क्या आप सोते रहना चाहते है जब तक अस्पताल न पहुँच जाये ?
कल्पना कीजिए कि आप अपने कमरे में शांति से सो रहे हैं और अचानक आपके घर में आग लग जाती है। लेकिन बजाय जागने और खुद को बचाने या आग बुझाने के, आप सोते रहते हैं। यह बात अजीब लगती है न? या सोचिए कि आप जानबूझकर कोई ज़हरीली चीज़ खा रहे हैं, जबकि आप उसके दुष्प्रभावों को जानते हैं—और फिर भी आप उसे खा लेते हैं। ये उदाहरण भले ही अतिशयोक्तिपूर्ण लगें, लेकिन रूपक के तौर पर देखें तो आजकल हम में से बहुत से लोग अपनी सेहत के साथ यही कर रहे हैं।
आधुनिक दुनिया में स्वास्थ्य की स्थिति
आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में स्वास्थ्य को एक तरफ सराहा जाता है, तो दूसरी ओर पूरी तरह नज़रअंदाज़ भी किया जाता है। एक ओर लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं, लेकिन अक्सर गलत कारणों से। बहुत से लोग स्वस्थ इसलिए नहीं बनना चाहते कि वे फिट और ऊर्जावान रहें, बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें सोशल मीडिया पर अच्छा दिखना है या “परफेक्ट” बॉडी चाहिए।
दूसरी ओर, बड़ी आबादी चुपचाप बीमारी की ओर बढ़ रही है—बुरी आदतों, बैठकर बिताई जाने वाली जीवनशैली और उन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति के कारण, जो समय रहते सुधार की ओर इशारा करती हैं।
स्वास्थ्य और आज की मानसिकता
आज के समय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोग जानते हैं कि क्या करना चाहिए—साफ खाना, व्यायाम करना, तनाव को नियंत्रित करना—लेकिन फिर भी वे इन बातों को अमल में नहीं लाते। क्यों? क्योंकि प्रेरणा अक्सर ग़लत जगह से आती है या फिर होती ही नहीं।
उदाहरण के लिए, जिम भरे हुए हैं, योगा स्टूडियो में भीड़ है, और फिटनेस इंफ्लुएंसर हर जगह हैं—लेकिन फिर भी अधिकतर लोग व्यायाम बिना किसी सच्चे मकसद के करते हैं। सिर्फ इसलिए कि यह ट्रेंड में है, या किसी और को करते देखा है, या फोटो में अच्छा दिखना है। इस तरह की तुलना-आधारित प्रेरणा ज़्यादा समय तक नहीं टिकती। सच्ची सेहत के लिए एक गहरा व्यक्तिगत कारण चाहिए—एक ऐसा “क्यों” जो आपके जीवन के लक्ष्यों और मूल्यों से जुड़ा हो।
इस्लामिक दृष्टिकोण से देखें तो, सेहत का ख्याल रखना एक ज़िम्मेदारी है और अल्लाह के प्रति आभार प्रकट करने का तरीका भी। पैगंबर मुहम्मद (स.अ.) ने फ़रमाया:
“दो नेमतें ऐसी हैं जिनके बारे में बहुत से लोग धोखे में हैं: (वे हैं) स्वास्थ्य और खाली समय।”
— सहीह अल-बुखारी
यह हदीस हमें याद दिलाती है कि सेहत सिर्फ एक निजी लाभ नहीं है बल्कि यह एक अल्लाह की नेमत है और अच्छे काम करने, इबादत बेहतर करने और जिम्मेदारियां निभाने का ज़रिया भी है।
जीवनशैली में भारी बदलाव
कुछ दशक पीछे जाएं, तो हमारे दादा-दादी को न जिम की जरूरत थी, न कैलोरी काउंटर की। उनका जीवन स्वाभाविक रूप से सक्रिय था—लंबी दूरियाँ पैदल तय करना, शारीरिक काम, और घर का ताजा पका खाना। खाना शुद्ध होता था, काम में मेहनत होती थी, और स्क्रीन टाइम जैसा कुछ था ही नहीं।
आज की स्थिति एकदम उलट है। हम घंटों बैठकर काम करते हैं—ऑफिस में, गाड़ी में, स्क्रीन के सामने। हमारी अधिकांश गतिविधियाँ बिना किसी शारीरिक मेहनत के होती हैं, और हमारा खाली समय भी स्क्रीन स्क्रॉल करने में बीतता है। यह निष्क्रिय जीवनशैली आज की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं की जड़ है—मोटापा, डायबिटीज़, थकान और मानसिक स्वास्थ्य के विकार।
