितनी बार देखा गया है कुछ लोगों का अपहरण हो गया है। सोशल मीडिया से ही जानकारी लेकर अपहरण कर्ताओं ने ऐसी कई वारदातों को अंजाम दिया है कि लोग अचंभित रह गए कि इनको यह सब कैसे पता चला। हम खुद ही सारी जानकारी सोशल मीडिया के जरिए इन लोगों को पहुंचा देते हैं। और क्यों देते हैं इस दिखावे के कारण ही देते हैं।
पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि हमने ऐसा किया, हमने वैसा किया वगैरा-वगैरा। इनका काम तो हम लोग ही आसान कर देते हैं। दिखावा करने की धुन में हम सावधानी बरतना भूल जाते हैं, और बाद में जाकर इसका नुकसान उठाते हैं। देखा जाए तो दिखावा हर किस्म का बुरा ही होता है हम सब "दिखावे" से बचते रहे हैं तो यह बहुत ही अच्छा है। साथ ही अपने परिवार को, अपने बच्चों को इस दिखावे जैसी बुराई से बचाने का निरंत्तर प्रयास करते रहें।
यासमीन तरन्नुम
जबलपुर, मध्य प्रदेश