इस्लाम में खाने-पीने में संयम की बहुत अहमियत है। पैगंबर (स.अ.) ने फ़रमाया:
“आदमी कोई बर्तन नहीं भरता जो उसके पेट से बुरा हो। आदम के बेटे को कुछ निवाले ही काफी हैं जो उसे सीधा रख सकें…”
— सुनन इब्न माजह
लेकिन आज, ज़्यादा खाना, फास्ट फूड, और बेवजह स्नैक्स खाना आम हो गया है—क्योंकि यह आसान है और स्वादिष्ट लगता है, न कि इसलिए कि शरीर को ज़रूरत है।
सेहत एक नेमत है—इसे खोने से पहले पहचानें
इंसान की फितरत है कि वह किसी चीज़ की कद्र तब करता है जब वह खो जाती है। सेहत के मामले में भी ऐसा ही है। बहुत से लोग इसका महत्व तब समझते हैं जब कोई गंभीर बीमारी हो जाती है या कोई बड़ा झटका लगता है। लेकिन क्यों इंतज़ार करें? सेहत एक नेमत है, और जब आप इसे नेमत समझते हैं, तो जीवन में बड़ा बदलाव आता है।
जैसे डायबिटीज़ की स्थिति लें—सिर्फ मीठा कम करने से बड़ा फर्क आ सकता है, लेकिन लोग फिर भी बदलाव नहीं कर पाते। इसकी चाबी है—सतर्कता और जागरूकता। एकदम से सब कुछ बदलने की ज़रूरत नहीं—छोटे-छोटे कदम, अगर नियमित हों, तो भी आप चमत्कार कर सकते हैं।
व्यवहारिक और टिकाऊ आदतें अपनाएं
अच्छी बात यह है कि स्वस्थ जीवन जीना न मुश्किल है, न महँगा। यह ट्रेंड्स या एक्सट्रीम डाइट्स से ज़्यादा, छोटे और लगातार फैसलों पर आधारित होता है। कुछ आसान लेकिन असरदार आदतें:
• जंक और प्रोसेस्ड फूड से बचें: इनमें खराब फैट्स, शक्कर और प्रिज़रवेटिव्स होते हैं जो शरीर को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाते हैं। ताज़ा, घर का बना खाना खायें।
• हर दिन कुछ शारीरिक गतिविधि करें: रोज़ 20 मिनट की तेज़ चाल भी बहुत फर्क डाल सकती है। सीढ़ियाँ लें, काम के बीच स्ट्रेच करें, या कोई मनपसंद शारीरिक एक्टिविटी करें।
• पर्याप्त पानी पिएं: पानी शरीर की ऊर्जा, पाचन, त्वचा और मूड पर असर डालता है।
• नींद पूरी करें: आराम उतना ही जरूरी है जितना व्यायाम। अच्छी नींद शरीर की मरम्मत करती है और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित रखती है।
• स्क्रीन से ब्रेक लें: दिमाग को डिजिटल शोर से आराम चाहिए। बाहर टहलें, किताब पढ़ें, या चुपचाप बैठें।
ध्यान रखें, स्वस्थ आदतों का असर धीरे-धीरे दिखता है। तुरंत फर्क महसूस नहीं होगा, लेकिन समय के साथ बदलाव दिखेगा—ऊर्जा बढ़ेगी, बीमारियाँ कम होंगी, और मन हल्का और सकारात्मक लगेगा। यह आपका शरीर है, जो आपको धन्यवाद कह रहा होगा।
मुझे याद है, कई हफ्तों की निष्क्रियता के बाद मैंने एक लंबी वॉक की थी। उसके बाद जो स्फूर्ति महसूस हुई, वो सिर्फ व्यायाम की वजह से नहीं थी—वो एक मानसिक रिफ्रेश था। उसी दिन से मैंने चलना फिर से शुरू किया, और फिर कभी पीछे नहीं देखा।
इस्लाम में हमें सिखाया गया है कि हमारा शरीर अल्लाह की अमानत हैं। हमसे पूछा जाएगा कि हमने अपने शरीर का कैसे इस्तेमाल किया, उसकी देखभाल कैसे की, और क्या हमने उसे सम्मान दिया या नहीं। इसलिए सेहत का ख्याल रखना सिर्फ एक सलाह नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी है।
तो आइए, आग लगने के बावजूद सोते न रहें। अपने शरीर को ज़हर न दें, चाहे वो स्वादिष्ट ही क्यों न लगे। इसके बजाय, इस नेमत का सम्मान करें, सोच-समझकर फैसले लें, और अपने शरीर को वो देखभाल दें जिसका वह हक़दार है—शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से।
- डॉक्टर मलीहा फ़ातेमा ज़ाकिर
- (MBBS, द्वितीय वर्ष)